संडे मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, रविवार – ३ फरवरी २०१९)
हम ज्यादा सोच सोचकर जीने लगे हैं. छास भी फूंक फूंक कर पीने लगे हैं. अभी के अभी जीने की स्पॉन्टेनिटी खत्म हो गई हैं, बालसुलभ मुग्धता और स्वाभाविक चाल जाती रही है. सब कुछ व्यवस्थित करके किया जा रहा है, शतरंज की चाल की तरह. मैं ऐसा करूंगा तो ये होगा और ऐसा होने के बाद मैं वैसा करूंगा तो मुझे वह मिलेगा, ऐसी गणनाओं ने जीवन को निर्दोष नहीं रहने दिया है. शतरंज के अलावा हमने बिलियर्ड्स में भी महारथ हासिल कर ली है. इस बॉल को निशाना बनाएंगे तो वह उस बॉल के साथ टकराएगी और फिर वह बॉल दूसरे के साथ और अंत में तीसरी बॉल उस बॉल से जाकर टकराएगी जिसे हम असल में टार्गेट करना चाह रहे हैं.
बोलने में, आचरण में सतर्कता रख-रखकर हमारे विचारों में भी कृत्रिमा पैठ बना चुकी है. प्रयागराज में पूज्य मोरारी बापू की रामकथा `मानस:संगम’ के नवें दिन विशेष अतिथि के रूप में आए स्वामी रामदेव ने बापू के प्रति आदरभाव व्यक्त करते हुए माइक पर कहा कि बापू, आजकल बहुत सावधानी रखने का वक्त आ चुका है. इलेक्शन सिर पर है इसीलिए मीडिया किस तरह से हमारी कही बातों का अर्थ निकालेगा, ये कहा नहीं जा सकता. इसका मुझे और आपको अनुभव हो चुका है. इसीलिए मीडिया के सामने बोलते समय शब्दों का उपयोग सतर्कता से करना पडेगा. बापू ने स्वामीजी के प्रवचन के बाद माइक पर कहा; बाबा, आपकी बात सही है, लेकिन हम जैसे हैं, वैसे ही ठीक हैं. सावधानी रखने की जरूरत नहीं है. हम अपनी सहजता से जिएँ, दूसरे लोग भले ही अपनी तरह से हमारी बातों का मतलब निकालते रहें.
किसी की वक्रदृष्टि वाले स्वभाव के साथ एड्जस्ट होने के लिए अपनी सहजता को क्यों खोना चाहिए? कई बार ऐसा होता है कि हमारे आस-पास के लोग हमारे साथ कोई खेल खेल जाते हैं, हमें सब पता चलता है, हमारा मन करता है कि हम उन्हें बता दें कि ऐसे खेल खेलने में हम तुमसे कई गुना अच्छे खिलाडी हैं- लेकिन फिर तुरंत विचार आता है कि क्यों हम उसकी तरह बन जाएँ? एक पुरानी विदेशी कहावत है: सुअर को कीचड में लोटने में ही मजा आता है, अगर वह आपको लडने के लिए वहां आपको बुलाता है तो वहां पर लडने के लिए थोडे ही पहुंच जाना चाहिए!
गलत लोगों के साथ स्पर्धा नहीं करनी चाहिए. आपके सच्चे होने के बावजूद आपको लोग गलत साबित कर रहे हों तो भी आपको सावधानी रखे बिना अपनी सहज चाल से आगे बढना चाहिए.
जीवन सौदेबाजी का खेल नहीं है. जीवन कोई कुटिल राजनीति का खेल नहीं है. जीवन सरल है, प्राकृतिक है, झरने की तरह जहां जगह मिले वहां से बहते जले जाने का नाम ही जीवन है. हमने उसे नहर बना दिया है, एक निश्चित प्रवाह में बांध दिया है. दूसरों को देख देखकर हम भी अपनी सरलता को ढंककर चालबाजी में लिप्त हो गए. थोडी बनावट बचपन से मिली, थोडा पालन-पोषण के वर्षों में आसपास के वातावरण से जुडी और शेष हमने खुद कमा ली. दुनिया में रहना है तो स्मार्ट बनना होगा, चालाक बनना होगा, भोले-भाले रहेंगे तो लोग आपको खा जाएंगे, लूट जाएंगे, खाली कर देंगे. ऐसा सुनकर-सोचकर हम भी सुपर स्मार्ट बनने के चक्कर में ढीठ हो गए हैं, चालाक बन गए, तेल देखने लगे और तेल की धार देखने लगे.
कूद पडना चाहिए. ज्यादा सोचे बिना कूद पडना चाहिए. मन हो तो कर देना चाहिए. आगे पीछे का सोचे बिना अंदर से जो आवाज आती है उसका आदर करना सीखना चाहिए. लीक पर चलनेवाली जिंदगी में सुरक्षा की तलाश करने के बजाय तकलीफदायक भले हो, हमारी खुद की जिंदगी होनी चाहिए, इस भावना से जीना चाहिए. अफसोस किए बिना जीना चाहिए. किसी की बराबरी करके हमें भी उसकी तरह बनने की बात भूल जानी चाहिए. किसी के साथ तुलना करके हम उसकी तरह क्यों नहीं हैं, यह सोचकर ईर्ष्यालु बनने की भी जरूरत नहीं है. जिंदगी में कौन आपके साथ है और भविष्य में कौन आपके साथ होगा इसकी परवाह करने भी जरूरत नहीं है. कल क्या होगा इसकी खबर जानकीजी के नाथ को भी नहीं होती और रामजी से बडी हस्ती तो हैं नहीं. फिर क्यों फिकर करनी? जो कुछ भी करना है वह इसी एक जिंदगी में कर लेना चाहिए. और अभी तो कितना कुछ करना बाकी है? तो सोचना में, छास फूंकने में वक्त क्यों बर्बाद किया जाए? लीजिए, मैं तो चला. आपको साथ आना हो तो चलिए.
आज की बात
हाय वो लोग जो देखे भी नहीं,
याद आएं तो रुला देते हैं.
दी है खैरात उसी दर से कभी,
अब उसी दर पे सदा देते हैं
आग अपने ही लगा सकते हैं
गैर तो सिर्फ हवा देते हैं.
– स्व. मोहम्मद अलवी
संडे ह्यूमर
बका ने स्वर्ग में जाकर यमराज से पूछा: यहां दीवार पर इतनी सारी घडियां क्यों लटकाई गई हैं.
यमराज: लोगों के झूठ गिनने के लिए. वहां पृथ्वी पर जब कोई झूठ बोलता है तब यहां पर घडी के कांटते घूमते रहते हैं.
बका: ये बंद घडी किसकी है!
यमराज: नरेंद्र मोदी की. वे जीवन में कभी झूठ नहीं बोलते इसीलिए उनकी घडी चालू ही नहीं हुई.
बका: ओहो, ये बात है? तो फिर मुझे राहुल गांधी की घडी दिखाइए?
यमराज: राहुल गांधी की घडी यहां नहीं है. वो हमारी नर्क की ऑफिस में टेबल फैन के रूप में इस्तेमाल की जा रही है.