सुप्रीम कोर्ट और राम मंदिर: जा बिल्ली कुत्ते को मार

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – ११ मार्च २०१९)

ये बात लिख कर रख लीजिए कि मध्यस्थी के लिए आठ सप्ताह की अवधि पूर्ण होने के बाद कुछ नहीं होना है. सुप्रीम कोर्ट को २०१९ के आम चुनाव से पहले राम मंदिर के मामले में फैसला नहीं देना चाहिए, ऐसी शरारती अर्जी कांग्रेसी लॉयर कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कब की दे रखी है. इस निवेदन को स्वीकार करके वह कांग्रेस के पक्ष में फैसला देती है और सुनवाई को टालकर चुनाव बाद की तारीफ देता है तो ऐसा आरोप न लगाया जा सके कि कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट को नचा रही है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थी वाला हौवा खडा करके आखिरकार कांग्रेस को ही खुश करने का प्रयास किया है.

याद है, वे चार जज साहब? जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी नौकरी जारी रहने के बावजूद भरे बाजार नरेंद्र मोदी की सरकार के समक्ष आक्रोश जाहिर करने के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलाई थी? यह कृत्य करके ये चारों साहबों ने भारत के न्यायतंत्र के लिए अत्यंत शर्मनाक कदम उठाया था जिसकी तारीफ वामपंथी मीडिया ने की थी. गूगल में अब भी आप `फोर सुप्रीम…’ टाइप करेंगे तो तुरंत ही चारों के कारनामे खुल जाएंगे. जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस जेस्टी चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन भीमराव लोकुरे उस समय के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा के खिलाफ आक्रोश प्रकट करने के नाम पर मोदी सरकार पर तीर चलाया था. इनमें से चलेमेश्वर २२ जून २०१८ को निवृत्त हो गए और निवृत्त होने के अगले ही दिन से उन्होंने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था और रंजन गोगोई ३ अक्टूबर २०१८ को दीपक मिश्रा की जगह चीफ जस्टिस बने. राम मंदिर के केस में मध्यस्थी करने का फैसला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई तथा अन्य चार जजों की बेंच ने दिया है.

ये फैसला घोषित करने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों से उनका अभिप्राय लिया था. राम मंदिर के पक्ष ने मध्यस्थी के लिए मना कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थी के लिए फैसला देने से पहले ये निरीक्षण भी किया था कि `बाबर ने हमला कराया (राम मंदिर ध्वस्त कर दिया गया) जैसी बातों के बारे में हम कुछ नहीं कह सकते. हम तो अभी केवल जो कुछ हो रहा है, उसी के बारे में निर्णय दे सकते हैं.’ (`वी कैन नॉट अनडू बाबर इनवेडिंग एट्सेट्रा. वी कैन ओन्ली डिसाइड व्हॉट हैपेन्स इन द प्रेजेंट’)

तो फिर डिसाइड कीजिए ना, साहब, या तो इस तरफ या उस तरफ. दशकों से जिसे आपने लटकाए रखा है, वह मामला अब लीगली प्रैक्टिकली हल हो चुका है तो क्यों मध्यस्थी का अडंगा डालकर और विलंब कर रहे हैं आप? अयोध्या में राम जन्मभूमि की जगह पर मुसलमानों के दो दावे हैं. एक जिनकी कुछ जमीन होने के दस्तावेज हैं वे शिया मुसलमान सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दायर करके अपना दावा कब का पीछे खींच चुके हैं. इसीलिए कानूनन प्रक्टिकली यह मामला हल हो चुका है. मुसलमानों का दूसरा दावा १९६० के दशक में सुन्नियों ने दायर किया है जो बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना जैसा है. सुन्नी मुस्लिमों को इस जगह पर किसी जमाने में जो बाबरी मस्जिद के नाम से पहचानी जाती थी, उसके साथ उनका कोई संबंध ही नहीं है. सुन्नियों का दावा कोर्ट में टिकने लायक नहीं है, फिर भी कोर्ट अभी तक इस मामले में सुन्नियों को विवाद के पक्षकार के रूप में खारिज नहीं किया है.

मध्यस्थी का नाटक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन महानुभावों की पैनल बनाई है. पैनल के चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के निवृत्त न्यायाधीश इब्राहिम कलिफुल्ला हैं. अन्य सदस्यों में आदरणीय धर्म- अध्यात्म गुरू श्री श्री रविशंकर हैं और सीनियर लॉयर तथा मध्यस्थी से जुडे केस लेना जिनका पुराना पेशा है ऐसे वकील श्रीराम पंचू हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस पैनल में और सदस्यों को शामिल करने की छूट दी है और अभी कुछ और सदस्यों को इसमें शामिल किया जाएगा. असदुद्दीन ओवैसी नामक कट्टरतावादी और भडकाऊ भाषण के लिए पहचाने जानेवाले हिंदूविरोधी तथा भारत विरोधी लोगों ने जैसे ही श्री श्री रविशंकर का नाम सुना, कि तुरंत ही आदरणीय गुरूजी के खिलाफ अपशब्द कहना शुरू कर दिया. ओवैसी के साथी और ओवैसी की हां में हां मिलानेवाले अन्य हिंदू विरोधियों को तथा भारत विरोधियों को भी श्री श्री रविशंकर का नाम इस पैनल में देखकर चुभन हो रही है. वैसे, रविशंकर के रहने से इस पैनल में कुछ खास होनेवाला नहीं है. उनकी चलेगी तो मध्यस्थी की प्रक्रिया का फैसला हिंदुओं के पक्ष में ही आएगा. लेकिन ऐसा होगा नहीं, होने दिया जाएगा नहीं, दो महीने बाद भी ये मुद्दा लटकता ही रहेगा.

रामजन्म भूमि के मामले में पहले भी करीब पांच बार कोर्ट से बाहर आपस में बैठकर मध्यस्थी करने के छोटे बडे सत्तावार प्रयास हुए हैं. किसी में भी सफलता नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट को पता है कि उन्हें स्पष्ट फैसला देकर भगवान की इस जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्मार की अनुमति देनी ही होगी, ऐसा क्लियर कट केस है, पर्याप्त सुबूतों के साथ ये पूरी तरह से दमदार केस है और यदि ऐसा फैसला नहीं दिया गया तो अगले ही दिन सरकार अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के हिंदू विरोधी फैसले की ऐसी तैसी करके जो उचित है लेकिन दशकों से हुआ नहीं है, वह करेगी, राम मंदिर बनेगा ही.

अयोध्या में कारसेवकों ने राम मंदिर निर्माण की तकरीबन सारी तैयारियॉं वर्षों से पूरी कर ली हैं. भव्य मंदिर का नक्शा तो तैयार ही है, मंदिर के स्थापत्य केलिए खंभे, दीवारें इत्यादि सारा कुछ शीघ्रता से स्थानांतरित करके जन्मभूमि तक पहुंचाया जा सकता है, इस प्रकार की तैयारी की गई है. इन सभी को जोडकर गिनती के दिनों में ही भव्य, विशाल तथा मजबूत राम मंदिर बन जाएगा, लेकिन अयोध्या की गलियॉं इतनी सँकरी हैं कि उनमें से क्रेन जैसे भारी वाहनों के आने जाने में विलंब होगा, इसीलिए कुछ सप्ताह बीत सकते हैं. यह जानकारी जब मैं दिसंबर में अयोध्या गया था तब सरयू नदी के दर्शन करके विवादास्पद बना दी गई रामजन्मभूमि पर टूटे फूटे तंबू में विराजमान भगवान राम की मूर्ति के दर्शन भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच करते समय दी गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने जब अपनी जिम्मेदारी टालने का बेहूदा अर्थहीन प्रयास करते हुए फैसला दिया ही है तो हम उसे सिर माथे चढाकर मध्यस्थी की प्रक्रिया को पूरा होने का इंतजार करेंगे. भविष्य में ये बात भी आ सकती है कि दो महीने की इस अवधि को बढाया जाए और अंत में मध्यस्थी से कोई परिणाम जब नहीं निकलेगा तब सुप्रीम कोर्ट को आज नहीं तो कल, झख मारकर फैसला देना ही पडेगा. सुप्रीम कोर्ट का फैसला चाहे जो आए, नरेंद्र मोदी के दूसरे टर्म का शगुन रामजन्म भूमि पर भगवान राम के मंदिर निर्माण से ही होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है. ओवैसी की शेरवानी का पुछल्ला पकडकर चलनेवालों को नहीं बोलना हो तो भले न बोलें, हम तो फेफडे में फुल हवा भरकर बोलेंगे: जय श्री राम.

आज का विचार

दस दिन बीत चुके हैं, पाकिस्तानी सेना मीडिया को हवाई हमले के स्थान पर नहीं जाने दे रही है और इस तरफ भारत में लोग सुबूत दो, सुबूत दो कहते फिर रहे हैं.

-व्हॉट्सएप पर पढा हुआ.

एक मिनट!

पका: कांग्रेस कहती है कि विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान तो हमारे शासन में पायलट बने थे.

बका: अच्छा? तो फिर विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी किसके शासन में लुटेरे बने?

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