`संसार में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान न हो’ – हरिद्वार के योगग्राम में १८ वॉं दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल द्वितीया, विक्रम संवत २०७९, सोमवार, १८ अप्रैल २०२२)

स्वामी रामदेव कल और परसों राष्ट्रपति भवन में योग शिबिर करने गए थे. राष्ट्रपति भवन के गार्डन में वहां के सीनियर अधिकारियों और समस्त स्टाफ को योग की प्रेरणा-तालीम देकर फिर से योगग्राम आ गए हैं.

आज स्वामीजी ने कहा कि रोग होने के कई कारण होते हैं: `कम शारीरिक गतिविधि, अधिक भोजन, तनाव, अस्वास्थ्यकर जीवनशैली, आनुवांशिक कारण, बैक्टीरियल/ वायरस/ फंगल डिसीज़, प्रदूषण के कारण होनेवाले रोग, एक रोग के कारण होने वांले दूसरे रोग, ड्रग्स (दवाओं) के विपरीत प्रभाव के कारण होने वाले रोग, अलग अलग ऋतुओं के कारण होनेवाली विभिन्न एलर्जियों के कारण होने वाले रोग… इन सभी कारणों को मिलकर कहना हो तो कहा सकता है कि हमने अपनी सनातन जीवन पद्धति छोड दी है इसीलिए ये सारे रोग शरीर में प्रवेश करते हैं. व्यापक रूप में कहें तो हमने योग-यज्ञ, आयुर्वेद, नेचरोपथी-निसर्ग-प्रकृति से मुंह मोड लिया, इसीलिए विकृतियॉं प्रवेश कर गई हैं. फिर एक बार योग की तरफ, यज्ञ की तरफ, आयुर्वेद की तरफ, वेदों की तरफ लौटें, निसर्ग की ओर मुड़ें-फिर देखें, जीवन में कोई रोग रहेगा ही नहीं. ये सभी रोग दूर करके आपको यहां से वापस भेजते हैं. खाली प्रवचन-भाषण नहीं करते, केवल आश्वासन नहीं देते….’

स्वामीजी जो कुछ भी कहते हैं उसके पीछे केवल उनका बरसों का अनुभव ही नहीं होता, बल्कि लेबोरेटरी के प्रमाण होते हैं- प्राणायाम के फायदे, योगासन, आयुर्वेद की दवाएँ-सभी के बारे में रिसर्च करके प्रमाणपत्र प्राप्त कर, वे बात करते हैं.

स्वामीजी ने आज कहा कि,`केवल एक-दो सप्ताह से लेकर एक-दो महीनों के लिए अपनी जीभ पर नियंत्रण रख लें, खाने पीने पर नियंत्रण कर लें. इतना करेंगे तो सारा जीवन बदल जाएगा- आपके पुराने दिन वापस लौट आएंगे, बचपन के-जवानी के. आपने गलतियां तो की ही हैं-थोडे समय की मज़ा, सारी जिंदगी की सज़ा. थोड़ी देर के लिए रसगुल्ला खाए, पानी-पुरी खाई, टेढ़ी-मेढ़ी जलेबियां खाई और खुद टेढ़े-मेढ़े हो गए, गोल गोल लड्डू खाकर खुद लड्डू गोपाल बन गए! थोड़ा तो संयम रखिए. इतने मजे से-जोर से खाया है तो एक बार उपवास भी जोर से-मजे से कर डालो. एक बार मन पक्का करके थोड़ा कॉन्फिडेंस ले आओ. कई लोग तो एक-एक महीने का उपवास आसानी से कर लेते हैं, दो-दो महीने के भी करते हैं. और हम उपवास में अतिवादी नहीं बनते. हम तो कहते हैं कि उपवास में लौकी का रस पी लो, उसमें तुलसी, पुदीना, नींबू डालो. लौकी की सब्जी खाओ, लौकी का सूप बना लो. केवल सेब खाकर उपवास करो. सिर्फ अनार खाकर उपवास कर लो, पपीता या तरबूज पर रहकर उपवास करो. कई लोगों को खाए बिना चैन नहीं पड़ता. मूड स्विंग हो जाता है. तो एक लीटर तरबूज का जूस पी जाओ, कौन रोक रहा है आपको. जूस के बजाय खाएंगे तो अधिक अच्छा है. जिन्हें ज्यादा कफ-कोल्ड हो, उन्हें खजूर पर रहकर उपवास करना चाहिए. जलोपवास हो सकता है-केवल पानी पर रहकर. सूपोपवास कर सकते हैं-केवल सूप पिएं. फलोपवास, शाकोपवास हो सकता है. जिनके शरीर में पानी अधिक जुट गया हो, वे निर्जला उपवास भी कर सकते हैं. उपवास में तीन चीजें कभी न खाएँ. एक तो अनाज और उसमें भी गेहूँ और चावल तो बहुत ही हानिकारक हैं. अनाज में इतनी सारी विविधता मिलती है, वह खाइए. आज से मीठा बंद, नमक भी बंद. बीपी डाउन हो जाय तो थोडा सैंधव-चुटकी भर ले लो. उसकी भी जरूरत नहीं होती. अश्वगंधा या गरम पानी में शिलाजीत लेनी चाहिए. घोडे की तरह दौड़ने लगेंगे. काफी सारे लो बीपी वाले जब चक्कर आता है तब पानी में आधा चम्मच नमक और चार चम्मच शक्कर डालकर पीचे हैं. दोनों ही ज़हर हैं. ऐसी ऊटपटांग आदतों में क्यों फंसते हैं‍. जिन्होंने आपको ऐसी सलाह दी है वे बेवकूफ हैं. हमें बहुत सारी गलत बातें कही गई हैं-बीमारियों के बारे में, धर्म के बारे में, संस्कृति के बारे में, रीतिरिवाजों के बारे में, अध्यात्म के बारे में, राजनीति के बारे में, पूजापाठ के बारे में, शास्त्रों के बारे में, अभ्यास के बारे में, खेती और बिजनेस के बारे में, कमाई के बारे में-अनेक भ्रांतियां हमारे मन में घुसा दी गई हैं. इनमें से कई बातों के संदर्भ में गलतफहमियां मुझे दूर करनी हैं. पहले तो बीमारियों के संबंध में गलतफहमियों को दूर करने का काम कर रहा हूं…हमसे गलत कहा गया है कि बीपी, शुगर, थायरॉइड, दमा, आर्थराइटिस, जैसी अनेक बीमारियों का कोई इलाज नहीं है. दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है कि जिसका इलाज न हो-चाहे वह बीमारी हो, चाहे वह व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक हो, उसका इलाज तो होगा ही. कई लोग कहते थे कि सुबह सुबह उठते हैं तो अजान सुनाई पड़ती है, हमें परेशान किया जाता है-आज कल उसका भी इलाज हो रहा है! उनकी मस्जिद के सामने हनुमान चालीसा गाई जा रही है. वे लोग पूछते हैं:`ये सब क्या चल रहा है?’ तो जवाब मिलता है:`तू क्यों (लाउडस्पीकर) बजा रहा है!’ वे लोग शिकायत करते हैं कि,`आप शोर मचा रहे हैं’ तो उन्हें जवाब मिलता है:`तो क्या आप इतने वर्षों से (लाउडस्पीकर द्वारा) शांति फैला रहे थे?’ हर समस्या का समाधान है-युक्रेन और रूस की समस्या का भी समाधान आएगा-हर समस्या का इलाज होना है-चाहे युद्ध से हो या योग से हो, चाहे शांति से हो या क्रांति से.’

स्वामीजी जो कुछ भी कहते हैं उसके पीछे केवल उनका बरसों का अनुभव ही नहीं होता, बल्कि लेबोरेटरी के प्रमाण होते हैं- प्राणायाम के फायदे, योगासन, आयुर्वेद की दवाएँ-सभी के बारे में रिसर्च करके प्रमाणपत्र प्राप्त कर, वे बात करते हैं. कोरोना के समय `कोरोनिल’ की असरदार दवा बाजार में जब प्रस्तुत की तब उसकी हर किट के सथ प्रमाणपत्र रखा जाता था. अभी भी रखा जाता है. तमाम औपचारिकताएं पूर्ण कर, अनुमतियां लेकर जब `कोरोनिल’ बाजार में आई तब मेडिकल माफियाओं ने मीडिया-माफिया की मदद से मानो भूकंप आ गया हो, इस तरह का कोहराम मचाया था. अदालतों में केस हुए. सरकार को डराया गया. ब्यूरोक्रेट्स को और न्यायतंत्र के पीठाधीशों को हतप्रभ कर दिया गया था. `कोरोनिल’ पर रातों रात प्रतिबंध लगा दिया गया. कई देशों ने उसके आयात पाबंदी लगा दी. समय बीतने पर भारत में यह प्रतिबंध हट गया लेकिन नुकसान करनेवालों ने टेम्पररी नुकसान तो कर ही दिया.

स्वामीजी ने जोर देकर कहा कि,`पूरे संसार में झूठ फैलाया गया है कि बीपी, शुगर, थायरॉइड, दमा, आर्थराइटिस की बीमारियां ठीक नहीं होतीं और सरकारों ने भी ऐसे लोगों को संरक्षण दे दिया-ड्रग एंड मेडिकल रेमेडी ऐक्ट बनाकर. यदि कोई कहता है कि इन सभी रोगों के अलावा फैटी लीवर, लीवर सिरोसिस, हेपेटाइटिस, पैंक्रियाटाइटिस, टाइप वन डायबिटीज़, लंग फाइब्रोसिस क्योर हो सकता है या हार्ट के ब्लॉकेजेस को रिवर्स करना संभव है, डिमेंशिया, अल्जाइमर्स या पार्किंसन्स जैसे मस्तिष्क के रोग ठीक हो सकते हैं, तो कहेंगे कि इसे जेल में डाल दो. मैं कहता हूं कि डाल दो मुझे जेल में, अगर किसी में साहत हो तो. लोगों में गलतफहमी इस हद तक डाल दी गई है कि जिंदगी भर दवाएं खाते रहो. ये क्या चक्कर है? मरीज़ कहते हैं:`गुरुजी, क्या करें? दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है!’ मैं कहता हूं कि `रास्ता है. मुझे सुनिए तो सही. मैं जो कहता हूं उस तरह से करो.’ तो कहते हैं,`गुरुजी उसमें तो मेहनत करनी पड़ती है?’ मैं कहता हूं कि बिना मेहनत के होता क्या है –क्या बिना मेहनत के खेतीबारी होती है? बिना मेहनत के व्यापार होता है? बिना मेहनत राजनीति होती है? आदरणीय मोदीजी, अमितजी, योगीजी-आज राजनीति के क्षेत्र के जितने भी ऐसे सितारे हैं, वे रात को सपने में भी राजनीति किया करते हैं. ट्वेंटी फोर आवर्स पॉलिटिक्स चलती है उनकी… अपने सपने में नहीं, दूसरों के सपने में आते हैं! ये जब तक ज़िंदा हैं, तब तक अपनी बात बनेगी नहीं-ऐसा कइयों को लगता होगा! किसी भी बात के लिए चौबीस घंटे जीना पड़ता है. मैं योग को २४ घंटे जीता हूं, आयुर्वेद को-स्वदेशी को २४ घंटे जीता हूं.’

जितने पहले नहीं हुआ करते थे, उतने अधिक रोग अब होने लगे हैं, कई तो नए आ गए हैं. कहा जाता है कि उसमें अधिकांश रोग लाइफस्टाइल से जुडे हैं.

भुजंगासन नियमित रूप से करना सीख जाएंगे तो भविष्य में अल्जाइमर्स या पार्किंन्सन्स का शिकार नहीं बनना पड़ेगा. अभी मुझसे भुजंगासन कठिनाई से होता है. ज्यादा प्रैक्टिस करूंगा तो धीरे धीरे पांच और फिर दस, पंद्रह बार से अधिक कर पाऊंगा. हर आसन करते समय प्राणायाम करेंगे तो लाभ अधिक होता है. जैसे कि मंडूकासन करते समय कपालभांति करें तो बेहतर है. सांस पर नियंत्रण तभी आता है जब आप नियमित रूप से प्राणायाम करते हों और बाकी के समय भी अपने श्वास-उच्छवास के प्रति आप इतने ही सभान रहें तो नियंत्रण आता है. एक बार प्रैक्टिस हो जाने के बाद अजागृत मन में ये सब सुरक्षित हो जाएगा और सभान प्रयासों के बिना भी आप लंबी गहरी सांसें लेने लगेंगे. इस कारण से शरीर में अधिक मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचती है, रक्त की शुद्धि अधिक होती है और परिणामस्वरूप शरीर निरोगी होता जाता है. आपका स्टैमिना बढ़ता जाता है. यहां योगग्राम में मैं जहां तक हो सके, सुबह और शाम को चलने निकल पडता हूं. मैने एक सर्किट बनाई है. उसे पूरा करके रूम पर जब लौटता हूं तब शुरू में मुझे बाइस मिनट लगते थे और सांस फूलती थी. धीरे-धीरे सांस फूलना बंद हो गया. फिर थोड़ा अधिक तीव्रता से चलना शुरू किया. बीस में चक्कर पूरा करने लगा. बिलकुल थके बिना. अब १८ मिनट ही लगते हैं और चलने के बाद अधिक ताज़गी महसूस होती है.

जितने पहले नहीं हुआ करते थे, उतने अधिक रोग अब होने लगे हैं, कई तो नए आ गए हैं. कहा जाता है कि उसमें अधिकांश रोग लाइफस्टाइल से जुडे हैं. तो होंगे ही ना. खाने पीने की आदतें बदल गईं, तनाव बढ़ गया-इन सबके कारण अधिक लोग रोगी बनने लगे. सच बात है. लेकिन डॉ. मेहरवान भमगरा ने इसके संदर्भ में एक जोरदार बात कही है जो आपके साथ साझा किए बिना नहीं रह सकता. उन्हीं के शब्दों में रखता हूं:

डॉ. महेरवान भमगरा आगे कहते हैं:`इसमें डॉक्टरों की गलती नहीं है. लेकिन आपको दिए जा रहे लालन-पालन का है. कई डॉक्टरों का इरादा और मुराद-दोनों शुद्ध होते हैं; परंतु इससे क्या होगा?

`पूरी विनम्रता से किंतु बलपूर्वक मैं अपने लंबे अध्ययन के बाद बना अभिप्राय प्रस्तुत करना चाहता हूं: वह ये है कि हाल में हृदय रोगों का, किडनी के रोगों का, डायबिटीज का, और कैंसर का विस्फोट देखने को मिलता है, उसके अपने अलग कारण तो होंगे ही; परंतु मेरे विचार से यह विस्फोट सामान्य तकलीफों तथा सर्दी-खांसी और कब्ज जैसे रोगों को दबाने के लिए-दूर करने के लिए नहीं, बल्कि दबाने के लिए- जो दबाएं ली जाती हैं, उसके कारण हुआ है. ये सारे रोग जड़ जमाकर बैठ जाते हैं और पुराने हो जाते हैं, इसका मुख्य कारण ये है कि इन रोगों के मूल कारणों तक पहुंचने के बजाय, उन रोगों के पीडादायक बाह्य लक्षणों को दबाने केलिए दवाओं का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है. ऐसे रोगों को `इयाट्रोजेनिक डिसीज़’ कहा जाता है. इयाट्रोस यानी डॉक्टर. हिंदी में इसका अर्थ है-`डॉक्टर द्वारा या उसकी दवाओं द्वारा खड़े किए गए रोग’. हाल में वही रोग बड़े पैमाने पर बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे अनेक नए रोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से डॉक्टरों ने या उनकी दवाओं ने ही खड़े किए हैं.’

स्वामी रामदेव जब मेडिकल माफियाओं या ड्रग माफिया शब्द का प्रयोग करते हैं तब कइयों को चटका लगता है (जैसे कि मैं मीडियामाफिया कहता हूं तब मेरी बिरादरी के कमजात भाइयों को बुरा लगता है). एक बात है. यदि कोई पत्रकारों को, मीडिया को या लेखकों को-साहित्यकारों को अपशब्दों से नवाज़ता है तो मुझे कभी बुरा नहीं लगता. हालांकि ४४ वर्ष से मैं इस फील्ड में काम कर रहा हूं और हमेशा इसी से आजीविका कमाता हूं, आज भी. मुझे बुरा नहीं लगता है क्योंकि वे मीडिया में जिस प्रकार के लोगों को टार्गेट करते हैं, मैं वैसा नहीं हूं. सिंपल. इसीलिए मेडिकल फील्ड में जो लोग मेडिकल माफिया या ड्रग माफियाओं से प्रभावित हुए बिना शुद्ध प्रोफेशनल आचरण करते हैं, ऐसे डॉक्टर्स-केमिस्ट्स या पैरामेडिक्स इत्यादि या लेबोरेटरी चलानेवाले या अस्पताल चलाने वालों को बुरा लगने का कोई कारण नहीं है-जब कि उनकी फील्ड के गुंडे बदमाशों और क्रिमिनलों को ड्रग माफिया या मेडिकल माफिया जैसे शब्दों से पहचाना जाता है. सिंपल.

डॉ. महेरवान भमगरा आगे कहते हैं:`इसमें डॉक्टरों की गलती नहीं है. लेकिन आपको दिए जा रहे लालन-पालन का है. कई डॉक्टरों का इरादा और मुराद-दोनों शुद्ध होते हैं; परंतु इससे क्या होगा? उनकी उपचार पद्धति के परिणाम हानिकारक ही होते हैं. ऐसे तो नर्क का मार्ग भी शुभ हेतु से किए गए कर्मों से प्रशस्त नहीं होता? डॉक्टरों के इरादे चाहे कितने ही अच्छे हों लेकिन जहर तो जहर ही रहेगा और उसके परिणाम भी जहर जैसे ही आएंगे.’

आई थिंक, आज यहीं रुकते हैं. कल मिलेंगे.

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