गुड मॉर्निंग – सौरभ शाह
खाना पीने के पहले से ही शौकी न रहे. प्रधान मंत्री बनने के बाद भी ये शौक कायम रहा. डॉक्टरों ने वाजपेयी को तले हुए और मीठे पदार्थ खाने से मना किया था. प्रधान मंत्री से मिलने के लिए दिन भर में कई लोग आते थे. अनेक बैठकें होती थी, बैठकों की योजना बनती थी. स्वाभाविक रूप से हर आगंतुक के लिए समोसा और गुलाब जामुन आता था. प्रधान मंत्री कई बार तो लोगों के साथ पांच पांच बार – गुलाबजामुन खा जाते थे और उनका पर्सनल स्टाफ देखता रह जाता था.
वाजपेयी को ग्वालियर का चिवडा, आगरा के मंगोडे (मूंग दाल का वडा), दिल्ली की चांदनी चौक की बडी जलेबी और शाहजहां रोड की चाय बहुत अच्छी लगती थी. संसद सदस्य के रूप में सत्र के दौरान वे दिन में कई बार शाहजहां रोड जाते थे. चांदनी चौक की जलेबी घर मंगाकर सबके साथ दावत उडाते थे. चाइनीज फूड उन्हे अच्छा लगता था. मोरारजी देसाई की कैबिनेट में विदेश मंत्री के रूप में चीन की यात्रा पर जाने से कई पहले से उन्होंने चॉप स्टिक्स से खाने की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. प्रधान मंत्री बनने के बाद लखनऊ में निकट संबंधी की नवविवाहित संतान के जोडे को दावत के लिए बुलाया था. वाजपेयी ने लखनऊ की एक जानी-मानी और अपनी फेवरिट चाइनीज रेस्टोरेंट में टेबल बुक किया. जाकर ध्यान में आया कि रेस्टोरेंट में दूसरे टेबल खाली हैं. पूछा: क्यों? तो कहा गया एस.पी.जी. ने रेस्टोरेंट वाले से सुरक्षा कारणों से अन्य किसी को प्रवेश देने के लिए मना कर दिया था. वाजपेयी ने कहा कि इस तरह से खाने का क्या मजा? जिन्हें भी आना है उन्हें आने दो. खाने के बाद वाजपेयी ने अपने कुर्ते की जेब से नोटों की गड्डी निकालकर बिल चुकाया.
मोदी सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री यानी शिक्षा मंत्री प्रकाश जावडेकर कहते हैं कि किसी जमाने में वाजपेयी को चिल्ड कोका कोला पीने का खूब शौक था. जावडेकर और अन्य कार्यकर्ता उनके लिए बोतलें ठंडी करके रखा करते थे. जावडेकर ने एक बार वाजपेयी से पूछा कि इतना ठंडा पीने से गला नहीं बैठता है? भाषण देने में तकलीफ नहीं होती? वाजपेयी बोले: मेरा तो गला खुल जाता है इससे.
जनसंघ के दिनों में कई पत्रकार मित्रों के साथ पुरानी दिल्ली की प्रसिद्ध पराठेवाली गली जाना तय हुआ. जाते जाते वाजपेयी ने सिर पर गमछा बांध लिया: जनसंघ का कोई कार्यकर्ता देख लेगा तो गले पड जाएगा और मजा किरकिरा हो जाएगा.’ चटपटी सब्जियों के साथ घी में तले पराठे खाए जा रहे थे कि वहां से सडक पर जा रहे किसी कार्यकर्ता ने उन्हें पहचान लिया: `अरे, वाजपेयी जी आप यहां?’ वाजपेयी ने अनजान बनते हुए उससे पूछा: `कौन वाजपेयीजी? लगता है आपको कोई गलतफहमी हुई है.’ वो बेचारा उदास होकर चलता बना और यहां खिलखिलाती हंसी के साथ पराठे की महफिल आगे बढी.
शौकीन वाजपेयी में उतनी ही सादगी भी थी. बात उस जमाने की है जब वाजपेयी दिल्ली के अजमेरी गेट पर स्थित जनसंघ के कार्यालय में रहते थे. उनके साथ जे.पी. माथुर, लालकृष्ण आडवाणी और अन्य साथी भी वहीं रहते थे. एक दिन वाजपेयी कहीं बाहर की यात्रा से रात में दिल्ली लौटनेवाले थे. उनके लिए खाना बनाकर ढंक के रखा गया था. लेकिन वाजपेयी रात में नहीं आए. सुबह छह बजे वाजपेयी ने कार्यालय के दरवाजे की घंटी बजाई. उनके हाथ में सूटकेस और बिस्तर था. आप तो रात में ही आ जानेवाले थे, क्या हुआ? वाजपेयी ने कहा: रात को ग्यारह बजे आनेवाली गाडी दिल्ली दो बजे पहुँची. मुझे लगा आधी रात में क्या लोगों को जगाएं इसीलिए रामलीला मैदान जाकर सो गया.
एनडी टीवी पर किसी जमाने में `फॉलो द लीडर’ नामक कार्यक्रम आता था. बडे राजनेता की दिनचर्या, उनके साथ सुबह से शाम. वाजपेयी उस समय प्रधानमंत्री थे. विजय त्रिवेदी नाम के मशहूर पत्रकार अपनी कैमरा टीम लेकर तय समय पर प्रधान मंत्री के निवास स्थान पर पहुंच गए. सुबह के ब्रेकफास्ट से शुरूआत करनी थी. वाजेपयी और उनके परिवार के साथ सुबह का नाश्ता हुआ, बातचीत हुई, कैमरा चलता रहा. ब्रेकफास्ट पूरा होने के बाद कैमरामैन को ध्यान में आया कि कोई तकनीकी खराबी हुई है, शूटिंग हुई ही नहीं. अब? विजय त्रिवेदी ने बडे संकोच के साथ माफी मांगते हुए प्रधान मंत्री को यह बात बताई.
बिना तैश में आए वाजपेयी ने तुरंत हंसकर कहा: `कोई बात नहीं, यह तो और अच्छा हुआ, इसी बहाने दोबारा नाश्ता कर लेंगे.’
और सचमुच उन्होंने दूसरी बार ब्रेकफास्ट किया.
आज का विचार
होकर स्वतंत्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम
गोपाल-राम के नामों पर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिंदू करने घर घर में नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नहीं शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिंदू तन मन
हिंदू जीवन
रग रग हिंदू मेरा परिचय
– अटल बिहारी वाजपेयी
(मुंबई समाचार, शनिवार, २५ अगस्त २०१८)