गुड मॉर्निंग क्लासिक्स : सौरभ शाह
(newspremi.com, शुक्रवार, ३ अप्रैल २०२०- राम नवमी)
गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमानजी की स्तुति में चालीस चौपाइयां लिखी हैं. (आरंभ दो और अंत में एक दोहा अलग से गिनें) १५वीं शताब्दी के संत कवि की यह रचना २१ वीं सदी में भी करोडो लोगों को कंठस्थ है जो बहुत ही बडी बात है. दुनिया में ऐसी कितनी भक्ति रचनाएं हैं जो इतनी लंबी होने के बाद भी और पांच शताब्दियां बीत जाने के बाद भी उसका संपूर्ण पाठ करोडों बच्चों और वयस्कों को कंठस्थ है. हनुमान चालीसा कई तरह से अद्वितीय है. इसमें से सीखने लायक पंद्रह बातों के बारे में हमने जाना. आज शेष पंद्रह बातें:
१५. दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते: हनुमानजी के स्मरण से उनकी कृपा से हमारे अति दुर्गम कार्य संपन्न होते हैं. हनुमानजी पर स्वयं प्रभु रामचंद्रजी की कृपा थी. आप पर हनुमानजीकी कृपा जब बरसती है तब आपमें हनुमान की तरह एकनिष्ठा, तत्परता और एकाग्रता आती है. आपके अपने साथियों में से जो आपके प्रति ऐसी एकनिष्ठा रखते हैं, आपके तय किए गए काम निर्धारित होने से पहले ही पूरे हो जायं इतनी तत्परता रखते हैं और आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उन सभी कार्यों को एकाग्रता से देखते हुए उसमें दो बातें सीखनो की कोशिश करते हैं, उनके दुर्गम कार्य आसान हो जाएं यह देखने की जिम्मेदारी आपकी होती है. आपको उनकी जरूरतें समझकर उनके राह में आनेवाली कठिनाइयों को दूर करना है. हनुमानजी के गुण आपको अपने आप में आत्मासात करने हैं तो इन पवित्र शब्दों से जो सीखना है वह सीख लीजिए और सीखी हुई बातों को जीवन में उतार लीजिए और उसके फल का लाभ आसपास के लोगों को दें, इसी में हनुमान चालीसा के पाठ या रटन की सार्थकता है.
१६. राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे. सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना: आपको स्वजनों को आप पर इतना अटूट विश्वास होना चाहिए कि आप उनके जीवन में हैं इसीलिए उन्हें अपनेआप किसी भी विपत्ति का सामना करने का बल मिला है. खुद निश्चितंत हैं. जैसे कि जब हनुमानजी रक्षक होते हैं तब किसी का कोई भय नहीं होता उसी प्रकार से ये आपका कर्तव्य है कि जिन्हें आप प्रिय हैं, जिनके लिए आप आदरणीय हैं उनके सभी प्रकार के डर आप दूर करें, उन्हें भयमुक्त रखें.
१७. आपन तेज सम्हारो आपै: अपने तेज को अपने नियंत्रण में रखिए. अपनी प्रचंड शक्तियों पर आपका अकेले का नियंत्रण है. आप पर कोई भी दूसरा हावी नहीं हो सकता. ऐसा कब होता है? जब आप स्वयं प्रकाशित होंगे. आपका तेज, आपकी ताकत उधार की ली हुई नहीं होनी चाहिए. जो लोग अपनी तेजस्विता दूसरों के समझदारी से चुरा कर लाते हैं, उनका तेज कभी नहीं टिकता.
१८. भूत पिशाच निकट नहीं आवै, महाबीर जब नाम सुनावै: यह संसार उपद्रवी लोगों से भरा है. सज्जनों के हवन में हड्डियां डालने के लिए राक्षस तैयार बैठे होते हैं. अच्छा काम करने के लिए आप बैठे नहीं कि आपके हवन में हड्डियां ही नहीं पूरे का पूरा अस्थिपिंजर ही डालने के लिए लोग आ जाते हैं. लेकिन आपका नाम, आपका भूतकाल का काम ऐसा होना चाहिए, आपकी प्रतिभा का दबदबा ऐसा होना चाहिए कि वह नाम आते ही ये भूत पिशाच जैसी जनता सौ योजन दूर भाग जाय, और दूर रहकर थर थर कांपे. आपके वीरतापूर्ण कार्य ही आपको महावीर बनाएंगे.
१९. नासै रोग हरै सब पीरा: अपने स्वजनों को पीडा से मुक्त करने की जिम्मेदारी आपकी है. उन्हें संकट से छुडाने की जिम्मेदारी भी आपकी है. स्वजन किसे कहते हैं? जो आपके लिए तन-मन-धन से अर्पित हो जाते हैं. ऐसे स्वजनों के लिए आपको बहुत कुछ करना है जो हनुमानजी आपके लिए करेंगे ऐसी आशा रख रहे हैं.
२०. सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा. और मनोरथ जो कोई लावै. सोई अमित जीवन फल पावै: यह एक सुंदर अमृत चक्र है. प्रभु रामचंद्र इस संसार में अपने सभी भक्तों के मनोरथ पूर्ण करते हैं. प्रभु रामचंद्र के सारे काम हनुमानजी संपन्न करते हैं. आप जो कुछ चाहते हैं उसकी फल प्राप्ति आपको हनुमानजी की आराधना से होती है. ऐसे में आपके मित्र-शुभचिंतक-परिवारजन-प्रशंसक आपसे जो भी अपेक्षा रखते हैं उन्हें फलीभूत करने की जिम्मेदारी आपकी है.
२१. साधु संत के तुम रखवारे: हनुमाजी की तरह आपको भी इस दुनिया में जो लोग अच्छे कार्य कर रहे हैं उन सभी की रक्षा करन है. आज के जमाने में इस तरह की रक्षा गदा या धनुष बाण से करने की जरूरत नहीं है. फेसबुक या अन्य साशल मीडिया पर आप सज्जनों का बचाव कर सकते हैं. आपके कमेंट्स, लाइक्स, डिसलाइक्स द्वारा. जो लोग इस दुनिया को एक कदम आगे ले जाने के लिए दिन रात प्रयासरत हैं, वे सभी आज के साधु-संत हैं.
२२. असुर निकंदन राम दुलारे: और केवल साधु पुरुषों की रक्षा करने से कुछ नहीं होता है तो असुरों का निकंदन भी करना होगा. इस देश की संस्कृति, परंपरा को रौंदने के लिए तत्पर असुरों को मारकर हटाना होगा. उन्हें उनके क्षुद्र स्वार्थों को सिद्ध करने से रोकना होगा. हनुमानजी इसी तरह से रामजी के प्यारे बने. आपको यदि हनुमानजी का प्यारा बनना है तो आपके आस पास के असुरों को खोज कर उनका `निकंदन’ यानी दूर करना होगा.
२३. अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता: अष्ट सिद्धि यानी योग से प्राप्त होनेवाली ८ सिद्धियां- अणिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व. इन आठों का मेल जब होता है तब जीवन खिल उठता है. नव निधि यानी कुबेर के खजाने में निहित ९ प्रकार के रत्न: कच्छप, मुकुंद, नंद या कुंद, वर्च्य, मकर, नील, शंख, पद्म और महापद्म. इतके अलावा अन्य निधियां भी हैं. ये सारी निधियां लक्ष्मी पर आश्रित हैं. जिन्हें प्राप्त होती हैं, उन पर अलग अलग प्रकार से धन वर्षा होती है.
२४. जनम जनम के दुख बिसरावे: आपका स्तुतिगान मुझे प्रभु राम के पास ले जाता है, हे हनुमतवीरा. आपकी भक्ति करने से मुझे भी प्रभु जनमजनम के दुखों से मुक्ति दिलाते हैं. दुनिया के व्यवहारों में जो प्रियजन आपका स्मरण करते हैं उन्हें भी कभी न कभी आपको भी सामने से याद करना चाहिए, मिलना चाहिए और उन्हें सुख देना चाहिए. सुख नहीं दे सकते हैं तो कम से कम उनके दुखों को जरूर दूर करना चाहिए.
२५. और देवता चित्त न धरई: दुनिया के सभी देशों की जनता के साथ आदर का व्यवहार करेंगे लेकिन मातृभूमि तो एक ही है, भारत. उसी प्रकार से हर बात में मुझे ये भी पसंद है, वह भी पसंद है और ये भी पसंद है ऐसा कहकर बहना नहीं चाहिए बल्कि कुछ मामलों में एकनिष्ठ रहना चाहिए.
२६. संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा: क्या स्मरण मात्र से कभी संकट दूर होते हैं? पीडा मिटती है? हां. यदि उस स्मरण के पीछे वर्षों का तप हो तो. बरसों से स्मरण करते करते आपने अपने भीतर ऐसे गुण विकसित किए हों जो हनुमतवीरा में हैं तो सचमुच संकट आने पर उनके स्मरणमात्र से आपको प्रचंड शक्ति मिलेगी, उनके स्मरण से आपको ऐसे ऐसे कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी जो आपके सभी दुखों, आपकी सारी पीडाओं-वेदनाओं को हर लेगी.
२७. जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहुं गुरुदेव की नाईं: जो संत हैं, जिनकी वृत्ति में साधुता है उनकी कृपा दृष्टि पाने के लिए हमेश उनके सान्निध्य में रहना चाहिए. उनका साया आप पर पड रहा होगा तो सारी धूप छाया भरी स्थितियों का सामना आप कर सकेंगे.
२८. जो शत बार पाठ करे कोई, छूटहिं बंदि महासुख होई: सौ बार हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे तो बंदीगृह से, पुलिस कस्टडी से या जेल से आपकी मुक्ति हो जाएगी, ऐसा मानने की जरूरत नहीं है. लेकिन सौ बार पाठ करने के बाद यानी उसे सार को पूर्णरूप से समझ कर जीवन में उतारने के बाद इस सांसारिक बंधनों से आप छूट जाएंगे. फिर आप संसार में रहने के बाद भी एक साधु की तरह निश्चिंत होकर आसानी से जी सकेंगे जैसे कोई पंख हवा में तैरता रहता है.
२९. जो यह पढे हनुमान चालीसा: महात्म्य को प्रकट करनेवाली इस अंतिम चौपाई का भावार्थ ये है कि जैसे हरि को भजते हुए अभी तक किसी की लाज गई हो ऐसा सुनने में नहीं आया है उसी तरह से हनुमान चालीसा का पाठ करने से कभी किसी का अहित नहीं हुआ, जल्द या देर से फल की प्राप्ति ही हुई है. इसीलिए जो इच्छा की है वह तुरंत न मिले तो पाठ करना छोड न दें. तुलसीदास की तरह हमेशा के लिए प्रभु के चरण का सेवक बनकर रहना चाहिए.
३०. पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप, राम लखन सीता सहित हृद्य बसहुं सुर भूप: समापन के इस दोहे में सभी को याद करके हृदय में समाया है. शुभ का वास जिन मन में होता है वहां अशुभ नहीं टिकता. अच्छे विचारों के आगमन से अपने आप व्यर्थ के विचार बाहर निकाल दिए जाते हैं. हनुमान चालीसा के हर शब्द को समझ कर उसकी हर चौपाई को अपने जीवन के संदर्भ में निहितार्थ निकालें और रटन करें तो काफी शांति मिलेगी. अब जब भी हनुमानजी की स्तुति आप करें तो इस बात को ध्यान में रखें. आपकी आध्यात्मिक समृद्धि में और वृद्धि होगी.
सायलेंस प्लीज!
श्री गरु चरण सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि,
बरनऊ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि.
– हनुमान चालीसा (प्रास्ताविक दोहा)