गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(न्यूजप्रेमी डॉट कॉम, शनिवार – ३० मार्च २०१९)
सरकारी कामकाज में, ब्यूरेक्रेसी में, प्रोटोकॉल का अत्यंत महत्व होता है. कौन, किसे, कब मिल सकता है और किस तरह से मिल सकता है, इसके नियम होते हैं- कई अलिखित नियम भी हो सकते हैं और कई परंपरागत रूप से चली आ रही रूढियों के अनुसार बने होते हैं. औपचारिकता का पालन करना होता है. एक दूसरे के ओहदे की कद्र करनी होती है.
गृहमंत्री शिवराज पाटील के एडिशनल प्राइवेट सेक्रेटरी ने आर.वी.एस. मणि को (जो कि अंडर सेक्रेटरी के रूप में होम मिनस्ट्री में कार्यरत थे और जिन्होंने `द मिथ ऑफ हिंदू टेरर’ पुस्तक लिखी है) गृहमंत्री की केबिन में जाने को कहा. मणिसर जानते थे कि गृहमंत्रीके साथ किस तरह से पेश आना चाहिए. होम मिन्स्टर का अंडर सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी को बुलाना शायद ही कभी होता होगा. मणिसर जानते थे कि ऐसे मौके पर जब तक `प्लीज हैव अ सीट’ न कहा जाय या इशारे से कहा न जाए तब तक खुद से चलकर कुर्सी खींचकर बैठना नहीं चाहिए. होम मिनिस्टर को (या फिर ऐसे किसी भी कैबिनेट मंत्री या राज्य स्तर के मंत्री को) मिलते समय ब्यूरोक्रेट को अपनी हैसियत के अनुसार साहब के टेबल से दूरी रखनी होती है. ऊपरी अधिकारी साहब के टेबल की निकटतम कुर्सी पर बैठते हैं और जितने भी जूनियर होते हैं, उन्हें उनके टेबल से अधिक दूर बैठना होता है. लेकिन अफकोर्स, साहब की आवाज आपके कान तक पहुंचनी चाहिए. मणिसर ने वही आसन ग्रहण किया जो अंडर सेक्रेटरी को शोभा देता था. उस समय होम मिनिस्टर की केबिन के छोटे सोफे पर दो जेंटलमेन बैठे थे. वे दोनों तथा होम मिनिस्टर खुद- तीनों एक दूसरे के बिलकुल करीब के हों, इस प्रकार का वातावरण था. इनमें से एक राजनेता थे जिन्होंने भविष्य में आतंकवादी घटनाओं के सूत्रधारों का पक्ष लेकर सार्वजनिक बयान दिए थे. होम मिनिस्टर जिस राजनीतिक दल के थे, उसी दल की मध्य प्रदेश की सरकार के वे मुख्य मंत्री रह चुके थे. फिर बाद में तो वे सत्ता से बाहर कर दिए गए थे. पंद्रह वर्ष से उस राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं थी. आतंकवादी घटनाओं के लिए जो भी विभिन्न समूह जिम्मेदार थे उनका खुलेआम बचाव करने के कारण ये महाशय काफी चर्चा में रहे और इसीलिए मणिसर उन्हें चेहरे से पहचानते थे. वे थे दिग्विजय सिंह.
दूसरे महाशय उस मणिसर के लिए अनजान थे. उस अनजान शख्स ने मणिसर से हाल में हुई आतंकवादी घटनाओं की जानकारी मांगी, कितने मरे, हर मामले की जांच कहां तक पहुंची इत्यादि. जिस तरह से वे महाशय मणिसर से जानकारी निकलवा रहे थे, उसे देखते हुए मणिसर को लगा कि ये आदमी पुलिस अफसर होना चाहिए. मणिसर को काफी समय बाद पता चला कि वे अधिकारी कौन थे. दुर्भाग्य से २६/११ के हमले में उनकी मृत्यु हुई. उनका नाम था हेमंत करकरे.
उसके बाद दिग्विजय सिंह ने मणिसर से कई जानकारियां मागी थीं. मणिसर ने गृहमंत्री सहित शेष दोनों को बताया भी था कि अभी उनके डिपार्टमेंट अन्य सीनियर अधिकारी इस्लामाबाद में हैं और उनकी यात्रा पूरी ही होनेवाली है, कुछ ही घंटों में वे सभी दिल्ली पहुंच रहे हैं. ये जानकारी मणिसर के लिए देना इसीलिए जरूरी था क्योंकि किसी को ऐसा न लगे कि होम सेक्रेटरी की अनुपस्थिति में उनका कोई जूनियर ऑफिसर (अंडर सेक्रेटरी) गृहमंत्री तक पहुंच कर सारी जानकारी दे रहा है.
यद्यपि, वे तीनों ही होम सेक्रेटरी के लौटने तक इंतजार नहीं करना चाहते थे. मणिसर को बुलाने के बाद होम मिनिस्टर को तो मानो उस विषय में रस ही नहीं था, इस प्रकार से चुपचाप वे बैठकर तमाशा देख रहे थे. बाकी के दोनों ही मणिसर के साथ मीटिंग कंडक्ट कर रहे थे. दोनों बीच बीच में जो बातचीत कर रहे थे, उससे मणिसर को लगा कि उन्होंने जो जानकारी दी कि इन सभी हमलों में `एक विशिष्ट संप्रदाय के लोग’ (मुस्लिम) ही शामिल हैं, इस सच्चाई से वे दोनों ही खुश नहीं थे.
लेकिन जो फैक्ट था, वो तो था ही. इनवेस्टिगेटिंग एजेंसियों की ओर से इंटर्नल सिक्योरिटी डिविजन को जो कोई भी जानकारी मिलती है वह अत्यंत आधारभूत स्रोतों के अलावा अन्य किसी स्रोत से मणिसर को नहीं मिली थी. लेकिन होम मिनिस्टर की ऑफिस में वे दोनों (दिग्विजय और करकरे) जो खुसुरफुसुर कर रहे थे उससे ये क्लियर था कि मुस्लिमों द्वारा आतंकवादियों की मदद किए जाने की इंटेलिजेंसवालों की खोजी गई कडियों से वे दोनों नाराज थे. जिस तरह से मणिसर से ये दोनों जानकारियां निकलवा रहे थे, उससे मणिसर को स्पष्ट रूप से लगने लगा कि जिन लोगों से ये जानकारी आई थी (इंटेलिजेंस एजेंसियों की ओर से) उन र उन दोनों का विश्वास नहीं था और वे नांदेड, बजरंग दल इत्यादि का उल्लेख करते हुए इन एजेंसियों की विश्वसनीयता पर संदेह व्यक्त कर रहे थे.
नांदेड का किस्सा क्या था? हिंदू टेररिस्ट हैं, ऐसी अफवाह उडाने की शुरूआत इसी केस से हुई. तब तक हमने `हिंदू आतंकवाद’ जैसा कोई शब्द नहीं सुना था.
उन दोनों की बातों से लग रहा था कि नांदेड में कोई बम धमाका हुआ था जिसका संबंध बजरंग दल से था. अब मजे की बात देखिए. होम मिनिस्टर की ऑफिस में १ जून २००६ के दिन मणिसर को बुलाया गया. मणिसर के इंटर्नल सिक्योरिटी डिपार्टमेंट को नांदेड के बम धमाके के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. बाद में मणिसर को पता चला कि सप्ताह भर पहले, २४ मई २००६ को नांदेड में एक बम धमाका हुआ था. उसमें बजरंग दल का हाथ था, इस बारे में भी मणिसर को कैसे जानकारी होगी.
नांदेड के इस केस की थोडी पृष्ठभूमि जाना लेते हैं उसके बाद मणिसर की बात उसके साथ जोडते हैं.
२४ मई २००६ को समीर कुलकर्णी नामक हिंदू के वर्कशॉप में `बम धामाका’ होने का समाचार पुलिस को मिला. समीर कुलकर्णी कभी कभी बजरंग दल के कार्यालय में जाया करता था. इसीलिए ऐसा प्रचारित किया गया कि समीर कुलकर्णी अपने वर्कशॉप में पाइप बम बना रहा था कि तभी बम फूट गया, धमाका हुआ और आग लग गई. सी.बी.आई. ने इस जांच को पुलिस के हाथ से ले लिया. सी.बी.आई. की जांच में सामने आया कि छोटे सेंटरों पर छोटे छोटे व्यवसाय लेकर बैठे हुए लोगों में कई सारे ऐसे हैं जो बिजनेस में मंदी आने पर खुद ही अपनी प्रिमाइसेस में आग लगा लगाकर इंश्योरेंस कंपनी से जालसाजी करके पैसे लेते हैं. समीर कुलकर्णी ने ऐसी ही बदमाशी की थी. वह कोई बमवम नहीं बना रहा था.
सी.बी.आई. के सुपरवाइजरी अफसर तथा सीनियर मैनेजमेंट ने यह जो जांच की थी, उसमें `फेरबदल’ करने के लिए डाले गए दबाव में पडे बिना और कोई चार्ज फ्रेम किए बिना केस को बंद कर दिया. ऊपरवाले आकाओं का कहा नहीं मानने, सच्चाई से छेडछाड करके `बदलाव’ करते हुए (बनावटी) रिपोर्ट तैयार नहीं करने के लिए अधिकारियों को सजा हुई. उनका नाम सी.बी.आई. के अगले डायरेक्टर के रूप में आ रहा था. उन्हें डायरेक्टर के रूप में पदोन्नति नहीं मिली.
जो मामला किसी भी तरह से टेरर या आतंक का था ही नहीं, उसे मीडिया ने खूब चलाया. अब आगमन होता है तीस्ता सेटरवाड का. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सी.बी.आई के खिलाफ शिकायत की. पीयूसीएल नामक एनजीओ भी इस में कूद पडी. पीपल्स यूनियन ऑफ सिविक लिबर्टीज जैसा मोहक नाम रखनेवाली इस संस्था ने भी देश का काफी बडा नुकसान किया किया है. सेकुलर और वामपंथियों के मीडिया के साथ काफी अच्छे संबंध होते हैं क्योंकि मीडिया में उन्होंने अपने ही लोगों को हर स्तर पर स्थापित कर रखा है. २००८ में सी.बी.आई. से इस केस को रिओपन करवाया गया. इस केस को मालेगांव बम ब्लास्ट के साथ जोड दिया गया. ले. कर्नल पुरोहित को इस केस में आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार किया गया. सी.बी.आई. ने नांदेड केस में दस लोगों को गिरफ्तार किया लेकिन कहा कि हम उनसे कोई अधिक जानकारी नहीं प्राप्त कर सकते.
किस तरह से मिलेगी? जो केस बम ब्लास्ट का था ही नहीं, उस केस में आप बम कैसे फूटा उसके तार जोडने की कोशिश करेंगे तो किस तरह से उसमें आगे बढ सकते हैं?
१ जून २००६ से जिस नगण्य मामले का हौवा खडा करने की कोशिश वे दो लोग (दिग्विजय और करकरे) कर रहे थे, उन लोगों ने कागज का शेर बना ही लिया. नांदेड के इस केस को मथ-मथ कर `हिंदू आतंकवाद’ का केस बनाकर मीडिया में प्लांट कर दिया गया. सेकुलर मीडिया को तो मानो खजाना मिल गया. देश भर में `हिंदू आतंकवाद’ का भ्रम फैलाने में मीडिया सफल रहा.
नांदेड केस के बाद कांग्रेस को जब विश्वास हो गया कि `हिंदू आतंकवाद’ का भ्रम फैलाने में सेकुलर मीडिया उनके साथ है तब उसके बाद समीर कुलकर्णी और कर्नल पुरोहित के अलावा स्वामी असीमानंदजी, साध्वी प्रज्ञादेवी तथा अनेक हिंदुओं को मालेगांव, समझौता, मक्का मस्जिद, अजमेर शरीफ इत्यादि मामलों में एक के बाद एक जोडा गया.
शेष कल
आज का विचार
कांग्रेस के राज में सोनिया गांधी विश्व की चौथी सबसे धनवान महिला बनीं. बोदी के राज में भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली देश बना. अब वोट आपका. फैसला आपका.
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