गुड मॉर्निंग
सौरभ शाह
कई लोग मानते हैं कि `गाइड’ १९६५ में रिलीज हुई थी. वे आंशिक रूप से सही हैं. `गाइड’ का अंग्रेजी वर्जन अमेरिका में २९ दिसंबर १९६५ को रिलीज हुआ था. भारत में `गाइड’ ८ अप्रैल १९६६ को थिएटर्स में आई. कार्टूनिस्ट आर.के. लक्ष्मण के के बडे भाई सुप्रसिद्ध, कुशल और लोकप्रिय साहित्यकार आर.के. नारायण के उपन्यास पर बनी थी जिसकी पटकथा लिखने की जिम्मेदारी देव आनंद ने पुलित्जर पुरस्कार (१९३२) और नोबल पुरस्कार विजेता (१९३८) पर्ल बक को सौंपी थी. नोबल प्राप्त करनेवाली वे पहली महिला अमेरिकी साहित्यकार थीं.
सचिन देव बर्मन ने १९६५ में रिलीज हुई `तीन देवियां’ के लिए किशोर कुमार से `ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत, कौन हो तुम बतलाओ’ के अलावा और भी दो गीत गवाए थे. तीनों गीत मजरूह सुलतानपुरी ने लिखे थे: `अरे यार मेरी तुम भी हो गजव घूंघट तो जरा ओढो, आहा मानो कहा अब तुम हो जवां मेरी जान लडकपन छोडो…..’ जिसके जवाब में इतराती हुई नायिका कहती है: `जब मेरी चुनरिया मलमल की फिर क्यूं ना फिरूं झलकी झलकी…’ और `तीन देवियां’ का किशोरदा का गाया तीसरा गीत था: `लिखा है तेरी आंखों में किसका फसाना…’
`गाइड’ से लेकर `मिली’ तक की सचिनदा के साथ किशोर कुमार की यात्रा जितनी रोचक थी उतनी ही या शायद उससे भी ज्यादा रोमांचक सफर `बाजी’ (१९५१) से `तीन देवियां’ (१९६५) तक थी. `बाजी’ में किशोर कुमार ने सचिनदेव बर्मन के लिए सबसे पहला गीत गाया. देव आनंद के `नवकेतन’ बैनर के लिए गुरुदत्त द्वारा निर्देशित इस पहली फिल्म में साहिर लुधियानवी के गीत थे: तेरे तीरों में छिपे प्यार के खजाने हैं, मेरे लबों पे देखो आज भी तराने हैं……
उसी वर्ष साउथ की दिग्गज प्रोडक्शन कंपनी ए.वी.एम. की `बहार’ के लिए एस.डी. ने किशोर कुमार से राजेंद्र कृष्ण का ये गीत गवाया: कुसूर आपका , हुजूर आपका, मेरा नाम लीजिए न मेरे बाप का…’
इस मस्तीभरे गीत के अलावा उसी साल `एक नजर’ में किशोरदा ने सचिनदा के लिए राजेंद्र क्रिशन के बोलों को उस जमाने के टॉप कॉमेडियन गोप के लिए गाया: नए जमाने की मोहब्बत निराली बातें हजारों दिल खाली, सोला आने खाली, ये नए जमाने के छोकरे लैवेंडर की बोरियां पावडर के टोकरे, पेट भरे न भरे प्यार करेंगे, आंखों के अंधे आंखें चार करेंगे, गली गली ये मजनू के चले, कैसे फिरते हैं- कोई दिल ले ले, ले ले…
अगले साल १९५२ में गुरुदत्त के निर्देशन में गीता बाली और देव आनंद की फिल्म `जाल’ में बर्मन दा का संगीत था जिसमें किशोर कुमार ने साहिर लुधियानवी के लिखे गीत को आवाज दी थी: दे भी चुके हम नजराना दिल का, जिसके जवाब में गायिका गीता रॉय ने हिरोइन गीता बाली के लिए गाया: अरे छोडो भी ये राग पुराना दिल का…
उसे बाद के वर्ष में सचिनदा ने अपनी पांच में से एक भी फिल्म के लिए किशोरदा से नहीं गवाया. सचिनदा तलत महमूद को ज्यादा काम देते थे. १९५४ में नरगिस, नासिर खान, वनमाला, पारो और जीवन की फिल्म `अंगारे’ आई जिसमें साहिर लुधियानवी ने सचिनदा के लिए ये शब्द लिखे जो युगल गीत के रूप में शमशाद बेगम के साथ किशोर ने गाया: गोरी के नैनों में निंदिया भरी आ जा री सपनों की नीलमपरी… शमशाद बेगम की इस लोरी के शब्दों के बाद जीवन के लिए किशोर कुमार गाते हैं: अरे ओ मेरे जख्मों की फिटकरी आ भी जा क्यों देर इतनी करी… इसी गीत के एक अंतरे में किशोर कुमार गाते हैं: तू हूर है और मैं लंगूर, उल्फत के हाथों से मजबूर हूं, गुस्सा न कर, न कर गुस्सा न कर, ओ मेरी बेसुरी आ भी जा क्यों देर इतनी करी.
उसी साल सलमान-आमिर की `अंदाज’ अपना अपना’ के डायरेक्टर राजकुार संतोषी के पिता पी.एल. संतोषी द्वारा निर्मित-निर्देशित `चालीस बाबा एक चोर’ में भी सचिनदा के संगीत में किशोरदा ने एक गीत गाया: दिल में है बात ऐसी कानों में कही जाए….
ध्यान दीजिएगा कि अभी तक सचिनदा ने किशोर कुमार से अधिकतर कॉमेडी टाइप के गीत ही गवाए. यह ट्रेंड बदला १९५५ में रिलीज हुई `मुनीमजी’ और १९५६ में आई `फंटूश’ से. इन दो फिल्मों से पहले एस.डी बर्मन की संगीत वाली `टैक्सी ड्रायवर’ में एक, `हाउस नं.४४’ में एक और `मद भरे नेन’ में एक गीत किशोरदा गा चुके थे.
सुबोध मुखर्जी के निर्देशन वाली फिल्म में देव आनंद के लिए साहिर के शब्दों को गाया: जीवन के सफर में राही मिलते हैं बिछड जाने को और दे जाते हैं यादें तनहाई में तडपाने को…फिल्म में सिचुएशन कॉमेडी टाइप की है और गीत का आरंभ भी उसी मूड में देव आनंद करते हैं लेकिन साहिर के शब्दों में कितनी संजीदगी है यह आप मुखडे में ही देख सकते हैं. बेशक उसके अंतरे उतने गहरे नहीं हैं, पर दैट्स ओके.
१९५६ में देव आनंद की `फंटूश’ आई. जिसमें सचिनदा के संगीत में किशोर कुमार ने ४ गीत गाए: राहुल देव बर्मन ने दौ साल की उम्र में जो धुन बनाई थी उसका उपयोग करके पिता ने `ऐ मेरी टोपी पलट के आ, ना अपने फंटूश को सता’ गीत बनाया. इसके अलावा एक और हल्का सा गीत फिल्म में था: ऊपरवाला जब भी देता पूरा छप्पर फाड के देता. तीसरा गीत था: वो देखे तो उनकी इनायत, ना देखें तो रोना क्या. और चौथे गीत ने गायक के रूप में शोर कुमार की इमेज ही बदल दी. लोग कहते थे कि किशोर कुमार सीरियस गीत नहीं गा सकते, उनकी आवाज में दर्द नहीं है, ठहराव नहीं है, खामोशी की प्रतिध्वनि नहीं है, पर दुनिया को झुठलाते हुए किशोरदा ने जो गीत गाया उसे सुनकर आपको लगेगा कि क्या ऐसा गीत `फंटूश’ जैसे टाइटल वाली फिल्म में हो सकता है? पर था. सचिनदा के संगीत और साहिर के शब्दों के साथ सौ फीसदी न्याय करते हुए इस स्वर्णिम गीत को किशोर कुमार ने अपनी आवाज से महका दिया था:
दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना,
जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना…
दर्द हमारा कोई न जाने
अपनी गरज के सब हैं दीवाने
किसके आगे रोना रोएं
देस पराया लोग बेगाने
लाख यहां झोली फैला ले
कुछ नहीं देंगे इस जगवाले
पत्थर दिल मोम न होंगे
चाहे जितना नीर बहा ले
अपने लिए कब हैं ये मेले
हम हैं हर एक मेले में अकेले
क्या पाएगा उसमें रहकर
जो दुनिया जीवन से खेले
दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना
जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना
आज का विचार
राहुल गांधी दो ही वजहों से नेता हैं, पुखों की वजह से और मूर्खों की वजह से!
– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ.
एक मिनट!
गुरु: चाणक्य ने कहा है कि एक ही दुश्मन के साथ बार बार युद्ध नहीं करना चाहिए, नहीं तो वह आपका सारा युद्ध कौशल सीख लेगा.
चेला: पति पत्नी के संबंधों में भी ऐसा ही हुआ करता है, गुरूजी. दोनों योद्धा जीवनभर लडते रहते हैं पर एक दूसरे की व्यूहरचना से इतने परिचित हो जाते हैं कि आजीवन युद्ध करने के बाद भी कोई हल नहीं निकलता. तो क्या करें गुरुजी?
गुरु: दुश्मन बदलते रहिए.
(मुंबई समाचार, गुरुवार – ९ अगस्त २०१८)