गुड मॉर्निंग क्लासिक्स : सौरभ शाह
(newspremi.com, गुरुवार, २ अप्रैल २०२०- राम नवमी)
गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमानजी का गुण गाने के लिए हनुमान चालीसा की रचना की. हमने उसका भावपूर्वक रटन किया. संकटमोचन हम पर विपत्ति आने पर उन्हें हर लेंगे ऐसी आशा के साथ उसका सौ बार पारायण किया. वर्षों और दशकों से हर दिन या हर मंगल या शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ किया. लेकिन उससे जो सीखना है वह अभी तक नहीं सीखा. संकट या विपत्ति के समय हनुमानजी का स्मरण मात्र आपके मनोबल नहीं बढाता. हनुमान चालीसा का पाठ यंत्रवत् कर लेने से फल नहीं मिल जाता. हनुमानजी के गुण अपने भीतर उपजाने पर उसका सच्चा फल मिलता है- आपको और आपके आस पास के लोगों को.
तुलसीदासजी ने तो क्लियर कट प्रिस्क्रिप्शन दे दिया है सैकडों साल पहले. उसका अनुसरण हमें करना है. हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद एक महीने तक हर दिन उसमें दिए गए एक एक संकल्प को अमल में लाएं तो हनुमानजी की चरण रज बनने की काबिलियत पनपती जाएगी. कुल तीस संकल्प है- प्रति दिन का एक.
१. बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवनकुमार: अपनी चतुराई छोड दें. अपने आसपास के चार लोगों से अधिक दिमाग हो तो ऐसे भ्रम में रहने की जरूरत नही है कि हम बहुत बुद्धिमान हैं. आपको नजर नहीं आते होंगे पर आपसे भी लाख गुना बुद्धिवाले लोग इस दुनिया में पडे हैं. इसीलिए झूठे अहम में नहीं रहना चाहिए. अहम को छोड देना चाहिए. खुद को बुद्धिहीन मानेंगे तो अच्छी प्रगति होगी.
२. बल, बुधि, विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार: हनुमाजी तो आपको बल, बुद्धि और विद्या देंगे ही. आपको उन्हें अपने आस पास के लोगों को बांटना है. सबसे पहले तो आपको स्वयं बलवान होना है, बुद्धिमान होना है और विद्या प्राप्त करनी है. आप अथक परिश्रम करेंगे तो हनुमानजी की कृपया अवश्य बरसेगी. किंतु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि जैसे हनुमानजी की कृपा आप पर बरसी है वैसी आपके आस पास के निकट के स्वजनो-मित्रों-परिचितों सभी का बल-बुद्धि-विद्या बढे ऐसा लगातार प्रयास करते रहें. केवल आप अकेले शक्तिशाली होंगे और आपके आस पास के लोग अशक्त होंगे तो नहीं चलेगा. उन्हें भी पावरफुल बनाइए. उनकी बुद्धि विकसित हो, ऐसी बातें उनके साथ करो. उनकी विद्या में वृद्धि हो ऐसी बातें करो. ऐसा होगा तो आप सहित सभी की मनशुद्धि- तनशुद्धि होगी. क्लेश अर्थात संताप-उद्वेग मन में होता है. विकार-रोग शरीर में होता है. तंदुरुस्ती और मनदुरुस्ती: ये दोनों आपस में जुडे हैं. हमने हजारों साल पहले यह बात जान ली थी. पश्चिम के जगत की एलोपथी ने अभी पांच सौ साल पहले सायको-सोमेटिक रोगों को पहचान है.
३. जय हनुमान ज्ञान गुण सागर: हनुमानजी तो ज्ञान के सागर हैं. आपका उस सागर में से अंजुली भर कर जितना ज्ञान मिल सकता है उतना प्राप्त कर लेना है. और यह ज्ञान केवल जानकारी का ढेर नहीं है. ये तो गूगल पर उपलब्ध है. जानकारी के मंथन से जो मक्खन निकलता है वह नवनीत आपको ज्ञान के रूप में काम में लगाना है. शारीरिक बल तो होना ही चाहिए. शारीरिक रूप से सशक्त तो बनना ही है. लेकिन हनुमानजी केवल मसलमैन नहीं थे. उनके पास अथाह ज्ञान था. आप जिम्नेशियम जाकर तीन दिन कार्डिएग करेंगे, तीन दिन स्ट्रेंथ ट्रेंनिंग करेंगे. बॉडी बनाएंगे. तो साथ ही साथ बुद्धि की कसरत भी करें. खूब पढ़ें, अच्छा अच्छा पढ़ें. पुस्तकालय मन का जिम्नेशियम है. अच्छा सुनें, देखें, सोचें और सभी के साथ चर्चा करें. ज्ञान गुण सागर बनने की तैयारी आज से ही शुरू कर दें.
४. महावीर विक्रम बजरंगी: महावीर बनिए. वीरता और साहस के बिना जिंदगी फीकी है. एडवेंचर पहाड चढने में तो है ही, एडवेंचर जीवन की कसौटियों का बहादुरीपूर्वक सामना करने में भी है. अन्य लोग जब सत्य के लिए लड रहे हों तब उनके साथ खडे रहना भी साहस है. प्रामाणिक मनुष्यों का पक्ष लेने में भी बहादुरी है. दुश्मनों का सामना करने में तो वीरता है ही, वीर पुरुषों के आदर्शों का अनुसरण करने में भी वीरता है.
५. कुमति निवार सुमति के संगी: मन में आनेवाले बुरे विचारों को हनुमानजी आकर दूर करेंगे यह तो सच है ही. लेकिन यह श्रद्धा तब फलीभूत होगी जब आपने अपने मन को इतना मजबूत बनाया हो जिसमें कुविचारों का जन्म ही न हो सके और भूलचूक से यदि जन्मे भी तो हनुमानजी आकर उसे दूर करें, इससे पहले आप ही सावधान होकर उसे दूर करें. ऐसा कब होगा? जब मन में अच्चे विचार आते हों, ऐसी ऊर्वरा भूमि आपने कल्टिवेट की हो तभी. अच्छी प्रजाति के बीज बोए होंगे तो उसे बडा करने में इतना ध्यान देना पडेगा कि खराब विचार पास भी न फटकें. मन यानी विचारों का प्रवाह. अच्छे विचारों का प्रवाह जारी रहेगा तो बुरे विचार नहीं टिक सकेंगे.
६. हाथ वज्र और ध्वजा बिराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै: अन्य लोगों को कैसे पता चलेगा कि आपके इरादे कैसे हैं? आपको खुलकर अपने इरादे उनके सामने जाहिर करने होंगे ताकि साथ देनेवाले आपका साथ दे सकें और डरपोक आपसे दूर चले जाएं. हाथ में वज्र और विजयध्वज रखने का अर्थ है कि अपनी शक्ति और अपने दृढनिश्चय का परिचय लोगों को देना. लेकिन साथ में जनेऊ धारण करना चाहिए. जो प्राप्त करना है उसे पाने के लिए अपनाया गया मार्ग शुभ और पवित्र है, ऐसा संकल्प धारण करना चाहिए. अपवित्रता चाहे कितनी ही आकर्षक लगे पर यह मानसिक जनेऊ चौबीसों घंटे आपको भ्रष्ट कर्मों से दूर रखेगी.
७. विद्यावान गुणी अति चातुर: विद्वत्ता की बात रिपीट करते हैं. सद्गुणी होना भी उसी में आ गया. अब एक नई बात जुडती है. चतुराई. ये चतुराई किसी को उल्लू बनाने के लिए नहीं है. या फिर अपने गलत कामों को उचित ठहराने के लिए भी उपयोग में नहीं लानी है. ये चतुराई कोई आपको ठग न जाय इसके लिए अपनानी है. आपमें कम से कम इतनी अक्ल तो होनी ही चाहिए कि कोई आपको पेडा थमाकर आपके हाथ का कंगन न निकाल ले जाय. कोई आपके कंधे पर रखे बकरे को कुत्ता बता कर फिंकवा न दे, इतनी स्मार्टनेस आपके पास होनी चाहिए.
८. राम काज करिबे को आतुर: आप जिसे हृदय से चाहते हैं उनका काम करने के लिए आपको हमेशा तैयार रहना चाहिए. आधी रात को जरूरत पडती है तो हाजिर हो जाना है. आपका यह समर्पण केवल उन्हें ही नहीं बल्कि आपके लिए भी उपयोगी होगा, इस तरह से आप जब महसूस करेंगे कि आपमें किसी के प्रति ऐसी निष्ठा है और तब आपके शेष जीवन के व्यवहार में भी ऐसी ही निष्ठा व्याप्त होने लगेगी. आप हर किसी के लिए विश्वासपात्र व्यक्ति बन जाएंगे.
९. प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया: आपको जिनके प्रति आदर है, पूज्यभाव है, प्रेमभाव है उनका गुणगान जब होता है तब आपको उसमें आनंद मिलना चाहिए. इसका दूसरा अर्थ ये है कि उनकी निंदा हो रही हो, आलोचना हो रही हो, टीका हो रही हो तो आपको उसमें आनंद नहीं मिलता. वह सुनकर आपको ग्लानि होती है. यदि आप उसे रोकने की स्थिति में हैं तो रोकें. अन्यथा वहां से दूर हो जाएं. फेसबुक से ऐसे व्यक्ति को अनफ्रेंड कर दें, ट्विटर पर ब्लॉक कर दें और व्हाट्सऐप ग्रुप से निकाल दें.
१०. राम लखन सीता मन बसिया: आपके मन में जिनके लिए पूज्यभाव है उनका परिवार भी आपके लिए उतना ही निकट होना चाहिए. सारे परिवार का हित आपके मन में होना चाहिए- केवल पूजनीय या प्रिय व्यक्ति का नहीं. इसका कारण है. उस व्यक्ति का ख्याल तो उसका परिवार ही चौबीसों घंटे रखता है ना. उसका भोजन, उसका विश्राम, उसके व्यवहार- ये सारी व्यवस्था उसके परिवार को ही उस व्यक्ति के लिए करनी पडती है. तो सिर्फ उन्हें ही नहीं, बल्कि परिवार को आदर दें. रामभक्त तो आप हैं ही पर सीता-लक्ष्मण को भी अपनी भक्ति के दायरे में रखें.
११. सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा. बिकट रूप धरि लंक जरावा. भीम रूप धरि असुर संहारे. रामचंद्र के काज संवारे: जो भी काम करने हैं वे तीन प्रकार से करने हैं. सूक्ष्म रूप में, विकट रूप में और भयंकर रूप में. हनुमानजी बारी बारी से ये तीनों रूप धारण करके सीताजी के सामने प्रकट हुए हैं, जिसके बाद उन्होंने लंका दहन किया और फिर राक्षसों का नाश किया. जो काम करने की जानकारी अन्य किसी को नहीं होने देनी है, तब उसे सूक्ष्म रूप में करना चाहिए. चुपचाप. मुझे पता है और उन्हें. काम होना चाहिए. अन्य किसी को भी इसकी जानकारी देने की जरूरत नहीं है. कई फैसले लेना कठिन होता है. ऊंट की पीठ पर अंतिम बोझ रखा जाय इससे पहले ही विकट निर्णय करना होता है जो सभी के हित में हो. ऐसा निर्णय करते समय सूखे के साथ हरा भी जल जानेवाला है इसका ख्याल रखना चाहिए पर इसका अफसोस नहीं करना चाहिए. समग्रतापूर्ण दृष्टि रखकर ही विकट निर्णय लिए जाते हैं. ओसामा बिन लादेन का वध करने के लिए अमेरिकी सेना की `सील’ टीम पाकिस्तान गई तब उन्होंने अनुमान लगा लिया था कि शायद उसका कोई परिवार का सदस्य शिकार हो जाय तो भले हो जाय पर ओसामा बिन लादेन को तो खत्म करना ही है. भीम रूप यानी अपनी भयानक शक्ति का प्रदर्शन करना. लोग आपके कोप से कांप जायं. (बालाकोट के एयरस्ट्राइक के बाद दुश्मन भारत से कांपने लगे हैं).
१२. लाय सजीवन लखन जियाये. श्री रघुबीर हरषि उर लाये: आपके लिए जो आदरणीय है, पूजनीय, प्रिय है- उन्हें जो व्यक्ति अच्छा लगता हो, उसका ख्याल आप रखें तो आपके लिए जो आदरणीय व्यक्ति है उसके जीवन में अत्यंत हर्ष व्याप्त हो जाता है और यह सेवा केवल लिप सर्विस नहीं है. सिर्फ मीठा मीठा बोलने से यह लगाव व्यक्त नहीं होगा. आपको सचमुच में संजीवनी लेने के लिए दौड जाना है. फिजिकल काम करना है और उसमें बहानेबाजी नहीं करनी है. कौन सी जडीबूटी लानी है, ये भूल जाएं तो मुंह लटकाकर खाली हाथ लौटने के बजाय सारा पहाड ही लेकर आएं. डेडिकेशन इसे कहते हैं.
१३. जब कुबेर दिगपाल जहां ते. कबि कोबिद कहि सकैं कहां ते: आपकी सिद्धियां ऐसी होनी चाहिए कि कोई सार्वजनिक रूप से आपका परिचय दे तो कहे कि:`आपका परिचय देना तो सूरज को दिया दिखाने जैसा है’ तब ऐसे शब्द आप पर अक्षरश: लागू होने चाहिए. आपका नाम ही आपकी पहचान बन जाय, ऐसी सिद्धि प्राप्त कीजिए. जीवन में ऐसे काम करें कि यम, कुबेर, दिगपाल, कवि और विद्वान आपकी कीर्ति का यशगान करने में भी कम पडें.
१४. तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा: आप भले ही एकनिष्ठ हों पर उस निष्ठा के विस्तार का लाभ आपके संपूर्ण समाज को मिलना चाहिए. सुग्रीव को राम से मिलाकर उसे उसका राज लौटाने में हनुमानजी का कहां कोई स्वार्थ था? समाज के लिए ऐसे काम निरंतर करने चाहिए जिनमें आपका कोई स्वार्थ न हो बल्कि सभी का भला हो.
१५. तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेश्वर भए सब जग जाना: लोगों को आप पर विश्वास होना चाहिए कि दुश्मन भी आपकी सलाह लेने आएं. आपकी सच्ची सलाह का वे अनुसरण करें और अंत में वह आपका मित्र बन जाय जिसके कारण उसे स्वयं को भी लाभ हो और आपको भी. ऐसी निष्ठा, ऐसा चरित्र जब होता है तब हमेशा आप सत्य का ही साथ देते हैं, ऐसा विश्वास दुनिया को होता है.
हनुमान चालीसा से जीवन में उतारने जैसी शेष १५ बातें अब बाद में. हनुमान जी जैसी एकनिष्ठा, तत्परता और एकाग्रता सभी को प्राप्त हो, ऐसी प्रभु रामचंद्रजी से प्रार्थना.