गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, मंगलवार – २७ नवंबर २०१८)
इस देश में मुसलमानों के प्रति किसे प्रेम है? वामपंथी साम्यवादी सेकुलरों को? या फिर हिंदुओं को?
इस देश में मुस्लिमों की परवाह किसे नहीं है? वामपंथी साम्यवादियों, सेकुलरों को? या फिर हिंदुओं को?
सोच-समझकर जवाब दीजिएगा. पढ़ना थोड़ा रोकना पडे तो भी रुककर सोचिएगा. जवाब मिलने के बाद ही शेष लेख पढिएगा.
क्या आपने किसी हिंदू को ऐसा कहते हुए सुना है कि यह गीत मोहम्मद रफी नाम के मुसलमान ने गाया है इसीलिए मैं नहीं सुनता? आपने कभी किसी को ऐसा कहते हुए सुना है कि लता मंगेशकर हिंदू है इसीलिए मैं उन्हीं को सुनता हूं- सुरैया या नूरजहां को नहीं. दिलीप कुमार जैसे महान कलाकार से लेकर फिरोज खान या इवन कादर खान तक कलाकारों ने पैसे कमाए, ख्याति अर्जित की है. ८५ प्रतिशत हिंदू जनसंख्यावाले देश के कारण. आज की तरीख में शाहरूख-सलमान से लेकर इरफान खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी कैसे कमा रहे हैं, वह हिंदुओं की चाहत के कारण ही. इतना ही नहीं, मुस्लिम टैक्सी ड्रायवर, रिक्शा चालक, दुकानदार, बिजनेसमैन, प्राफेशनल्स इस देश में फल-फूल रहे हैं क्योंकि उन्हें हिंदुओं ने अपनाया है, अपना माना है, उनके साथ कोई भेदभाव नही रखा है.
आपको कोई गिना चुना अपवाद मिल सकता है. किसी गांव में कोई सिरफिरा मुसलमान हो तो उसकी दुकान पर नहीं जाना या उसकी रिक्शा में नहीं बैठने का फैसला गांववाले करते हैं तो यह स्वाभाविक है. कोई गुंड जन्म से हिंदू हो और गांव की बहन-बेटियों से छेडछाड करे तो गांववाले उसका भी बहिष्कार करेंगे. लेकिन वामपंथी सोच रखनेवाले मीडियाकर्मी मुस्लिम गुंडे की बदमाशी के कारण गांववाले उसके खिलाफ हुए हैं, ऐसा नहीं कहेंगे. इस बात को सांप्रदायिक रंग दे दिया जाएगा.
क्या वामपंथी सेकुलरों को मुसलमानों से प्रेम है? नहीं. वे मुसलमानों को हिंदुओं के साथ खडा करके अपने क्षुद्र स्वार्थ को सिद्ध करना चाहते हैं. मध्य प्रदेश में भाजपा ने एक मुस्लिम महिला को टिकट देकर चुनाव में खडा किया है. आज कल इंटरनेट पर उभर आए द क्विंट, द वायर, द प्रिंट जैसी सेकुलर न्यूज साइट्स पर तहलका मच गया. ऐसी आधा-पौना दर्जन सेकुलर नाटक करने वाले समाचार चैनलों में से एक ने तो सुनियोजित तरीके से मामले को उठा लिया और भाजपा की उस मु्स्लिम उम्मीदवार का जो मजाक शुरू हुआ किया है, वह तकरीबन बेइज्जती ही है. वामपंथी या सेकुलरों को मुस्लिमों के प्रति प्रेम होता या महिलाओं का आदर करना आता तो वे भाजपा की इस मुस्लिम उम्मीदवार का सिर ऊँचा करके गुणगान करते.
कल को अगर देश के मुसलमान हिंदुओं के पक्ष में राम जन्मभूमि पर राममंदिर ही बनाने की मुहिम चलाते हैं तो मां कसम, ये वामपंथी लोग मुसलमानों के खिलाफ हो जाएंगे. आप लिख लीजिए.
वामपंथी एल.जी.बी.टी कम्युनिटी को भी इसीलिए दुलारते हैं कि यह समलैंगिक तथा तृतीय पंथी जनता हिंदू संस्कृति के खिलाफ बगावत करने के लिए उतर चुकी है. किन्नर समाज में अत्यंत आदर का स्थान रखनेवाली लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी (जिनका ठाणे की मानस:किन्ननर नामक कथा में पूज्य मोरारीबापू ने उचित सम्मान करके उस मंच पर स्थान देकर उनका आदर किया जिस पर उनकी व्यासपीठ थी, यही नहीं, लक्ष्मीजी के तमाम साथियों को भी उचित आदर से स्वीकृति दी थी) ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर ही बनाने की बात कही तो यह सेकुलर वर्ग लक्ष्मीजी पर टूट पडा. बेतहाशा, गंदी भाषा में, किसी तर्क के बिना वामपंथियों और सेकुलरों से प्रेरित संस्थाएं लक्ष्मीजी के खिलाफ बयान देने लगीं, लक्ष्मीजी के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान शुरू हो गया. जब तक लक्ष्मीजी ने खुद के हिंदुत्व को उजागर नहीं किया था तब तक ये सेकुलर खुश थे कि वंचित लोगों को समाज में आदर का स्थान दिया जा रहा है. लेकिन जैसे ही इस देश की संस्कृति या परंपरा की बात आई, तुरंत ये वामपंथी अपनी जाति पर आ गए, उनमें भरी हुई असहिष्णुता फूटकर बाहर आ गई.
इस देश को मुसलमानों से नहीं बचाना है, कांग्रेसियों से भी बचाने की जरूरत नहीं है. इस देश का कोई असली दुश्मन है तो वह वामपंथी विचारधारा वाले लोग हैं. सारी दुनिया में उन्होंने अंधेरगर्दी मचा रखी है, सरकारी व्यवस्था तंत्र को तहसनहस करने पर आमादा हो चुके हैं. भारत में उन्होंने सेकुलवाद का मुखौटा पहन रखा है. भारत का बहुसंख्यक मीडिया उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हैं, क्योंकि ७० साल से नेहरूवाद (जो कि सेकुलरवाद का ही दूसरा नाम है) के कारण उन्हें भारत में बनने वाली सभी सरकारों ने खुली छूट दे रखी है.
यह सेकुलर मीडिया एक तरफ मुसलमानो को हिंदुओं के खिलाफ भडकाती रहती है तो दूसरी तरफ हिंदुओं में आपस में फूट डालती रहती है. जो लोग उनके इस गेम को नहीं समझ सकते, वे बेवकूफ बना जाते हैं. अभी का ताज उदाहरण ले लीजिए. राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनावों की घोषणा होने के बाद इन दोनों राज्यों में भाजपा की स्थिति कमजोर होने का गीत ये मीडियावाले रोज गा रहे हैं. अब हमें तो घर में बैठे बैठे कुछ पता नहीं चलता. इसीलिए हम भी टीवी देख देखकर, अखबार पढकर बोलने लगते हैं कि `इस बार हवा भाजपा के खिलाफ है’ या `भाजपा को एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर से नुकसान होगा.’
जरा सोचिए तो सही. नोटबंदी के समय दिन रात ये मीडियावाले कितना बवेला मचा रहे थे. आम आदमी की कमर टूट गई इत्यादि. लेकिन क्या किसी एटीएम का कांच टूटा? वर्ना दंगे फूट चुके होते. नोटबंदी भारत के आर्थिक जगत की शुद्धि के लिए, देश की प्रगति के लिए एक क्रांतिकारी कदम था यह बात अब सारी दुनिया के विशेषज्ञ मान रहे हैं. लेकिन मीडिया उस समय आपको भरमा रहा था.
मीडिया आपको राजस्थान और मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों के बारे में भी भरमा रहा है. जब उनके द्वारा किए गए प्री-पोल सर्वेक्षणों का निष्कर्ष उनके पक्ष में नहीं आया तब उन्होंने ये कहना शुरू कर दिया कि बुकी कह रहे हैं कि भाजपा हारेगी. अरे भले मानस, ये बुकी कब से इस देश का भविष्य तय करने लगे? ये कोई क्रिकेट मैच है क्या कि जिसका रिजल्ट पहले से ही फिक्स करने में बुकी सफल होंगे.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस टिकनेवाली नहीं है यह स्वीकार करने में मीडिया को देर लगी. अब वे खुद थूका हुआ चाट रहे हैं कि मध्यप्रदेश में भाजपा को हराना आसान नहीं है, क्योंकि ये तो हिंदुत्व का गढ है. राजस्थान में भाजपा जीतती है तब भी इन मीडिया के दलालों के पास फिर से एक बार `तर्कबद्ध’ कारण होंगे : हुआ ऐसा कि….
… आप ऐसे विश्लेषण देखते रहिए, पढते रहिए और उल्लू बनते रहिए. मनोरंजन है यह सब. राजस्थान – मध्य प्रदेश या बाकी के तीनों राज्यों के चुनावों का परिणाम चाहे जो आए, २०१९ के लोकसभा चुनाव में मोदी का बाल भी बांका नहीं होगा. २०१४ की तुलना में कम से कम १० प्रतिशत (यानी २८) से अधिक सीटें भाजपा को मिलेंगी. बुकी होता तो दस के भाव से बेटिंग लेना शुरू कर दिया होता.
आज का विचार
तुम जो बिछडे हो जल्दबाजी में,
यार तुम रूठ भी तो सकते थे.
– मेहसर आफरीदी
एक मिनट!
बका: विराट – अनुष्का ने इटली में विवाह किय, प्रियंको चोपडा निक के साथ जोधपुर में डेस्टिनेशन वेडिंग करनेवाली हैं, रणवीर-दीपिका इटली में शादी करके आए. पका, तू कहां शादी करने की सोच रहा है?
पका: गांव के पंच की बाडी में.