गुड मॉर्निंग: सौरभ शाह
(newspremi.com, गुरुवार, २७ फरवरी २०२०)
इस साल के नवंबर में अमेरिका में जब राष्ट्रपति चुनाव होंगे तब रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प को हराने के लिए जो डेमोक्रेट उम्मीदवार होगा वह बर्नी सैंडर्स होंगे ऐसी संभावना अधिक है. बर्नी सैंडर्स नहीं होंगे तो बिडेन या एलिजाबेथ वॉरेन हो सकते हैं. ये तीनों डेमोक्रेट्स हैं. भारत में वामपंथी, सेकुलर, माओवादी, जिहादी, सेल्फ प्रोक्लेम्ड लिबरल या लिबरांडू जैसे विशेषणों से जिन्हें जाना जाता है उन जैसी ही विचारधार अमेरिका के डेमोक्रैट्स की है- अल्पसंख्यकों (अर्थात ब्लैक्स को) खुश करो, आस पडोस से (यानी मेक्सिको से) आनेवाले अवैध शरणार्थियों के प्रति सहानुभूति रखकर उनकी वोटबैंक तैयार करो. इन लोगों के नारे भी केजरीवाल जैसे होते हैं. बर्नी सैंडर्स अपने इलेक्शन फंड के लिए दो डॉलर (डेढ सौ रूपए) में मिलनेवाली टी-शर्ट २७ डॉलर में (पौने दो हजार में) अपनी वेबसाइट पर बेचते हैं जिस पर लिखा होता है: कॉलेज फॉर ऑल, मेडिकेयर फॉर ऑल, जॉब्स फॉर ऑल, जस्टिस फॉर ऑल. अखिलेश – मायावती की तरह बिजली-पानी-सडक जैसे वादे ये डेमोक्रेट्स करते हैं.
डोनाल्ड ट्रम्प के लिए २०१६ के चुनाव कठिन थे. २०२० में तो डेमोक्रैट्स हाथ धोकर ट्रम्प के पीछे पड गए हैं. ट्रम्प ने अकेले ही डेमोक्रैट्स को धोबी पछाड लगाई है. सीएनएन और वॉशिंग्टन पोस्ट तथा न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे डेमोक्रैट्स के मुखपत्रों के साथ ट्रम्प ने संघर्ष किया है, और जीते हैं.
ट्रम्प की भारत यात्रा जिस प्रकार से यहां के जेहादी-वामपंथियों के आंखों में किरकिरी बनी हुई थी उसी प्रकार से गोरे लिब्रांडुओं के पेट में भी इस भेंट के कारण बल पडे हैं. बर्नी सांडर्स ने २७ फरवरी २०२० को भारतीय समयानुसार मध्यरात्रि को एक बजे ट्वीट किया जिसमें लिखा था कि २० करोड मुसलमान भारत को अपना घर मानते हैं. व्यापक मुस्लिम विरोधी दंगों में २७ से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं और कई लोग घायल हुए हैं. इस परिस्थिति के बारे में ट्रम्प कहते हैं:`ये भारत का मामला है’. हमारा नेतृत्व (यानी ट्रम्प) मानवाधिकारों के मामले में बिलकुल नाकाम रहा है.
बर्नी सांडर्स के इस ट्वीट में और सोनिया गांधी ने कल प्रेस कॉन्फरेंस में जो कहा उसमें तत्वत: कोई भी अंतर नहीं है. सोनिया गांधी के अलावा केजरीवाल, पवार, सीताराम येचुरी इत्यादि मोदी विरोधी (यानी राष्ट्रविरोधी, हां- जो लोग मोदी विरोध करते हैं, मोदी सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं वे असल में इस देश की प्रगति का ही नहीं, बल्कि राष्ट्र के अस्तित्व का भी विरोध करते हैं) और बर्नी सैंडर्स कोरस में गा रहे हैं. ट्रम्प-मोदी की दोस्ती से इन माओवादियों-जेहादियों की जान निकल रही है. ट्रम्प अगर दोबारा अमेरिका में चुनकर आते हैं तो ऐसा माहौल बन जाएगा जैसा कि २०१९ मई को मोदी के फिर से चुनकर आने पर बना था. अमेरिका के राजदीप सरदेसाइयों, बरखा दत्तों, रवीश कुमारों तथा शेखर गुप्ताओं ने पिछले साढे तीन साल के दौरान ट्रम्प को नाकाम शासक के रूप में चित्रित करने की खूब कोशिश की. सीएनएन और वॉशिंग्टन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स इत्यादि अमेरिका के एनडी टीवी, इंडिया टुडे और टाइम्स ऑफ इंडिया हैं. दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता में ट्रम्प ने सीएनएन और बीबीसी सहित मीडिया हाउस के कुल चार पत्रकारों को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र कर दिया. (उसे देखकर आपको २००२ के गुजरात के मुख्य मंत्री की याद ताजा हो जाएगी. राजदीप सरदेसाई ने २००२ के दिसंबर माह में हुए विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने भाजपा को जब १८२ में से १२७ सीटों पर विजय दिलाई तब एक इंटरव्यू में पूछा था कि क्या आप कहना चाहते हैं कि मीडिया ने गुजरात को बदनाम किया है? तब मोदी का जवाब था:`मीडिया नहीं. यू, मिस्टर राजदीप सरदेसाई, यू.’ और राजदीप के चेहरे का रंग ही उड़ गया).
भारत और अमेरिका के संबंध अभी जिस स्तर पर हैं उसमें इन दोनों देशों की सरकारों को, जनता को बडा लाभ होनेवाला है. लेकिन पाकिस्तान-चीन समेत अपने देशों की चमक इसके कारण फीकी पडती जा रही है. अमेरिका और भारत का वामपंथी जिहादी मीडिया दोस्ती के इस हवन में हड्डी ही नहीं बल्कि पूरे का पूरा अस्थिपिंजर ही डालकर उसकी पवित्रता को भंग करने की कोशिश कर रहा है. अभी तकरीबन अहिंसक रहा शाहीनबाग का आंदोलन ट्रम्प के दौरे के समय ही अचानक ईशान्य दिल्ली को आग की ज्वाला में लपेट लेने की घटना कौअे के बैठने और डाल टूटने जैसी घटना नहीं थी. यह एक अंतर्राष्ट्ररय आयाम वाला षड्यंत्र था. जिसकी जड़ तक पहुंचने के लिए मोदी ने स्थानीय स्तर के पुलिस अधिकारियों को नहीं बल्कि अजित डोभाल जैसे नेशनल सिक्योरिटी एड्वाइजर को मैदान में उतारा है.
२००२ के साबरमती एक्सप्रेस के जलाए जाने के बाद हुए दंगों की कवरेज के लिये राजदिप सरदेसाई द्वारा एक तरफा रिपोर्टीगं के लिये तिनसौ करोड़ लेकर सारी मिडिया को खरीद लेने ,और बाद में अपना मिडिया हाउस बनाने की धटना को भारतीय राजनीति का कलंक मानता हूं। आज भी शाहिनबाग मे पैसों के दम पर न सिर्फ मिडिया को ख़रीदा जा रहा है वरन अंतरराष्ट्रीय जगत में मोदी के खिलाफ आंदोलन चलाया जा रहा है ।
मैं आपके कथन से पुर्णतः सहमत हूं ।