समलैंगिक संबंध और भारतीय संस्कृति

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – १२ सितंबर २०१८)

२०१४ का वर्ष भारत के इतिहास में एक नए युग के आरंभ का वर्ष माना जाएगा. यह ऐसा वर्ष था जब कई सुप्रसिद्ध और कंफर्म्ड सेकुलर्स यू-टर्न लेकर हिंदू विचारधारा के पक्ष में बोलने – लिखने लगे. हिंदी में ही नहीं नेशनल लेवल पर ये सेकुलरवादी खुद को हिंदूवादी कहलाने लगे. मैं उन्हें मौकापरस्त मानता हूं. इन बनावटी हिंदुओं ने देख लिया कि देश में हवा किस तरफ बह रही है. हिंदू विचारधारा के लिए ये छद्म हिंदूवादी खतरनाक साबित हो रहे हैं.

वे बात हमारी परंपरा की करते हैं. वेद-उपनिषद, रामायण-महाभारत और प्राचीन संस्कृति की महत्ता का गुणगान करते हैं जिससे कि हम भोलेपन में मान लेते हैं कि ये लोग कितने विद्वान हैं. हम तो ऐसे भी पटर पटर अंग्रेजी-हिंदी बोलनेवालों के बोलबच्चन से तुरंत प्रभावित हो जाते हैं. ऐसा कोई मिलते ही लोग उसे सिर चढाकर नाचने लगते हैं.

टीवी पर भी ऐसे हिंदूवादी चैनल शुरू होने लगे. न्यूज चैनल तो थे ही जो प्री-मोदी युग में हिंदू संस्कृति को, हिंदू जनता और हिंदू परंपरा को गालियां देकर कांग्रेसी एजेंडे को आगे बढा रहे थे, वामपंथियों के इशारे पर नाचते थे और सेकुलरों की जयजयकार करते थे. ऐसे अनेक न्यूज चैनलों ने पोस्ट मोदी युग में पलटी मारी और हिंदुत्व का दामन थाम लिया.

कई विशेष चैनल शुरू हुए जो ऊपरी तौरपर भारतीय संस्कृति का गुणगान करते हुए शुरू में लगते थे. एपिक उन्हीं में से एक चैनल था, लेकिन धीरे धीरे ध्यान में आने लगा कि उसमें सभी के सभी सेकुलर भरे पडे हैं. मुस्लिमवादी भरे हैं जिन्हें ट्रेनिंग मिली है कि हिंदुत्व का गुणगान करने का दिखावा करते हुए हिंदू परंपरा को बदनाम कैसे करना चाहिए. यह एक टीवी के लिए के लिए नया विश्व था. बात हिंदुत्व की करते हैं और हिंदू संस्कृति में आस्था रखनेवालों को भी लगता है कि चलो टीवी जगत में कुछ अच्छा तो हो ही रहा है लेकिन भीतर ही भीतर से वे हिंदू संस्कृति की बदनामी करते हैं. देवदत्त पटनायक ऐसे लोगों के अगुवा लेखक-एंकर हैं. यू ट्यूब पर आप राजीव मलहोत्रा जैसे सच्चे भारत प्रेमी का वीडियो देख लीजिए. एक घंटे से लंबा है. पटनायक की पूरी पोल मलहोत्रा ने खोली है. इस वीडियो के प्रचलित होने से पहले मैने पटनायक की कई पुस्तकें मंगाकर पढी थी और मेरा शक यकीन में बदल गया कि ये आदमी बनावटी हिंदूवादी है. हिंदुओं में मान्यता हासिल करके हिंदू संस्कृति को खंडित करने का एजेंडा लेकर वे चल रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह समलैंगिक संबंधों को अपराध बतलानेवाली धारा ३७७ को इंडियन पीनल कोड से रद्द कर दिया जिसके बाद पटनायक ने टिपिकल सेकुलर अंदाज में घोषित किया भारतीय परंपरा में कहीं भी विमान (पुष्पक) मैन्युफैक्चर करने के प्रमाण नहीं मिलते हैं लेकिन समलैंगिक संबंधों के प्रमाण जरूर मिलेंगे.

स्मार्ट. भोले भाले लोग तुरंत भ्रमित हो जाएंगे, इस तरह की ये दलील है. प्राचीन भारतीय संस्कृति में समलैंगिक संबंधों के प्रमाण तो मिलेंगे ही, इसके अलावा प्राचीन भारत में आपको चोरी, जालसाजी होने के प्रमाण भी मिलेंगे. तो क्या इस कारण से हम ऐसा मान लें कि भारत की प्राचीन संस्कृति चोरी की थी? जालसाजी की थी?

ऐसे तो पांच हजार साल बात मुंबई या अन्य शहरों में खुदाई करते समय गटर निकलेंगे. तो क्या ऐसा मान लें कि भारत में गटर संस्कृति थी? प्राचीन भारत में गे लोग थे. रहे होंगे. तो क्या उसके कारण हमारी संस्कृति होमसेक्शुअल या लेस्बियन संस्कृति बन जाती है?

पहले कई बार ये बात लिखी है और आज फिर एक बार सेकुलर और लेफ्टिस्ट इतिहासकारों द्वारा हमारे मन में भर दिया गया है कि हमारे यहां सती प्रथा थी, बच्ची का जन्म होता था तो उसे जन्मते ही मार डालने की प्रथा थी.

प्रथा यानी सर्वमान्य और सर्वव्यापक व्यवहार. उन सभी ने यदि अपने यहां पुत्री का जन्म होने पर उन्हें दूध में डुबो कर मार दिया करते थे तो उस समय सती प्रथा कैसे संभव हो सकती थी? यदि लडकियां ही नहीं थीं तो समाज में सती कौन होती? यदि सभी स्त्रियां यदि सती हो जातीं तो मेरी आपकी परदादी की परदादी भी सती हो चुकी होती. तो हम जन्मे कैसे? हमारे पूर्वजों में यदि केवल पुरुष ही बचते तो हम और हमारे बाप-दादा किसकी कोख से जन्मे?

एकाध विरल किस्सों को धागे में पिरोने से कोई प्रथा नहीं बनती है. भारत में तो आज हर वर्ष हत्याएं होती हैं, बलात्कार होते हैं (अमेरिका में ऐसे हर अपराध के अनुपात हमसे कई गुना अधिक है, ये आपकी जानकारी के लिए बताया). क्या हम ऐसा कहेंगे कि भारत में खून करने की प्रथा है? भारत में बलात्कार करने की प्रथा है?

अमेरिका में ऐसे जंगली लोग बसते थे जो अफ्रीका से औरतों-पुरुषों को लाकर उन्हें गुलामों की तरह बेचते थे. अब्राहम लिंकन ने उस प्रथा को खत्म किया. मनुष्य की खरीद फरोख्त करनेवाली, उनका हर तरह से शोषण करने वाली जनता ने उनकी औरतों को जब मतदान का अधिकार दिया, उससे पहले ही हमारे यहां पर महिलाओं को मताधिकार मिल चुका था और हमारे यहां पर महिला प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति के पद पर पहुंच चुकी है, उनके यहां आज कि कोई वुमन प्रेसिडेंट नहीं बनी. और ऐसे पाश्चात्य लोग हमें पिछडा बताते हैं.

पर गलती उनकी नहीं है. अपने यहां के ब्राउन साहबों की है. अब भी हमारे आसापास हल्की मानसिकता वाले लोग हैं जिन्हें भारत की आलोचना करने में, भारत की परंपरा का उपहास करने में पैशाचिक आनंद मिलता है. दुर्भाग्य की बात ये है कि आज भी हमारे लोगों में कई लोग ऐसे गंदे लोगों को इंटेलेक्चुअल के रूप में पूजते हैं.

संबंध समलैंगिक हों या विपरीत लिंगी- उसका दिखावा नहीं करना होता. आपकी रुचि पुरुष के रूप में पुरुष में या स्त्री के रूप में स्त्री में हो तो उसके लिए मोर्चे निकालकर दिखावा करने की कोई जरूरत नहीं है. प्राइवेसी में आपको जो करना हो वो करने की छूट पहले भी थी और आज भी है. आधुनिक या लिबरल दिखने के लिए गे होना या गे लोगों को समर्थन देना जरूरी नहीं है, इस बात को जरा समझिए. हमारी संस्कृति में अपवादस्वरूप समलैंगिक संबंधों के किस्से मिल जाएं तो उस कारण से हमारी परंपरा में स्त्री – पुरुष के बीच संबंधों का महत्व घट नहीं जाता. लेकिन अधकचरे और अनपढ तथा नासमझ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खुद को लिबरल कहलाने के लिए अपनी टैक्सी को, अपने एप्स को, अपने प्रोडक्ट्स को रेनबो से रंगना शुरू कर दिया है जो शोचनीय है, निंदनीय है. अमेरिका अपने व्हाइट हाउस को रेनबो से भले रंग ले. एक जंगली संस्कृति की विरासत रखनेवाले देश का अनुकरण हम करें?

इंद्रधनुष और सप्तरंगी कमान के साथ कितने भव्य प्राकृतिक दृश्यों की कल्पना हमारे मन में उभरती है! इन गे लोगों ने उन निर्दोष रंगों को भी छीन लिया.

आज का विचार

जन्म के समय तुमने रुदन देकर भेजा प्रभु,

एक-दो महीने बाद हंसना मैं खुद सीख गया.

– रईश मणियार

एक मिनट!

सास: बहू, जरा चाय ले आना.

बहू: हां मांजी लाई, जरा दाढी बना लूं!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here