गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, शुक्रवार – २१ सितंबर २०१८)
आर.के. नारायण की `गाइड’ में लिखी जो मजेदार बातें देव आनंद की लैंडमार्क फिल्म में छूट गई हैं, हम उसकी बात कर रहे हैं.
राजू गाइड भोला के सामने अपनी जिंदगी की यादें ताजा कर रहा है. रोजी और मार्को राजू के निकट का भूतकाल हैं. उनके बारे में बात करते हुए वह खुद गाइड कैसे बन गया, उसकी लंबी और अत्यंत रोचक दास्तान राजू सुना रहा है.
बचपन से राजू का रिश्ता रेलवे के साथ रहा है. उसका घर मालगुडी स्टेशन के सामने ही हुआ करता था. पिता ने अपने हाथों से घर बनाया. उस जमाने में अभी रेलवे नहीं आई थी. गांव से कुछ दूर घर बनाने की बात पिताजी को कैसे सूझी? जमीन का छोटा टुकडा बिलकुल मुफ्त के भाव में मिल रहा था. पिताजी ने खुद जमीन खोदी, कुएं से पानी निकालकर मिट्टी का गारा बनाया था, घर की दीवारों को अपने हाथों से चुना था और नारियल के पत्तों से घर की छत बनाई थी. घर के आस-पास पपीते के पौधे उगाए थे. समय बीतने पर उनमें पपीते लगे और तब उन्होंने उसकी फांकें बनाकर बेचना शुरू कर दिया. एक पपीते से आठ आने की आमदनी हो जाती थी. घर के पास ही उन्होंने जंगली लकडी की गोमटी और जूट की बोरियों को खोलकर उसकी छत बनाकर एक छोटी सी दुकान कर ली. उसी जगह से बडा ट्रंक रोड जाता था. गाडियों से यात्रा करनेवाले कई यात्री वहां से आते जाते थे. किसानों के समूह भी एक से दूसरे गांव जाते समय वहीं से गुजरते थे. राजू के पिता की दुकान में तंबाकू, पान, फल, पिपरमिंट, चना वगैरह देखकर मुसाफिर दो घडी आराम करने के लिए ठहर जाते थे और फिर धीरे धीरे दुकान का व्यापार बढने लगा. पिताजी खूब व्यस्त हो गए. खाने पीने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी. मां खूब आग्रह करती तब जाकर गल्ले पर बेटे को बिठाकर पिता घर भोजन करने जाते और यह ताकीद करके जाते कि `जो कुछ भी देना, उसके सामने पैसे लेना मत भूलना. और जो कुछ भी खाने का सामान है, वह तुम्हें नहीं खाना है, वो सारा बेचने के लिए है. कुछ पूछना हो तो मुझे चिल्लाकर बुलाना.’
एक ग्राहक आया. राजू ने पिता जी से चिल्लाकर पूछा,`आधा आने में कितनी पिपरमिंट दूं?’
पिता ने घर में खाते खाते जोर से जवाब दिया, `तीन’ और फिर कहा, `देखना, अगर वह पौना आने की ले तो उसे…’ पिता ने कुछ अटपटी सी गिनती समझाई जो राजू के पल्ले नहीं पडी. उसने ग्राहक से कहा,`मुझे आधा आना ही दीजिएगा’ और बदले में राजू ने तीन पिपरमिंट गिनकर निकाली और दे दी. कभी बरनी में से तीन के बदले चार पिपरमिंट निकल आती तो गिनती के चक्कर में पडे बिना राजू उस अतिरिक्त पिपरमिंट को अपने मुंह में रख लेता था.
कभी कभी जब पिताजी बडे गांव में दुकान के लिए सामान खरीदने जाते तो राजू को साथ ले जाते. उस तरफ जानेवाली किसी बैलगाडी को रोककर बैठ जाते. बाजार में जाकर पिताजी राजू की जेब में सिंग और मिठाइयां भर देते, और खुद परिचित दुकानदारों के पास जाकर माल खरीदा करते. राजू दूर बैठे बैठे भावताल करते हुए लोगों को निहारता रहता. राजू को यह सब देखने में बडा आनंद आता था, लेकिन एक सवाल उसके मन में बार-बार आता था: जब पिताजी के पास अपनी खुद की दुकान है तो वे दूसरों की दुकान से खरीदारी क्यों करते हैं. राजू पिताजी से यह पूछता भी था लेकिन इसका जवाब उसे कभी नहीं मिलता था.
राजू के पिता का व्यवसाय धुआंदार चल रहा था. रात-बिरात वहां से नारियल और अन्य वस्तुओं से भरी गाडियां गुजरा करती थीं. लोग दुकान पर ठहर कर बैलों को दो घडी अलग करके खुद राजू के पिताजी के साथ इधर उधर की बातें करते.
एक दिन अचानक घर के आस-पास खूब चहल पहल हो रही थी. हर दिन सुबह बडे शहर से लोग आया करते और सारा दिन किसी न किसी काम में जुट जाते. पता लगा कि नई रेलवे लाइन बिछाई जा रही है और यहीं पर पटरियां डाली जाएंगी. वे लोग नाश्ता-पानी करने पिता की दुकान पर आते थे. पिताजी पूछते,`अब हमारे गांव में रेलगाडी आनेवाली है? कब आएगी?
`पता नहीं? अभी छह-आठ महीने तो निकल ही जाएंगे.’
ट्रक भर कर लकडी से स्लीपर्स और लोहे की पटरियां आती थीं. साथ में तरह तरह के अन्य सामान आते थे. इस दौरान राजू की उम्र स्कूल जाने लायक हो गई. गांव के अल्बर्ट मिशन स्कूल में उसकी मर्जी के खिलाफ दाखिला करा दिया गया.
और एक दिन राजू ने देखा कि जिस इमली के पेड के नीचे वह रोज खेता था उसके पास स्टेशन की इमारत खडी हो गई है. पटरियां बिछाई जा चुकी थीं. सिग्नल के खंभे गड चुके थे.
`कल स्कूल में छुट्टी है. कल अपने गांव में रेलगाडी आनेवाली है.’ घोषणा हुई. स्टेशन की इमारत को सजाया गया था. बैंड बाजे बज रहे थे. पटरी पर श्रीफल फोडा गया. दूर से रेल के डिब्बों को खींचकर लाता हुआ इंजिन दिखा. प्लेटफॉर्म पर कलेक्टर, पुलिस सुपरिंटेंडेंट, म्युनिसिपल चेयरमैन सहित गांव के बडे व्यापारी और सम्मानित लोग गाडी का स्वागत करने के लिए मौजूद थे. हरे रंग की आमंत्रण पत्रिका के बिना कोई समारोह में न घुसे, इसलिए पुलिस का कडा बंदोबस्त था. राजू को किसी ने निमंत्रण नहीं दिया था जिसका उसे बडा बुरा लगा था. (जारी)
आज का विचार
महिलाओं के सीनियर सिटिजन ग्रुप में चर्चा: हमने तो मान लिया था कि चलो पति पर नजर रखने की उम्र बीत चुकी है, लेकिन अनुप जलोटा ने तो नया तुफान मचा दिया है.
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एक मिनट!
सवाल: भारत में गरीबी कब से आई?
जवाब: २६ मई २०१४ से. उससे पहले तो देश के भिखारी भी मर्सिडीज में बैठकर फाइव स्टार में कोल्ड कॉपी पीने जाते थे.