२६/११ का मुंबई हमला कांग्रेस और पाकिस्तान का सम्मिलित प्रोजेक्ट था?

(हिंदू आतंकवाद का भ्रम: लेख:७)

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(newspremi.com, सोमवार, १ अप्रैल २०१९)

२६/११ की तारीख मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे देश के कैलेंडर में एक काला दिन है. २६ नवंबर २००८ की देर शाम को दस पाकिस्तानी आतंकवादी मुंबई के कोलाबा इलाके में समुद्र किनारे उतरते हैं. ताज और ट्राइडेंट (ओबेरॉय) होटल, कैफे लियोपोल्ड, सीएसटी स्टेशन इत्यादि स्थानों पर आतंक मचाकर कुल १६६ व्यक्तियों की हत्या कर देते हैं और ३०० लोगों को घायल कर देते हैं. आप इसके बारे में अच्छी तरह से जानते हैं. जो पता नहीं हैं ऐसी चौकानेवाली बातें आर.वी.एस. मणि ने अपनी पुस्तक में लिखी हैं.

२००८ की अवधि वह जमाना है जब कांग्रेस सरकार सर्जिकल स्ट्राइक्स के बजाय पाकिस्तान के साथ चर्चा कर रही है. और इस तरहफ उसी वर्ष देश भर में अक्सर आतंकवादी घटनाएँ होती रहती थीं. २००४ से २०१४ तक १० वर्षों में पाकिस्तानी आतंकवादियों के आतंकी कृत्यों से भारत दहल रहा था और `टाइम्स ऑफ इंडिया’ जैसे अखबारों में `अमन की आशा’ कैंपेन चलाकर पाकिस्तान के साथ दोस्ती के नारे लगा रहे थे.

ऐसी ही एक होम सेक्रेटरी लेबल की चर्चा २५ नवंबर २००८ को आयोजित की गई थी (तारीख फिर से पढकर याद रखिएगा). भारत के होम सेक्रेटरी मधुकर गुप्ता ने मणिसर और अन्य साथियों को इस चर्चा में रखने लायक मुद्दे लिखने का काम सौंपा गया था. साथ ही भारत से जो डेलिगेशन पाकिसतान जानेवाला था उसमें कौन कौन जानेवाला है उनके नाम भी फाइनलाइज हो रहे थे.

डेलिगेशन बीएसएफ (सीमा सुरक्षा दल) के विमान से रवाना होनेवाला था और भारत के होम सेक्रेटरी २३ नवंबर का तत्कालीन पाकिस्तानी डिप्टी सेक्रेटरी के साथ अमृतसर से बाय रोड अटारी बॉर्डर पर जाकर वहां की इमिग्रेशन ऑफिस की व्यवस्था जांचकर लाहौर और लाहौर से इस्लामाबाद जाने का कार्यक्रम तय हुआ था.

परंपरा के अनुसार डेलिगेशन में होम सेक्रेटरी के नेतृत्व में गृह मंत्रालय से जुडी विभिन्न एजेंसियों के प्रतिनिधि, इंटरनल सिक्योरिटी तथा विदेश के प्रभारी ऑफिसरों को ले जाना होता है. इस बार बॉर्डर मैनेजमेंट के एडिशनल सेक्रेटरी अनवर एहसान अहमद को भी शामिल किया गया था. मणिसर पाठकों को याद दिलाते हैं कि २००३ जब में ऐसा ही एक प्रतिनिधि मंडल पाकिस्तान गया था तब उसमें बॉर्डर मैनेजमेंट का कोई प्रतिनिधि नहीं था. पाकिस्तान के साथ होम सेक्रेटरी लेवल की चर्चा (एच.एस.एल.टी) में बॉर्डर मैनेजमेंट प्रतिनिधि को शामिल करने कदम अनकन्वेंशनल और अनप्रिसिडेंटेड था. (इस मुद्दे को याद रखिएगा).

और दूसरा मुद्दा ये याद रखिएगा कि उसी अवधि में केंद्रीय गृह सचिव के नाम पर कोर्ट से एक अवमानना की नोटिस मिली थी. यू.पी. के एक सरकारी घोटाले के मामले में कोई विश्वनाथ चतुर्वेदी उसके पिटीशनर थे. इस केस का मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स के साथ कोई लेना देना नहीं था लेकिन कोर्ट से नोटिस आती है तो उसका जवाब देने के लिए आपको उपस्थित रहना ही होता है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष २५ नवंबर २००८ को सुनवाई तय हुई थी.

एडिशनल सेक्रेटरी (बॉर्डर मैनेजमेंट) ने केंद्रीय गृह सचिव को सलाह दी कि आर.वी.एस. मणि को कोर्ट की सुनवाई के लिए लखनऊ भेजा जाय. (धीरे धीरे ये रहस्य खुलता जाएगा). अनवर एहसान अहमद ने कहा कि मणि जब डिर्पार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी और प्रमोशन में काम करते थे तब उनके काम पर मैने (अहमद ने) ध्यान रखा है और मणि को कोर्ट केसेस हैंडल करने का काफी अच्छा अनुभव है. अत: गृह विभाग का प्रतिनिधि मंडल जब इस्लामाबाद गया तब मणिसर ने (जो गृह विभाग में अंडर सेक्रेटरी थे, इंटर्नल सिक्योरिटी विभाग के) शपथपत्र तैयार करवाकर होम सेक्रेटरी के यात्रा पर निकलने से पहले उनके हस्ताक्षर ले लिए.

इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष उस शपथपत्र को प्रस्तुत किया गया. उस समय के असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल आर. द्विवेदी ने गृह विभाग का प्रतिनिधित्व करके उसी दिन शिकायत को रद्द करा दिया और मणिसर ने उसी दिन, २५ नवंबर को शाम दिल्ली लौट जाने का निर्णय किया.

लखनऊ एयरपोर्ट पर मणिसर दिल्ली की फ्‌लाइट पकड रहे थे कि तभी उनके मोबाइल पर (अब वे मोबाइल फोन रखने लगे थे) +९२ वाले नंबर से फोन आया. जिस तरह से भारत का इंटरनेशनल कंट्री कोड +९१ है उसी तरह से पाकिस्तान का कोड +९२ है. मणिसर ने तुरंत फोन काट दिया. फिर से फोन आया. अब उन्हें फोन लेना पडा. उस तरफ मणिसर के ऊपरी (इंटर्नल सिक्योरिटी विभाग के निदेशक) थे. उन्होंने बताया कि डेलिगेशन जिस विषय पर चर्चा कर रहा है, उसका अजेंडा पूरा करना अभी शेष है और यह काम पूरा होने में अभी एक दिन और लगेगा. साहब ने मणिसर से कहा कि डेलिगेशन को पाकिस्तान में एक दिन अधिक रुकने के लिए औपचारिकताएँ आप पूरी कर दीजिएगा.

नई दिल्ली आकर २६ नवंबर २००८ को मणिसर ने एक दिन के एक्सटेंशन की फॉर्मेलिटीज को पूरा किया और तत्संबंधी औपचारिक आदेश इस्लामाबाद के भारतीय उच्चायोग को ईमेल कर दिया.

मणिसर की पुस्तक में लिखा है: `बाद में मुझे पता चला कि डेलिगेशन के प्रतिनिधियों को अधिक ठहरने की कोई इच्छा नहीं थी लेकिन एडिशनल सेक्रेटरी (बॉर्डर मैनेजमेंट) जो डेलिगेशन में होम सेक्रेटरी के बाद सबसे सीनियर सदस्य थे, उन्होंने ने ही होम सेक्रेटरी को यात्रा एक दिन के लिए बढाने की सलाह दी थी. शेष सभी अफसर उनसे जूनियर थे इसीलिए कोई विरोध नहीं कर सका. अंत में पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक के साथ २६ -११-२००८ के दिन एक मीटिंग का आयोजन किए जाने का कारण बताकर एक दिन अधिक ठहरने का निर्णय लिया गया.’

२६ नवंबर को दोपहर में रहमान के साथ हुई मीटिंग के बाद डेलिगेशन के प्रतिनिधियों को घूमने के लिए पाकिस्तान के हिल स्टेशन मरी ले जाया गया. इस्लामाबाद से ३० किलोमीटर दूर स्थित ये हवा खाने की जगह का वातावरण शिमला जैसा खुशनुमा है, जो समुद्र की सतह से ७,५०० फुट ऊंचाई पर है. इसकी सबसे बडी बात ये है कि वहां पर मोबाइल टॉवर्स का सिग्नल बहुत ही मामूली पकडता है.

कुछ समझे?

२६/११ का हमला होने पर भारत के गृह विभाग के सभी उच्च अधिकारी पाकिस्तान में इस तरह से फंस जाएं कि जहां पर कोई भारत से संपर्क ही न कर सके. गृहमंत्री शिवराज पाटील को तत्काल कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया, इसके लिए बहाना मिल जाय.

मणिसर शंका व्यक्त करते हुए लिखते हैं: `क्या भारतीय टीम में कोई मोल (देश विरोधी जासूस) था? हमें नहीं पता. लेकिन इतना तो पता चला है कि एडिशनल सेक्रेटरी (बॉर्डर मैनेजमेंट) का नाम इस डेलिगेशन में किसी राजनेता की सूचना से शामिल किया गया था. वे महाशय (अनवर एहसान अहमद) डेलिगेशन में, होम सेक्रेटरी के अलावा अन्य सभी प्रतिनिधियों से सीनियर थे. अब सरकारी कामकाज में ऐसी प्रथा चलती आ रही है कि दो अधिकारियों को अपने अपने भिन्न मत ऊपरी अधिकारी के समक्ष रखना होता हो तो उन दोनों में से जो सीनियर होगा उसकी राय का वजन अधिक होता है. बाद में पता चला कि इस डेलिगेशन में भारत की दो इंटेलिजेंस एजेंसियों का प्रतिनिधित्व करनेवाले दो अधिकारी थे जो कि जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर आसीन थे. उन दोनों के पास गोपनीय जानकारी थी कि भारत पर कोई आतंकवादी हमला सकता है, इसीलिए एक दिन अधिक यहां ठहरने के बजाय हमें भारत लौट जाना चाहिए, ऐसी राय दोनों की थी. लेकिन एडिशनल सेक्रेटरी (बॉर्डर मैनेजमेंट) का पद दोनों से ऊंचा था इसीलिए होम सेक्रेटरी के सामने वे पूरा जोर देकर बात नहीं कर सकते. इन दोनों जॉइंट सेक्रेटरी में से एक के पास संभावित हमले के बारे में काफी जानकारी थी, इसीलिए पाकिस्तान के होम मिनिस्टर से भेंट करने के बजाय (और मरी हिलस्टेशन पर हवा खाने जाने के बजाय) `मुझे एक अर्जंट काम है’ कहकर वे २६ नवंबर को सबेरे ही दिल्ली रवाना हो गए.’

मणिसर को स्पष्ट रूप से लगता है कि डेलिगेशन के लीडर के रूप में होम सेक्रेटरी को ब्यूरोक्रेटिक हायरार्की के सामने झुकना पडा और अपने प्रतिनिधि मंडल के नंबर टू की सलाह माननी पडी. उस नंबर टू के बदले जिनके पास संभावित हमले के बारे में कुछ जानकारी थी उन पर ध्यान दिया गया होता तो इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जा सकता था. ये हमला जब हुआ तब होम सेक्रेटरी और उनकी टीम दिल्ली में मौजूद होती तो हमलावरों के खिलाफ कदम उठाने में विभिन्न एजेंसियों के साथ अधिक बेहतर तरीके से समन्वय किया जा सकता था और नुकसान भी कम होता, कम लोगों की जान जाती. ऐसा मणिसर का मानना है. वैसे भी ये कॉमनसेंस की बात है. मणिसर ने दूसरा भी एक मुद्दा खडा किया है कि होम सेक्रेटरी लेवल के टॉक्स के लिए आज के टेक्नोलॉजी के जमाने में क्यों सभी महत्वपूर्ण अधिकारियों को एक साथ चर्चा के लिए पाकिस्तान की यात्रा पर भेजा गया? नागपुर में १ जून २००६ को आर.एस.एस. के मुख्यालय पर जब हमला हुआ तब सारा गृह विभाग चर्चा करने के लिए पाकिस्तान पहुंच गया था. (ये तो अच्छा हुआ कि हमारे पास जानकारी थी इसलिए उस हमले में जरा भी नुकसान नहीं हुआ).

आर.वी.एस. मणि ने २६/११ के संदर्भ में कई महत्वपूर्ण सवाल खडे किए हैं जिसका जवाब कांग्रेसी राजनेताओं का कॉलर पकड कर भारत की जनता को मांगना चाहिए.

१) सामान्य रूप से ऐसे प्रतिनिधि मंडल में कभी भी एडिशनल सेक्रेटरी (बॉर्डर मैनेजमेंट) की जिम्मेदारी संभालनेवाले अधिकारी को शामिल नहीं किया जाता है तो इस बार क्यों उन्हें टीम में शामिल किया गया?

२) उस अधिकारी को टीम में लेने का दबाव किसने डाला?

३) डेलिगेशन क्यों अपने पहले से तय कार्यक्रम पर टिका नहीं रहा?

४) होम सेक्रेटरी ने अपने ही दो विश्वसनीय जॉइंट सेक्रेटरी की सलाह को मानने के बजाय डेलिगेशन के नंबर टू की सलाह क्यों मानी?

५) डेलिगेशन में नंबर टू को शामिल करने के पीछे कौन सा एजेंडा छिपा था?

इन पांच सवालों के जवाब खोजने के लिए कोई उच्चस्तरीय जॉंच होती है तो कांग्रेसी नेता नंगे हो जाएंगे. २६/११ के हमले की इससे भी अधिक चौंकानेवाली जानकारियां मणिसर ने दी है.

शेष कल.

आज का विचार

पिछले सप्ताह `होलाष्टक’ बीत गया और इस सप्ताह `गोप्पाष्टक’ गया! `मुंबई समाचार’ से `गुड मॉर्निंग’ को `गुड बाय’ कर दिया गया.

– इलियास शेख (अपनी फेसबुक वॉल पर)

एक मिनट!

बका का बायोडेटा देखकर सेठ ने उसे बहत्तर हजार का वेतन ऑफर किया.

बका बायोडाटा लेकर घर लौट गया: सेठ, बहत्तर हजार तो राहुल गांधी हमें घर बैठे देनेवाला है!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here