पंद्रह अगस्त को करने योग्य संकल्प

लाउड माउथसौरभ शाह

आजकल कुछ ऐसा कहने का ट्रेंड हो चला है कि फलां ऐक्टर टेररिस्ट है, मानो आप देशप्रेमी हो गए हो. देश के सैनिकों की शहादत की प्रशंसा करके मानो आप राष्ट्रप्रेमी हो जाते हैं. देश की प्रशंसा करके आप भारतमाता के सपूत हो जाते हैं.

वैसे आपका खुद आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं होना अच्छा ही है. आप देश के बहादुर जवानों के बलिदान का आदर करके उनके साहस की प्रशंसा करते हैं तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. और आप अपनी मातृभूमि की स्तुति नहीं करेंगे तो किसकी स्तुति करेंगे.ये बातें अच्छी हैं और स्वागत योग्य भी हैं. लेकिन ये सब करके मुक्त हो जाने से हम राष्ट्र भक्त, देशप्रेभी या देश के सुपुत्र साबित नहीं होते. देश प्रेम साबित करने के लिए इसके अलावा भी बहुत कुछ करना होता है.

क्या क्या?

सबसे पहले तो इस देश के प्रति गौरव का भाव रखना पडता है. ये देश तो ऐसा ही है और भारत में तो ये सब चलता रहता है या `फिर भी मेरा भारत महान’ जैसे चुटकुलों वाली मानसिकता को छोडना पडता है. भारत का असली इतिहास जानकर भारत की संस्कृति और परंपरा के लिए आदर, सच्चा आदर अपने भीतर पैदा करना पडता है, उसे पालना पडता है. मुगलों, अंग्रेजों और साम्यवादियों के लिखे झूठे इतिहास से बाहर निकलना पडता है. भारत की जनता और भारतियों का विशेषताओं का सम्मान करना सीखना पडता है.

ये पहली बात.

दूसरी बात ये है कि हम ऐसा काम करें जो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से इस देश के लिए उपयोगी हो. शिक्षक विद्यार्थियों को निष्ठापूर्वक पढा कर इस देश के लिए उपयोगी बनते हैं. व्यापार – व्यवसाय करनेवाले अपनी कमाई से टैक्स भर कर देश के लिए उपयोगी बनते हैं और रिक्शाचालकों से लेकर अन्य सैकडों व्यवसाय करनेवाले इस देश की व्यवस्था को ठीक से कार्यरत रखने के लिए दिन रात मेहनत करके देश के लिए उपयागी होते हैं. ऐसे सभी प्रकार के लोग जब अपना काम निष्ठा, वफादारी से, कामचोरी की नीयत के बिना करते हैं तब देश के प्रति लगाव प्रकट होता है.

लेकिन आपने देखा होगा कि ऐसे भी कई भारतीय होंगे जो विदेश जोकर बस गए हैं (इसमें कुछ गलत नहीं है), वहां बस कर अच्छा जीवन बिता रहे हैं (बहुत अच्छी बात है) और वे अपनी कमाई में से एक डॉलर भी भारत के कल्याण के लिए नहीं भेजते (चलो, इसमें भी कोई बुरी बात नहीं है. जिसकी जैसी सोच और सुविधा) लेकिन वहां बैठे बैठे भारत की सरकार को, भारत प्रेमियों को, भारत की उज्ज्वल परंपरा-संस्कृति को बेतहाशा कोसते रहते हैं. अपनी हीन भावना को छिपाने के लिए अपनी गिल्ट फीलिंग को दबाने के लिए वे जिस मां का दूध पीकर पले बढे हैं, उसी की अवमानना कर रहे हैं. यह गलत बात है. गलत ही नहीं, ये देशद्रोह है. आप जिस देश में रहकर कमाई कर रहे हैं उसके प्रति आपको वफादार रहना चाहिए. ये आपका कर्तव्य है. साथ ही आपका ये भी कर्तव्य है कि आप अपनी मातृभूमि के लिए भी निष्ठा प्रकट करें- यदि आपको अपनी गणना राष्ट्र भक्तों में करनी है तो देशद्रोही का लेबल चिपका कर फिरना हो, तो फिर ऐसी कोई वफादारी दिखाने की जरूरत नहीं है.

तीसरी बात. देश के इतिहास के लिए गौरव की बात कही. वर्तमान में आपकी गतिविधि की बात की. अब भविष्य की बात. इस देश का भविष्य हमारे हाथों में है, ये भावना हम सभी में होनी चाहिए. भविष्य का भारत कैसा होगा, कैसा होना चाहिए और हम बेहतर भारत का सृजन करने के लिए आज क्या कर रहे हैं, भविष्य में क्या करनेवाले हैं तथा अपनी नई पीढी से क्या करवानेवाले हैं, उन्हें प्रेरणा देनेवाली कौन सी बात उनके सामने पेश करनेवाले हैं.

१९४७ के बाद करीब ७ दशक बाद भी हम देश के कितने ही देशद्रोही तत्वों से, तथा विदेशी कुप्रचार के कारण खुद को नीची नजरों से देखने लगे थे. हमारा ब्रेनवॉश कर दिया गया था कि हम तो मदारी के देश में जन्मे हैं जहां लोग अंधविश्वासी है, दुनिया की जनसंख्या बढाने के अलावा हमें कोई काम नहीं आता. पर्यावरण की रक्षा करना हमें नहीं आता. हमारी नर्म और मतलबी-स्वार्थी जनता विदेशी आक्रमणों के सामने झुक जाती है.

पिछले कुछ वर्षों ध्यान में आ रहा है कि ये सारा कुप्रचार था, हमारी आंखों में धूल झोंकी जा रही थी. सदियों से ऐसी साजिश चल रही है कि हम अपने ऊपर से विश्वास गंवा दें और देशद्रोही हम पर हावी हो जाएं.

ऐसा दुष्प्रचार न होने पाए और देश के खिलाफ कुप्रचार का अभियान खत्म हो जाए, ऐसा भारत भविष्य में हमें बनाना है और नई पीढी को देकर जाना है.

आजादी की ७१ वीं वर्षगांठ के अवसर पर यही संकल्प हो सकता है. भारत को उसकी ओरिजिनल चमक वापस दिलाने में योगदान देंगे, ऐसी गतिविधियों में भाग लेंगे जिससे कि देशद्रोहियों के मंसूबों पर पानी फिर जाए और देशप्रेम जताने वाली खोखली गतिविधियों में शामिल होने के बजाय राष्ट्रप्रेम के ठोस कार्यों में अपना योगदान देंगे.

देश की सरकारों का भविष्य भले ही हर पांच वर्ष में आनेवाले चुनावों में तय होता हो लेकिन देश का दीर्घकालिक भविष्य तो चुनावों में वोट देनेवाले करोडों देशवासियों की प्रतिदिन की गतिविधियों से- वे क्या करते हैं, क्या नहीं करते हैं, इस आधार पर तय होता है.

साइलेंस प्लीज़!

यदि मुझे लगा कि देश के संविधान का दुरुपयोग हो रहा है तो उसे जला देनेवालों में सबसे पहले मैं रहूंगा.

– डॉ. बाबासाहब आंबेडकर

(संदेश, `अर्ध साप्ताहिक परिशिष्ट’ बुधवार – १५ अगस्त २०१८)

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