मालगुडी स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर खाए बोंडा का स्वाद

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – १५ अक्टूबर २०१८)

राजू की पकड छुडाकर भोला का भाई गांव में जाने के लिए दौडा. उसे लगा कि स्वामी के पास अकेले आकर उसने बहुत बडी गलती की है. उसने राजू को वचन दिया कि राजू ने जो बात कही है, वह गांव में जाकर सभी को बताएगा. राजू की बात भोला के भाई को बिलकुल याद थी. गांव के लोग आपस में झगडना बंद नहीं करेंगे तो स्वामी खाना छोड देंगे.

भोला का भाई हांफता हांफता आया. चौपाल पर गांव के बुजुर्ग गोलजमा कर खडे थे. सभी को बारिश न होने की चिंता थी. चर्चा उसी की हो रही थी. भाई को देखते ही भोला ने पूछा,`क्या हुआ?’ भोला के भाई ने बोलने से पहले थोडी देर सांस ली. फिर बोला:`स्वामी. स्वामी…उन्हें अब खाना नहीं चाहिए, अब वे नहीं खाएंगे…’

`क्यों? क्या हुआ?’

`क्योंकि …बारिश नहीं हो रही,’ भोला के भाई ने घबराहट में अपने मन की हांक दी. फिर अचानक उसे याद आया और वह बोला,`ना ना…गांव में लोग झगडा कर रहे हैं इसीलिए.’

भोला चिड गया,`तुझे स्वामी के पास जाने के लिए किसने कहा? तूने हमारे झगडे की बात स्वामी तक क्यों पहुंचाई?’

मैने नहीं कहा, मैने कुछ नहीं कहा. लेकिन मैं जब वहां गया तब उन्होंने मुझसे पूछा और तब मैने बताया…’

`क्या तूने उनसे?’

भोला का भाई चिंता में पड गया. अब तो बडा भाई जरूर गुस्सा होगा. गांववालों के दंगे-फसाद के बारे में खुद स्वामी जी से चमचागिरी की है, जब ऐसा बडे भाई को पता चलेगा तो निश्चित ही यहीं के यही मुझे धो देगा, भोला के भाई ने सोचा. उसे अफसोस हो रहा था कि वह इस बवाल में कहां फंस गया. तभी भोला ने उसका कंधा पकड कर जोर से झकझोर दिया,`बोल, तूने क्या कहा उनसे?’

`मैने कहा बारिश नहीं हो रही है.’

`लो, बहुत बडी बात है जो तू स्वामी को बताने चला गया! क्या उन्हें पता नहीं है कि बारिश नहीं हो रही है?’ लोग हंस पडे, भोला के भाई की खिंचाई करने लगे. उसे लगा कि वातावरण उसके अनुकूल हो गया है, भाई का गुस्सा कम हो गया है. वह बोला,`जब तक सब ठीक नहीं हो जाता, तब तक वे कुछ खाना नहीं चाहते.’

`क्या कहा‍? जरा फिर से बोल?’

`उन्होंने कहा: जा, अपने भाई से जाकर कह देना कि मेरे लिए खाना न भेजे. मैं नहीं खाऊंगा. अगर नहीं खाऊंगा तो सब ठीक ठाक हो जाएगा.’

हर कोई उसके सामने देखने लगा. वह खुश हो गया. गांव के बुजुर्ग उसे पहली बार सम्मान की निगाह से देख रहे थे ऐसा उसे लगा. भीड में से किसी ने कहा,

`इस गांव पर भगवान की कृपा है कि स्वामीजी जैसे महानुभाव हमारे बीच आए हैं. वे जब तक हैं तब तक गांव पर किसी की काला साया नहीं पडेगा. वे तो महात्मा हैं महात्मा. महात्मा गांधी जब जब खाना छोड देते थे तब देश में कितनी बडी बडी घटनाएं घटती थी. ये स्वामीजी भी वैसे ही हैं. वे अगर उपवास करेंगे तो बारिश जरूर होगी. उनके मन में हम सभी के लिए प्यार है इसीलिए वे उपवास कर रहे हैं. महान लोग ही दूसरों के लिए इस तरह से अपना त्याग करते रहे हैं.’

वातावरण में नया जोश भर गया. सब झगडा भूलकर बारिश के लिए स्वामी द्वारा किए जा रहे उपवास की चर्चा करने लगे.

देखते देखते यह बात आसपास के गांव में, पूरे क्षेत्र में फैल गई. सभी ने तय किया: चलो, हम सब साथ मिलकर तारनहार का दर्शन करने चलें, स्वामी के चरणस्पर्श करके उनके आशीर्वाद लेते हैं.

इस तरफ राजू राह देख रहा था कि कब कोई गांववाला आएगा और रोज की तरह उसके लिए खाना लाएगा. वैसे तो उसके पास पिछले दिन के बचे फल और अन्य कुछ खाने का सामान था. लेकिन उसने किसी से कह रखा था कि गेंहूं का आटा, चावल का आटा और थोडा मसाला लेते आना ताकि कुछ अलग बना कर खा सकें. रोज वही के वही खाकर अब ऊबन हो रही थी. राजू को बोंडा (वडा) खाने का मन था. सालों बीत गए. मालगुडी के रेलवे स्टेशन पर वह हमेशा बोंडा खाया करता था. एक छोटे से स्टॉल पर गरमागरम बोंडा तला जाता था. आटा, आलू, प्याज, धनिया, हरी मिर्च, अन्य मसाले- वाह, क्या स्वाद था. पता नहीं कैसे तेल में तले जाते थे लेकिन चाहे जो भी हो, चाहे मिट्टी के तेल में ही क्यों न तले जाते हों, स्वाद गजब का था. एक दिन राजू ने स्टॉलवाले से पूछा भी था. तुम बोंडा कैसे बनाते हो? उसने व्यंजन की विधि विस्तार से समझाई थी: पहले अदरक का एक छोटा टुकडा लें…दो दिन पहले शाम को गांव के लोगों को गीता का श्लोक सुनाकर उसमें निहित जीवन दर्शन के बारे में वह बता रहा था कि तभी ये रेसिपी उसे याद हो आई. तभी से राजू को बोंडा खाने की भयंकर इच्छा हो रही थी. और अब तो उसके पास चूल्हा भी था, तलने के लिए कढाई थी. उबलते तेल में तले जा रहे बोंडा का संगीत सुनने के लिए वह उतावला था. उसने बाकी जरूरी सामग्री लाने के लिए भोला के कान में फूंक मारी थी.

राजू को दूर से आती आवाजें करीब आती हुई सुनाई दे रही थीं. उसे शांति मिली. आखिर गांव के लोग इसी तरफ आ रहे है. जरूर बोंडा बनाने की सामग्री साथ लाए होंगे.

कल जारी.

आज का विचार

सावधान! आज का `स्वीटू’ और `जानू’ कल के `मी टू’ में तब्दील हो सकता है!

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका ने स्कूल के गणित के शिक्षक को मिलने पर पूछना है:

जिंदगी के बाद के वर्ष चल रहे हैं…

और रिटायर होने की उम्र नजदीक है…

साहब, अब तो बताइए कि… जो आपने सोटी मार मार कर साइन थीटा और कॉस थीटा पढाया था उसका उपयोग कहॉं करना था?

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