(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल पंचमी, विक्रम संवत, २०७९, बुधवार, ६ अप्रैल २०२२)
आज सबेरे का रुटीन पूरा करके पांच में पांच कम पर गार्डन में पहुंच कर देखा तो स्वामीजी ऑलरेडी आकर वर्कआउट करवा रहे थे. वे पसीने से लथपथ थे और उन्होंने कान पर वुलन और शरीर पर विन्ड चीटर पहना था. यहां आने से पहले नाक में चार-चार बूंद ज्योतिषमति तेल की बूंदें डाली थीं. परसों ही स्वामीजी ने कहा था कि इसका फॉर्मूला उन्होंने बनाया है. काफी मामलों में अत्यंत प्रभावी है. डालने के बाद पांच-सात-पंद्रह छींकें लगातार आती हैं लेकिन खूब लाभ मिलेगा. ऐसा ही हुआ. खूब छींक आई. नाक साफ हो गई. लेकिन अब भी पूरी साफ नहीं हुई थी. नाक लगातार बह रही थी. मन ही मन प्रार्थना की कि स्वामीजी की गाडी में बापू की था में कहीं छींक न आए. भगवान ने प्रार्थना सुनी भी.
स्वामीजी ने सरकार की ओर से मिली सिक्योरिटी टीम के एक सदस्य, सी.आर.पी.एफ. के जवान सत्यम को स्टेज पर बुलाया. स्वामीजी को सरकार ने `जेड’ कैटेगरी की सुरक्षा दी है. स्वामीजी के काम से कई देशद्रोही नाराज हैं. कई मल्टीनेशनल्स और मेडिसिन माफिया नाराज हैं. गूगल पर जाएंगे तो उन्हें `क्रिमिनल’ और अन्य किन किन तरीकों से मीडिया ने बदनाम किया है, यह पता चलेगा. क्रिमिनल तो हैं उन्हें बदनाम करनेवाले मीडिया के गैंगस्टर्स. गूगल सर्च पर केवल उनका नाम डालने मात्र से ही ऐसी ऐसी बातें उभरती हैं कि उनके कामकाज से अपरिचित लोगों को भ्रम हो जाय और नफरत पैदा हो. स्वामीजी को कुछ नहीं पडी है. हाथी अपनी चाल चलता है, कुत्ते भौंकते रहते हैं.
सी.आर.पी.एफ. के जवान सत्यम बिहार के हैं. सत्यम को जवानी में गंजापन आ गया. सारे बाल गिर गए. दो महीने पहले स्वामीजी के कहने से केशकांति तेल लगाना शुरू और तुरंत लाभ दिखने लगा.
स्वामीजी ने एक नई बात कही. शरीर के हर अंग की प्रतिरोधक क्षमता समान नहीं होती. आंख की इम्युनिटी अलग होती है, लीवर की, फेफडे की, त्वचा, हृदय की, हर अंग की इम्युनिटी अलग अलग होती है.
उन्होंने और एक अच्छी बात कही. अपने बारे में बताया,`मैं ज्ञानी भी हूं और अज्ञानी भी, धनवान भी हूं और निर्धन भी हूं-अकिंचन हूं, मेरे पास साधन हैं और मैं गुणों में जीता हूं फिर भी गुणातीत हूं और साधनों की इच्छाओं से मुक्त हूं.’
स्वामीजी की कही बात मेरे चित्त में बैठ गई:`जो योग से अपना स्वास्थ्य पुन:प्राप्त कर सके हों, वे यहां से घर लौटकर योग जारी रखें, इतना ही पर्याप्त नहीं है, दूसरों को भी वे योग सिखाएं… इस तरह से ऋण स्वीकार करने से क्रमश: सारा देश योग द्वारा स्वस्थ बनेगा.’…
मैं मुंबई लौटकर इस संबंध में क्या कर सकता हूं, इस बारे में विचार प्रक्रिया मेरे मन में शुरू हो चुकी है. दूसरों को योग सिखाने के लिए मेरे पास समय-शक्ति-साधन या इच्छा नहीं है, लेकिन स्वामीजी ने जो कहा है उसका क्रियान्वयन मैं अपनी तरह से अवश्य करूंगा…
स्वामीजी ने कहा कि,`योगग्राम में मुझे डायबिटीज़ या बीपी इत्यादि वाले लोग बिलकुल नहीं चाहिए. ऐसी छोटी मोटी बीमारियां तो मैं थप्पड मारकर भगा दूं. मुझे तो यहां बडी बडी बीमारियों वाले चाहिए. जिन्हें लीवर ट्रांसप्लांट करने की सलाह दी गई हो, उनके लीवर को बिना किसी ऑपरेशन के ठीक किया है. जिन्हें दस दस हजार रुपए के इंजेक्शन डॉक्टर देते हैं, उन्हें उनसे मुक्त करवाकर ठीक किया है.’
और स्वामीजी की कही बात मेरे चित्त में बैठ गई:`जो योग से अपना स्वास्थ्य पुन:प्राप्त कर सके हों, वे यहां से घर लौटकर योग जारी रखें, इतना ही पर्याप्त नहीं है, दूसरों को भी वे योग सिखाएं तो उनका यहां आना सार्थक लगेगा. इस तरह से ऋण स्वीकार करने से क्रमश: सारा देश योग द्वारा स्वस्थ बनेगा.’
मैं मुंबई लौटकर इस संबंध में क्या कर सकता हूं, इस बारे में विचार प्रक्रिया मेरे मन में शुरू हो चुकी है. दूसरों को योग सिखाने के लिए मेरे पास समय-शक्ति-साधन या इच्छा नहीं है, लेकिन स्वामीजी ने जो कहा है उसका क्रियान्वयन मैं अपनी तरह से अवश्य करूंगा. मेरा विचार पक्का हो और व्यवस्था हो जाय तो मैं आपके साथ शेयर करूंगा कि मैं क्या करना चाहता हूं. शायद न भी व्यवस्था हो और विचार केवल विचार के स्तर पर ही रह जाय. देखते हैं.
स्वामीजी ने कल शाम को कहा था कि बापू की कथा में जाने के लिए सुबह सवा आठ बजे उनके निवास स्थान पर पहुंचना है. योगाभ्यास करके लौटकर ब्रेकफास्ट करने के बदले डायनिंग हॉल से दो सेब मांग लिए. लेकिन बेचैनी, उत्साह के कारण भूख नहीं लगी थी इसीलिए नहा धोकर बाल वाल बनाकर अच्छे कपडे पहनकर पौने आठ बजे ही तैयार हो गए. आठ बजे उनके निवास स्थान पर पहुंचे- कहीं स्वामीजी जल्दी न निकल जाएं. बाहर कुर्सियां थीं, उन पर बैठ गए. ठीक सवा आठ बजे उनकी सिक्योरिटी टीम के एक सदस्य ने आकर हमें स्वामीजी के घर के दीवानखंड में बिठाया और कहा थोडी देर में निकलते हैं. करीब साढ़े आठ बजे हमें एक स्कॉर्पियो में बिठाकर योगग्राम के पिछले रास्ते सेमुख्य प्रवेश द्वार पर लाया गया. आगे की सीट पर बिछा आरसन देखकर मुझे लगा कि ये स्वामीजी की सीट होगी. फिर लगा कि स्वामीजी ऐसी मामूली गाडी में थोडे ही न ट्रैवल करते होंगे?

योगग्राम के एक अन्य बगीचे में स्वामीजी रजत शर्मा के `इंडिया टीवी’ के लिए लाइव कार्यक्रम शूट करवा रहे थे. करीब दो वर्ष से भी अधिक समय पहले बिना किसी व्यवधान के स्वामीजी प्रतिदिन यह कार्यक्रम करते हैं. हम दूर से कार्यक्रम का समापन देखते रहे. कार्यक्रम पूर्ण करके स्वामीजी इसी गाडी में आकर बिछे हुए आसन वाली अगली सीट पर बैठ गए. हम पिछली सीट पर. आगे पुलिस की टाटा-हैरियर दौड़ रही थी. पीछे भी वैसी ही दूसरी कार थी. बीच में महिंद्रा स्कॉर्पियो, उन दोनों कारों से काफी पुरानी और सस्ती थी.
योगग्राम से योगपीठ जाना था. वहां गुरुकुलम, आचार्यकुलम और पतंजलि विश्वविद्यालय है. गुरुकुल में प्री स्कूल से लेकर प्रायमरी तक की कक्षाएं चलती हैं. दो-तीन वर्ष की उम्र के बच्चों से लेकर चौथी कक्षा में पढनेवाले बच्चों के लिए गुरुकुलम है. पांचवीं से बारहवी तक के विद्यार्थियों के लिए आचार्यकुलम और कॉलेज विद्यार्थियों के लिए तथा स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए पतंजलि युनिवर्सिटी है. यह जानकारी बापू की आज कथा पूर्ण होने के बाद स्वामीजी ने उन्हें दी. सभी विद्यार्थी यहां के छात्रावास में रहते हैं. कोई डे-स्कॉलर नहीं है. हमने आश्चर्य व्यक्त किया कि,`दो-तीन वर्ष के बच्चों को आप कैसे संभाल सकते हैं?’ स्वामीजी ने मुस्कुराकर गर्व से कहा,`उनके लिए उतना ही प्रेमल स्टाफ हमने रखा है.’
यह अतिविशाल संकुल है. कई छोटी-बडी वस्तुएं खरीदी जा सकें, इसके लिए दुकानें हैं. कई सारे एटीएम भी हैं. इसी संकुल में मुंबई के षण्मुखानंद हॉल को टक्कर दे सके, ऐसा एक और भव्य आधुनिक ऑडिटोरियम है जिसमें पूज्य बापू की नौ दिन की `मानस:गुरुकुल’ कथा चल रही है.


योगग्राम से योगपीठ की आधे घंटे की यात्रा शुरू हुई. सही अर्थ में हमारे लिए यह यात्रा ही थी. हमें पीछे दूसरी कार में आने के लिए कहने के बजाय स्वामीजी ने हमें अपने साथ बिठाया था. उनका यह प्रेम देखकर हमने भी अपनी मर्यादा में रहने का निश्चय किया. स्वामीजी के साथ बातचीत करने का यह उत्तम अवसर था लेकिन हमारा विवेक ऐसा कह रहा था कि स्वामीजी के लिए यह एकांत का समय उनके अपने लिए है, दूसरों के साथ बांटने के लिए नहीं.
यात्रा शुरू हुई. स्वामीजी ने झोली से मोबाइल निकालकर आधा दर्जन फोन किए. फोन पर छोटी छोटी बातों की चिंता व्यक्त कर रहे थे, खूब आत्मीयता से बात कर रहे थे. चार बजे उठकर रनिंग, फिर आधा घंटा गार्डन में और एक घंटा `इंडिया टीवी’ के लिए योगाभ्यास करवाने के बाद उनकी आवाज में या चेहरे पर कहीं भी ऊबन का भाव नहीं था. फोन खत्म करके सीधी सादी स्पायरल डायरी में दस रुपए की बॉल पेन से टिप्पणियां लिखते गए.

रास्ते में एक गांव आया-औरंगाबाद (महाराष्ट्र वाला शहर अलग, जिसे शिवसेना ने संभाजीनगर बनाने के लिए खूब उठापटक की थी लेकिन अब कांग्रेस-एनसीपी के साथ सत्ता पर बैठने के बाद शिवसेना ने उसे लेकर मौन धारण कर लिया है). गांव में एक दुकानदार ने स्वामीजी की गाडी को पहचानकर भावपूर्वक नमन किया. शुरुआत का पूरा रास्ता संकरा था, इसीलिए आगे की पुलिस कार को सायरन बजाकर सामने से आनेवाले वाहनों को हाथ से इशारा करके दूर खडे रहने के लिए कहना पड रहा था. मैने देखा कि स्टेट ट्रांसपोर्ट की बसों, निजी वाहनों, मोटर साइकिल इत्यादि जो भी वाहन थे, उसमें से लोग झांककर भावपूर्वक स्वामीजी को नमन करके उनका अभिवादन करते जा रहे थे.
एक दो जगह पर थोड़ा कच्चा रास्ता आय. ड्रायवर अपनी रोज की आदत के अनुसार स्पीड में ले जा रहा था. लेकिन स्वामीजी ने पिछली सीट पर बैठे हम लोगों को तकलीफ न हो, इसीलिए दोनों बार गाडी धीमी चलाने को कहा. बाकी, उन्हें तो ऐसे रास्तों पर चलने की रोज की आदत होगी, इसीलिए तो ड्रायवर एक ही रफ्तार से चलाने का आदी हो गया होगा.
पंद्रह बीस मिनट बाद स्वामीजी ने पीछे देखकर पूछा,`कैसे हैं, आनंद में हैं ना, भाई!’ मैने कहा,`मौन की प्रसन्नता है, स्वामीजी!`
स्वामीजी समझ गए थे कि मैं विवेक रखकर मौन हूं. उन्होंने सामने से स्मॉल टॉक शुरू की. बातचीत करते करते पतंजलि युनिवर्सिटी के ऑडिटोरियम तक पहुंच गए. उतर कर स्वामीजी ने पूछा,`वॉशरूम जाना है?’ हमने ना में हाथ हिलाया. इतना ध्यान? और वह भी एक अनजान व्यक्ति का जिससे अभी दो दिन पहले ही वे पहली बार मिले! फिर सिक्योरिटी के लोगों को सूचना दी कि,`ये मेरे गेस्ट हैं, वीआईपी पंक्ति में बिठाने की व्यवस्था कीजिएगा.’
हम अपनी दी गई सीट पर बैठ गए. हमसे तीन सीट छोड़कर आचार्य बालकृष्ण और उनके पास ही स्वामीजी बैठनेवाले थे.
ठीक साढ़े नौ बजे बापू का आगमन हुआ. व्यासपीठ पर विराजमान हुए. कई लोग गुलाब का फूल लेकर मानस की पोथी पर चढ़ा रहे थे. मुझे इस तरह से स्टेज पर जाकर बापू से मिलने में संकोच हो रहा था. लेकिन किसी ने कहा कि,`बापू ने आपको देखा है, ऊपर बुला रहे हैं.’
मैं तुरंत खड़े होकर स्टेज पर गया. व्यासपीठ पर माथा स्पर्श करके प्रणाम किया. दो वर्ष से अधिक समय बाद बापू के दर्शन हो रहे थे. कारोना का पहला लॉकडाउन शुरू होने से पहले हालचाल पूछने के लिए उनका फोन आया था तब मैने उन्हें वचन दिया था कि तलगाजरडा आकर आराम से भेंट करूंगा. अपने मित्र के साथ तय कर लिया था कि कोरोना के कारण इस बार किस तरह से मुंबई से तलगाजरडा जाना है. लेकिन कुछ ही दिनों में लॉकडाउन शुरू हो गया. तलगाजरडा नहीं जा सके.

कारोना काल में हम तो घर में ही थे. दो वर्ष तक मुंबई से बाहर पांव तक नहीं रखा. लेकिन ने धीरे-धीरे कथाएं पुन: आरंभ की. कोरोना के समय पहली कथा उन्होंने अपने तलगाजरडा स्थित निवास स्थान पर ही बिना किसी श्रोता, बिना किसी संगीत मंडली के की थी. उसके बाद तीनेक श्रोताओं को लेकर की. तत्पश्चात दर्जन-दो दर्जन श्रोता रहते. उसके बाद थोडे अधिक श्रोताओं को सुरक्षित अंतर पर बिठाकर कथा की. अब सारा काम रेगुलर होने लगा है. ऐसे कठिन काल में भी वे पैर मोडकर बैठे नहीं रहे. आपात्काली में क्रियाशील रहकर वक्त बिताकर तंदुरुस्त रहे बापू के दर्शन करके मेरी आंखों में खुशी के आंसू आ गए. बापू को प्रणाम करके उनके प्रसन्न चेहरे के भाव को मैने देखा. बापू ने व्यासपीठ से ही, मंच पर सोफा पर विराजमान स्वामी रामदेव की और देखकर इशारे मानो ये कहा कि,`अच्छा हुआ, आप एक दिन के लिए योगग्राम के नियमों में अपवाद करके इसे यहां ले आए.’

स्वामीजी ने भी मुस्कुराते हुए दोनों हाथ जोड़कर मौन से ही इशारे में कहा,`बापू, आपकी आज्ञा हो तो कुछ भी कर सकता हूं!’
मंच से उतरते समय दोनों हाथ जोडकर स्वामीजी का आभार व्यक्त किया. स्वामीजी के चेहरे पर `मिशन एकंप्लिश्ड’ जैसा स्मित था.

बापू की हर दिन की कथा के आरंभ होने से पहले स्वामीजी छोटी सी प्रस्तावना रखते हैं. स्वामीजी ने कहा,`बापू, हमने रामकथा पहली बार आप ही से सुनी…और हमारे बच्चों ने भी आप से ही सुनी.’
इसका कारण यह है कि स्वामी रामदेव महर्षि दयानंद सरस्वती की जिस परंपरा में पले-बढ़े हैं, उसमें राम या कृष्ण के बदले वेदों-उपनिषदों को प्राधान्य दिया जाता है. स्वामीजी ने कहा,`(इस कथा का आयोजन हमने किया तो) लोग कहने लगे कि रामदेव तो बापू के बहकावे में आ गया. मैने कहा,`हम तो आ गए, तेरे को भी आना है तो तू भी आ जा. पहली बार गुरुकुल में रामनाम कीर्तन हो रहा है, हनुमान चालीसा भी हो रहा है. हमारे बहुत से बच्चों का हनुमान चालीसा नहीं आता था…हमने भी याद किया!’

स्वामीजी ने इसी संदर्भ में आगे कहा,`हमें न किसी से सर्टिफिकेट लेना है, न किसी को सर्टिफिकेट देना है. अपने स्वधर्म में, अपने नियमों में, अपने सिद्धांतों में दृढ़ता ज़रूरी है लेकिन दृढ़ता के साथ साथ उदारता (भी होनी चाहिए). संकीर्णता जहां होती है, भेद जहां होता है वहां धर्म, सत्य, योग कहां से पनप सकता है? बापू, आप हमें श्लोक से लोक में ले आए. हमने श्लोक-मंत्र बहुत पढ़े…हजारों, हजारों. लेकिन हम वैदिक परंपरा के साथ अपनी सनातन परंपरा की जो कथाएं हैं, प्रवचन हैं…हमारे गुरुकुल में संगीत तो प्रवेश कर गया, राम-हनुमानजी सब प्रवेश कर गए, कल आपने रास भी प्रवेश करा दिया. रास! हमको रास, रास नहीं आता था. कोई रास बोले तो हमारे साधु भाग जाते थे!’
यहां (पुराणोंवाली रासलीला नहीं परंतु) गुणातीत, देहातीत रास की बात है, ऐसा स्पष्टीकरण स्वामीजी ने दिया. स्वामीजी ने कहा,`बापू, आपके साथ मेरा आत्मसंबंध है, गुरुसंबंध है, एक अतीन्द्रिय संबंध है. प्रेम और विश्वास का संबंध है…आपके चरणों में प्रणाम, बापू.’
स्वामीजी ने सोफा पर बैठकर अपना वक्तव्य पूर्ण करके ऑडिटोरियम में बैठकर कथा श्रवण करने के लिए मंच से उतरने से पहले बापू को साष्टांग दंडवत किया और फिर मानो कुछ याद आया हो, स्वामीजी फिर सोफे पर बैठकर वहां रखे माइक पर बोले,`एक बहुत प्रिय आत्मा हमारे बीच आए हुए हैं…उनका नाक क्या है? सौरभ…सौरभ शाह…यहां बैठे हैं (फिर कुछ कंफ्यूजन हुआ तो उसमें कोई चूक तो नहीं हो रही, यह पक्का किया) सौरभ भाई या गौरवभाई…अंत में कंफर्म हुआ कि सौरभ शाह ही!) बहुत बड़े बुद्धिजीवी हैं, वे जब आए थे, बापू…जब साढ़े तीन सौ शुगर…बहुत मीठे-मीठे आए थे…(पांच-छह दिन में) ढाई सौ,….फिर बोले बाबा, ये (चमत्कार) हो क्या रहा है…तो ये भी आ करके बोले….कि मेरे को यहां पूरे पचास दिन कायाकल्प करना है…और हमसे पहली बार मिले हैं लेकिन सौरभभाई ने पतंजलि के बारे में बहुत लिखा है, बहुत बड़े लेखक हैं, पत्रकार हैं, बुद्धिजीवी हैं. एक बार इनका भी हम बहुत बहुत अभिनंदन करते हैं…और बापू के अनुरागी हैं, बापू से इनका अनुराग है…तो सौरभभाई आप का भी…(स्वागत है).’
स्वामीजी मंच से उतरकर सभागृह में बैठ गए. बापू की `मानस:गुरुकुल’ कथा का यह पांचवां दिन है. बापू की अनेक कथाएं रुबरू और टीवी पर लाइव सुनी है, तीन बार तो प्रतिदिन की रामकथा लिखी भी है. मैं कहता रहता हूं कि बापू अपने श्रोताओं को रामायण द्वारा आरंभ में बालमंदिर की कक्षा में ले आए, उसके बाद वे श्रोताओं को प्राथमिक कक्षा में ले गए. फिर माध्यमिक कक्षा में, उच्च माध्यमिक कक्षा में और स्नातक कक्षा में ले गए. तत्पश्चात पोस्ट ग्रेजुएशन-स्नातकोत्तर कक्षा में पढाया और अब श्रोताओं को रामायण द्वारा पी.एचडी. लेवल पर ले गए हैं. लेकिन आज की कथा सुनकर मुझे लगा कि यहां गुरुकुल में आकर बापू अपने श्रोताओं को पीएचडी से भी आगे का अध्ययन करवा रहे हैं.











दोनों विभूतियों से एक साथ संपर्क। ऐसा सौहार्द मिलता रहे। अद्भुत।
Ap ki likhavat me katha sunna bhi achcha lagta hai dhanywad om jay siyaram
सौरभभाई,
आपके भगीरथ प्रयाससे पूरी दुनियाको बाबाजीके योगग्रामके स्वानुभवका तादृश दर्शन आपकी कलमसे मिलेगा l
साथ साथ पूज्य बापू और पूज्य स्वामीजी जैसे महान पुरुषोंके आपके प्रति आत्मीयता, प्रेम और आदरसे आपकी महानताकी भी हम सबको प्रतीति हुई l