प्रसन्नता और उद्विग्नता

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार – ११ सितंबर २०१८)

आपने कई बार ऐसा अनुभव किया होगा कि बिना किसी कारण आपको बेचैनी सताती रहती है, अकारण ही मन में क्लेश-उद्वेग या अकुलाहट होती रहती है. कभी तो मन किसी प्रत्यक्ष कारण के बिना प्रसन्नता महसूस होती है, ऐसा भी होता है. धीरे धीरे सीटी बजाकर किसी फेवरिट गीत का ट्यून बजाने का मन होता है, घर में चलते चलते एक दो स्टेप्स नृत्य करने का मन करता है. खुद से मिलने का मन करता है.

प्रसन्नता और उद्विग्नता- इन दोनों में से कोई भी अकारण पैदा नहीं होता. ऐसा भी हो सकता है कि कोई प्रत्यक्ष कारण न हो लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है कि आपको नजर नहीं आ रहा है तो कारण का अस्तित्व ही नहीं है. कोई अच्छी खबर सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है या बुरी खबर सुनकर या किसी के साथ खटपट हो जाने पर मन उद्विग्न हो जाता है, ऐसा होना आम बात है. लेकिन बिना किसी कारण (किसी `प्रत्यक्ष’ कारण के बिना) के मन में प्रसन्नता या दुख का अनुभव कैसे होता है?

मन कंप्यूटर की तरह होता है. कंप्यूटर जब प्रचलित होने लगा तब एक टर्म बहुत ज्यादा प्रचलित हुआ: गार्बेज इन, गार्बेज आउट (जी.आई.जी.ओ.). कंप्यूटर अपने आप कुछ नहीं कर सकता था (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जमाना आने में अभी देर थी. ए.आई. केवल साइंस फिक्शन तक ही सीमित था- यह उस जमाने की बात है) कंप्यूटर में आप जो फीड करेंगे, वही आपको वह वापस देगा. आप उसमें जोडने का प्रोग्राम डालेंगे तो उसकी गणना केवल जोडने तक ही सीमित रहेगी, वह घटाने- भाग देने – गुणा करने का काम नहीं कर सकता. जोडने के अलावा भी परिणामों की जरूरत है तो आपको उसके लिए प्रोग्राम बनाकर कंप्यूटर में फीड करना होगा. वर्ग या वर्ग मूल, स्क्वेयर या स्क्वेयर रूट के प्रोग्राम बनाकर फीड करेंगे तो वह उसके अनुसार गणना करेगा. उससे एडवांस्ड गणना के प्रोग्राम्स फीड करेंगे तो आपका कंप्यूटर उतनी एडवांस्ड गणनाएं करने लगेगा. मजाक में कहें तो जो गार्बेज, जो कोई `कचरा’ आप कंप्यूटर में डालेंगे, वही `कचरा’ वह आपको लौटाएगा.

कंप्यूटर के बारे में ये सत्य बीसवीं शताब्दि में ध्यान में आया. लेकिन मन के बारे में इस सत्य को हजारों वर्षों से स्वीकार किया गया है. मन को जो भी खुराक देंगे वही खुराक प्रोसेस होकर आपको परिणाम मिलता है. तन के लिए हमने तो हमने स्वीकार कर लिया है कि जैसा अन्न वैसा तन. हम जो कुछ भी खाते हैं, शरीर का गठन वैसा ही होता है. वडा पाव और भेलपुरी के भरोसे रहने वालों का शरीर कमजोर ही बनेगा. पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में रहनेवाले, पलने वाले जो खुराक लेते हैं, वैसे अन्न द्वारा बना शरीर सशक्त और दमदार ही बनेगा.

जैसा संग, वैसा रंग केवल दोस्ती में ही नहीं देखने को मिलता. हमारे मन के साथ भी ऐसा ही हुआ करता है. जीवन में यदि संतोष नहीं होगा, छोटी छोटी बातों पर शिकायत करने की आदत पड गई हो तो मन को कहां से प्रसन्नता का अनुभव होगा. हर बात में दूसरों में मीनमेख निकालने की आदत होगी या फिर खुद को कोसते रहने की आदत होगी तो मन में क्लेश रहेगा ही. इस दुनिया में क्या हो रहा है या इस देश का अब कुछ नहीं हो सकता या ये शहर तो पूरा गड्ढे में जा रहा है या सरकार चोर है या पुलिस अच्छी नहीं है या सब मुझे लूटने बैठे हैं, इस तरह की मानसिकता वाले लोगों को क्या कभी प्रसन्नता का अनुभव हो सकता है? ऐसे लोगों का मन बिना कारण ही जलता रहता है तो इसमें नई बात क्या है?

लेकिन जिन्हें अपने आस पास का वातावरण अच्छा लगता है, उनमें अपने आस पास के लोगों के लिए निस्वार्थ भाव से प्रेम छलकता रहता है, फूल की दुकान में गए बिना ही जिनके आस पास का वातावरण महकता रहता है, जिन्हें जीवन में छोटी-छोटी खुशियां तलाशने की आदत पड जाती है, वे तो बिना कारण ही प्रसन्न रहेंगे. प्रत्यक्षत: कोई अच्छा समाचार नहीं सुनने के बावजूद उनका मन प्रसन्नता का अनुभव करता है.

आप अपने मन को कैसी खुराक देते हैं, उस पर आपकी प्रसन्नता निर्भर होती है. आप मन को जो खुराक देते हैं, वही तय करेगा कि आपका मन बेचैन, उद्विग्नता, अकुलाहट या खिन्नता का अनुभव करेंगे या नहीं.

यह मान्यता, या यह शिकायत गलत है कि मन चंचल है या मन हमारे वश में नहीं रहता है. मन के साथ आमोद-प्रमोद करके हम उसे चंचल बनाते हैं. मन को बेलगाम होकर दौडभाग करने की छूट हम देते हैं और फिर शिकायत करते हैं कि मन काबू में नहीं रहता.

मन को वश में रखने का काम हमारा है. मन प्रसन्न रहेगा या नाखुश, यह तय करना भी हमारा ही काम है. बस, कंप्यूटर के लिए लागू होनेवाली उस बात को याद रखना चाहिए. जैसी खुराक उसे देंगे, वैसी डकार आपको आएगी और कैसी खुराक देनी है तथा कैसी खुराक से दूर रहना है, यह तो हमारे ही हाथ में है न! सही बात है या नहीं?

बिलकुल सही है.

आज का विचार

सिंह यदि गधे की चुनौती स्वीकार कर लेता है तो खुद सिंह को गधा कहा जाता है.

– ओशो

एक मिनट!

बका: पका, आज मेरे गुरुजी ने सपने में आकर मुझे ब्रह्मज्ञान दिया.

पका: क्या ज्ञान दिया?

बका: उन्होने कहा: पत्नी अधिक शांत स्वभाव की हो तो ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है….ऊँचे दर्जे की रिवॉल्वर हमेशा सायलेंसर के साथ आती है!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here