किशोर कुमार के वे गीत उस समय बहुत लोकप्रिय हुए थे

गुड मॉर्निंगसौरभ शाह

किशोर कुमार ने जिन पांच संगीतकारों के लिए सबसे ज्यादा, सबसे अच्छे गीत गाए उनकी बात करते करते हमने सचिन देव बर्मन की बात की. अन्य ४ संगीतकारों की बात शुरू करने से पहले किशोर कुमार ने इन पांच के अलावा भी कई संगीतकारों के लि यादगार गीत गाए हैं, जिनके बारे में संक्षिप्त मे बात कर लेते हैं. जैसे कि शंकर जयकिशन के लिए उन्होंने कम गीत गाए लेकिन उसमें नखरे वाली और जिंदगी एक सफर है सुहाना जैसे चार्ट बस्टर्स गीत हैं. शंकर-जयकिशन के संगीत में उस जमाने में खूब लोकप्रिय हुए दर्जन से अधिक गीत हैं, लेकिन आज की तारीख में उन सभी गीतों को खोजकर सुनने या प्ले लिस्ट में रखने की जरूरत बहुत कम प्रशंसकों को महसूस होती होगी.

महान राज कपूर के नॉट सो महान पुत्र रणधीर कपूर (`डब्बू’) ने १९७१ में एक डिब्बे जैसी फिल्म `कल, आज और कल’ का निर्देशन आर.के. फिल्म्स के बैनर के तहत किया था. फिल्म में पिता के अलावा दादा पृथ्वीराज कपूर भी थे और होनेवाली पत्नी बबिता भी थीं. शंकर-जयकिशन के संगीत और किशोर कुमार की आवाज वाले कई गीत उस समय लोकप्रिय हुए थे लेकिन आज उनका आकर्षण नहीं रहा, टेंपररी दीवानगी थी जो उतर गई: आप यहां आए किसलिए, भंवरे की गुंजन, हम जब होंगे साठ साल के, टिक टिक टिक चलती जाए  घडी…

इस फिल्म के रिलीज होने के डेढ महीने बाद १२ सितंबर १९७१ को जयकिशन जी का निधन हो गया.

किशोर कुमार ने १९७० में शंकर-जयकिशन के लिए हसरत जयपुरी के इन शब्दों को आशा भोसले के साथ गाया था, याद है? `टाइप राइटर टिप टिप टिप करता है.. जिंदगी की हर कहानी लिखता है…’ जेम्स आयवरी की फिल्म `बॉम्बे टॉकिज’ में शशि कपूर ने हेलेनजी के साथ ये गीत गाया था. इस फिल्म की बात शशि कपूर ने एक इंटरव्यू में कही थी. शायद, मैने इसे कॉलम में लिखा भी है. फिल्म बॉम्बे टॉकिज की कहानी फिल्म इंडस्ट्री पर थी. उस समय अमिताभ बच्चन स्ट्रगलर थे. और इस फिल्म की एक क्राउड सीन में उन्हें एक छोटा, बहुत ही नगण्य सा रोल मिला था. शशि कपूर ने उन्हें अलग ले जाकर कान में कहा कि कल से तुम सेट पर मत आना, फिल्म छोड दो. अमितजी को बुरा लगा था. एक तो पचास रुपए कमाने का मौका मिला था, ऊपर से इंटरनेशनल प्रोडक्शन था, लोगों की नजरों में आने का सुनहरा मौका था. बाद में शाशिजी ने उन्हें समझाया था कि अगर ये रोल कर लिया होता तो तुम्हारी क्षमता कोई देख नहीं सकता था और इंडस्ट्रीवाले तुम्हें ऐसे छोटे-मोटे रोल ही ऑफर करते. अभिताभ बच्चन जीवन भर शशिजी का उपकार नहीं भूले.

१९७१ में राजकुमार वाली `लाल पत्थर’ आई थी. हेमा मालिनी, राखी और विनोद मेहरा भी उसमें थे. देव कोहली का लिखा किशोर कुमार का गाया एक गीत उस समय खूब मशहूर हुआ था: गीत गाता हूं मैं, गुनगुनाता हूं मैं, मैने हंसने का वादा किया था कभी, इसलिए अब सदा मुस्कुराता हूं मैं… विनोद मेहरा प्यानों पर गा रहे हैं और जमीनदार राजकुमार बडे से हॉल में कुर्सी पर बैठकर सुन रहे हैं. दो अलग अलग कोनों में हेमा मालिनी और राखी भी बनठन कर सुन रही हैं.

हिंदी फिल्मों में ऐसी सिचुएशनवाले प्यानोंवाले गीत और पार्टी सॉन्ग्स कितने होंगे? इस प्रकार के जैसे `तेरी गलियों में ना रखेंगे कदम’ से लेकर `दोस्त दोस्त ना रहा तक के प्यानो और / या पार्टी सॉन्ग्स. सौ-सवा सौ के करीब होंगे.

शंकर जयकिशन के संगीत में किशोर कुमार ने विनोद मेहरा के लिए एक और गीत गाया था, जो उस जमाने में खूब पॉपुलर हुआ. उषा मंगेशकर के साथ डुएट था: छतरी ना खोल, उड जाएगी हवा तेज है, खोलने दे भीग जाएंगे बारिश तेज है…`दो झूठ’ नाम की फिल्म आई थी १९७५ में. उसमें ये गीत था. १९७५ का साल हिंदी फिल्मों के लिए सुनहरा वर्ष था. `शोले’, `दीवार’ और `जय संतोषी मां’ के अलावा कई सारी जुबिली हिट फिल्में उस साल आई थीं, याद कीजिए. इस दौरान हम आगे बढते हैं.

१९७४ में जयकिशनजी के निधन के बाद, शंकर-जयकिशन के संगीत में किशोर कुमार का गाया ये गीत मिल मजदूर धर्मेंद्र पर्दे पर साकार किया था: चमका पसीना बन के नगीना, काली रात बीती रे काली रात बीती, मेहनत जीती रे मेहनत जीती… इंदीवर ने फिल्म `रेशम की डोरी’ के लिए ये गीत लिखा था.

नाच मेरी जान फटाफट फट, बात मेरी मान फटाफट, ये जमाना ये तराना नया फटाफट फट… ये गीत याद है? महमूद कुरूप वेटर से हैंडसम फिल्मस्टार बन जाते हैं. ये साउथ की रिमेक फिल्म थी. `मैं सुंदर हूं’ १९७१ में आई थी. किशोर कुमार ने स्क्रीन पर इस गीत का मुखडा गया था, बाकी का गीत महमूद की फिल्म की स्टूडियो में शूटिंग चल रही है इस प्रकार से फिल्माया गया था, फिर तो समुद्र- बीच और कुछ न कुछ आता है. मैं हूं तीर, तू कमान फटाफट फट के साथ गीत पूरा होता है. किशोर कुमार स्टूडियों में ये गीत रेकॉर्ड कर रहे हैं, इस शॉट में सिंगर्स बूथ के बाहर रेकॉर्डिस्ट के साथ कौन कौन बैठा है आपने देखा? एक किनारे हाथ में सिगरेट के साथ गीतकार आंनद बक्षी और दूसरी तरफ जयकिशन खुद. बाद में उनका क्लोज अप भी आता है. इस फिल्म में किशोरदा का एक और युगल गीत था: मुझको ठंड लग रही है मुझसे दूर तू ना जा, आग दिल में लगी है मेरे पास तू ना आ, न आ, न आ… दोनों डुएट्स में आशाजी का साथ था और लता जी के दो सोलो गीत भी उस समय मशहूर हुए थे. तुझे दिल की बात बता दूं, नहीं नहीं नहीं नहीं और आज में जवान हो गई हूं गुल से गुलिस्तान हो गई हूं, ये दिन ये साल ये महीना ओ मिट्ठू मियां भूलेगा मुझको कभी ना…(लताजी का असल में ये सोलो नहीं है, डुएट है! तोते की आवाज हर लाइन में लताजी के सुर में सुर मिला रही है).

ऐसा लगता है कि गीतकार और संगीतकार का तोते के साथ निकट का संबध रहा होगा. कुछ समय पहले प्यारेलालजी से मिलने गए थे तब उनके कमरे में उनका पाला हुआ तोता दौड भाग कर रहा था. एक बोर तो प्यारेलालजी ने एक पुराना अलबम खोलकर तोते को बुलाया. उस फोटो में कई लोग थे. तोते ने एक एक कर सभी को देखा और फिर लक्ष्मीकांतजी के पास खडे प्यारेलाल जी के मुंह पर चोंच लगाई. २८ साल का यह तोता बिलकुल हेल्दी है. गीतकार तो तोता मैना की प्रेम कहानी के गीत लिखते ही रहते हैं. हालांकि दोनों ही अलग अलग पक्षी हैं. दोनों कभी एक दूसरे के साथ सहजीवन नहीं करते, प्यार नहीं करते, अरे कभी साथ में कॉफी पीने के लिए भी स्टार बक्स में नहीं जाते. लेकिन हम कॉफी शॉप में प्रेमी पंछियों को देखते हैं तो हिंदी गीतों के असर होने के कारण हमें तोता मैना ही याद आते हैं.

`मैं सुंदर हूं’ बढिया फिल्म थी. उसका एक सीन स्कूल गोइंग किड के रूप में बहुत ही करुण लगा था. कॉमेडी सीन है. आज भी देखते हैं तो दिल में कसक सी उठती है. महमूद को भूख लगी है. जेब में पैसे नहीं हैं. सडक पर चलते चलते दस पैसे का सिक्का दिखता है. चुपचाप उसे शर्ट की जेब में रख लेता है. आगे चलता है तो दस पैसे का एक और सिक्का दिखता है. शर्ट की जेब में रख लेता है. और आगे चलता है. तीसरा सिक्का मिलता है. शर्ट में तीस पैसे का माल है. होटल में जाकर खूब सारा खाना मंगाता है. तीस पैसे बिल आता है. जेब में हाथ डालता है. छेद है. तब उसे और दर्शकों को ध्यान में आता है कि वही का वही सिक्का उसे मिल रहा था. बिल नही चुका पाने के कारण महमूद को होटल के किचन में प्लेटें धोनी पडती हैं और फिर वहीं पर उसे वेटर का काम मिल जाता है.

सीन एकदम फनी है लेकिन महमूद का उदास चेहरा देखकर आज भी दुख होता है.

आज का विचार

केवल एक पल खलता है किसी का अभाव,
अगले पल से विकल्पों का विचार होने लगता है.

– डॉ. रईस मणियार

एक मिनट!

पका: अरे भई बका, एक जमाने में तुम कितनी अच्छी अच्छी रोमांटिक कविताएं लिखते थे. अब क्यों नहीं लिखते?

बका: यार, जिसके लिए लिखता था उसकी शादी हो गई.

पका: तो क्या हुआ, विरह की कविता लिखो, बेवफाई की कविता लिखो.

बका: पका, तुम बात को जरा समझो. उसकी शादी मेरे साथ हुई है…

( मुंबई समाचार : मंगलवार, १४ अगस्त २०१८)

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