मुस्लिमो की जनसंख्या में बढोतरी विरुद्ध क्या-क्या करना चाहिए?- लेखांक- ८ : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग क्लासिक्स: शनिवार २ मई २०२०)

समस्या केवल मुस्लिमों की जनसंख्या में बढोतरी की नहीं, बडी समस्या तो वह जनसंख्या बढ जाने के पश्चात उस को नियंत्रण में रखने की है। हिन्दू संस्कृति को वे कुचल न डाले उसकी सावधानी रखने की है। भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या में बढोतरी का अनुपात नियंत्रण में रखने के लिए जो कुछ भी होना चाहिए वह सरकारी स्तर पर और दूसरे तमाम प्रयत्नो द्वारा होना चाहिए। किन्तु उस से भी महत्त्वपूर्ण काम यह है कि मुस्लिमों की जनसंख्या बढती जाए ऐसे ऐसे वह अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक परंपरा अनुसार तुम्हारें सर पर न चड जाए उसके लिए क्या किया जाए?

स्वामी सच्चिदानंद ने दुबई प्रवास वर्णन में जो एक बात लिखी है उस का क्रियान्वयन भारत में करने से इस का उपाय मिल जाएगा ऐसा मुझे लगता है। आप देखों, आप को लगता है? यदि लगता है कि यह उपाय सही है तो मोदीजी को पूछ के देखें कि उन्हें यह बात कैसी लगती है।

‘मोरेशियस और दुबई का प्रवास’ इस पुस्तक में स्वामी सच्चिदानंद लिखते है: “अरबीओं के पास से शासन करने की सब से बडी सिख यह लेनी है कि अरब अमीरात में केवल १७ प्रतिशत ही अरबी है। बाकी की ८३ प्रतिशत प्रजा बहार की है। किन्तु वर्षों से अरबीओं का ही शासन रहे ऐसी व्यवस्था की है। यहां भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश आदि देशों में से हजारों लोग आते है। उनको काम करने की परमीट दी जाती है। परमीट समाप्त होने के पश्चात उनको अपने देश वापिस जाना पडता है और फिर से परमीट निकलवाके वापिस आ सकते है। कोई कितने भी वर्ष तक यहां रहे तो भी वह कभी यहां का नागरिक बन नहीं सकता। हां, कमाइये, खाईए, आंद कीजिए और फिर अपने देश चले जाइए। इस कारण से १७ प्रतिशत अरबी लोग ही राज्य करतें हैं। उनको भविष्य की कोई चिंता नहीं है। ये है सही बुद्धिमत्ता।”

दुबईवाला मॉडल जैसे का तैसा यहां लागू नहीं कर सकते क्योंकि भारत की समस्या बहोत ही अलग प्रकार की है। किन्तु पहले आप जान लीजिए कि स्वामी सच्चिदानंद ने क्या लिखा है:

“हमारे यहां स्वतंत्रता के लिए लडनेवाला, बलिदान देनेवाला वर्ग दिनप्रतिदिन घट रहा है और शासन के सूत्र उसके हाथ में से छूट रहे है। स्वतंत्रता की लडाई में जिनका विशेष महत्त्वपूर्ण कुछ भी प्रदान न हो ऐसे लोगों के हाथ में सत्ता के सूत्र सरक रहे है। उपर से बांग्लादेश के घूसपैठिये आदि यहां घूस आते है। लाखों की संख्या में आये हुए यह बिन बुलाये महेमानों को राशनकार्ड, नागरिकता आदि दे दिये जाते है। इस प्रकार सत्ता का संतुलन बिगड रहा है। समजदार मनुष्यों को चिंता होती है कि भविष्य में हमारा और इस देश का क्या होगा? इस प्रकार की चिंता यहां के दुबई के और संयुक्त अरब अमीरात – यु. ए. इ. के लोगों को नहीं है, क्योंकि सत्ता के सूत्र उनके हाथ में ही रहनेवाले है। यहां किसी की घूसपैठ संभव नहीं, सह्य नहीं।”

हम सभी जानते हैं और सच्चिदानंदजी ने पुस्तक में लिखा भी है कि दुबई में धर्मप्रचार अथवा मतांतरण की सख्त मनाई है। हिन्दू कहते है कि यदि देवी-देवताओं के चित्रवाला पार्सल आता है तो यह लोग तोड डालते है। इस्लाम सिवाय कोई भी धर्मप्रचारक यहां आकर प्रचार नहीं कर सकते। हां, अपने मंदिर में (बंध दरवाजे में) कथा प्रवचन कर सकते है, सार्वजनिक रूप से नहीं।

स्वामीजी एक उदाहरण देते है: एक वार एक सदगृहस्थ यहां भगवा वस्त्र पहनकर आए थे। शारजाह के हवाई अड्डे पर उनको रोक लिया गया और कहा कि सादे वस्त्र पहेनो तो ही शहर में जाने देंगे। वह भी अड गये कि यदि जाने देना है तो इसी वस्त्रों में जाने दो, अन्यथा मैं वापिस चला जाउंगा। वह सज्जन का बेटा आया और उनको समजा कर बाजार में से नये कपडें लाकर पहनाकर फिर मुश्किल से ले गया। ऐसी चुस्त व्यवस्था है। स्वामीजी लिखते है: “इस कारण किसी का भी घर्मांतरण नहीं हो सकता। हमारे यहां अपने घर्मांतरण की पूरेपूरी छूट ही नहीं, उपर से सुविधा भी दे दी गई है। प्रति वर्ष हजारों-लाखो लोग घर्मांतरण कर के हिन्दू प्रजा का प्रतिशत घटाते है। घर्मांतरण में से समानान्तरण और समानान्तरण में से राष्ट्रांतरण होता है। पाकिस्तान इस का दृष्टांत है।”

ऐसा ही एक किस्सा, अलग संदर्भ में तारक महेता की आत्मकथा ‘ऍक्शन रिप्ले’ में भी है। ८० के दशक में एक पाठक ने उनको दुबई बुलाया किन्तु पासपॉर्ट में व्यवसाय- लेखक, पत्रकार ऐसा लिखा होने के कारण तारक महेता का दुबई प्रवेश संभव नहीं था। फिर यजमान को लिखित में आश्वासन देना पडा कि यह महानुभाव यहां आकर दुबई के बारे में कुछ नहीं लिखेंगे। यदि शर्त भंग हुई तो यजमान पर कारवाई होगी ऐसी शर्त पर उन को चौबीस घंटे हवाई अड्डे पर फंसे रहने के बाद दुबई में जाने को मिला। वापिस आने के बाद किसी ने उनसे कहा कि दुबई के बारे में यदि अच्छा-अच्छा लिखोंगे तो वहां की सरकार को क्या आपत्ति होगी? तारक महेता ने जेठालाल-टपुडा की सवारी दुबई में पहुंचाई। वह हास्य आलेखों में एक आधा अक्षर भी दुबई के बारे में खराब नहीं था। किन्तु तारक महेता लिखते है कि वह प्रसिद्ध होने के पश्चात क्या हुआ वह नहीं पता किन्तु यजमान (वह मुस्लिम पाठक थे) उनके साथ हंमेशां के लिए संपर्क तोड दिया।

कानून मतलब कानून। ऐसा निष्कर्ष हमें इस में से निकालना चाहिए। स्थानिक प्रजा के उपर बहार की प्रजा हावी न हो जाए इस लिए अरबी लोगोंने क्या किया? स्वामीजी लिखते है कि शैख ने देखा कि मैं मालामाल हुआ, आनेवाली प्रजा भी मालामाल हुई, किन्तु मेरे अरबी लोगो का क्या? वह तो बेचारे थे और ऐसे ही रह जाएंगे। इस लिए उन्हों ने एसा कानून बनाया कि बहार से आनेवाले व्यापारी-उद्योगपतिओं को ५१ प्रतिशत साझेदारी यहां के किसी अरबी की रखनी पडेगी। किन्तु साथसाथ उन्हों ने एसा भी किया कि भले ही ५१ प्रतिशत साझेदारी हो, किन्तु (बगैर मूडी के) अरबी साझेदार को यदि एक लम्प सम ३०-४० हजार दीनार ही दे देंगे तो उसका कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। इस प्रकार प्रत्येक व्यवसाय में मूल आरब को साझीदार बनाना पडता है। उस को ३०-४० हजार दीनार दे देने के पश्चात बाकी की कमाई आप की। भले ही वह लाखों में हो। एक अरबी यदि दो-तीन फर् में वह साझीदार हो जाए तो उस को अधिक आवक होगी। इस प्रकार शैख ने अपने १७ प्रतिशत अरबीओं को भी सुखी कर दिया।

अब मुख्य बात आती है। सच्चिदानंदजी लिखते है कि शैख ने ऐसा कानून बनाया है कि जो भी अरबी विवाह करेगा उस को सरकार की ओर से विला मिलेगा। विला अर्थात् बंगला। ऐसे तैयार बंगलें देखें, खाली पडे हुए हैं। जैसे-जैसे अरबी विवाह करते जाएंगे, वैसे वह भरते जाएंगे। किन्तु यह नियम केवल प्रथम विवाह के लिए ही। दूसरे, तीसरे अथवा चौथे विवाह के लिए नहीं। इस प्रकार अरबी सुखी होते है। शैख ने एसा भी कानून बनाया है कि यदि कोई अरबी कन्या अरबी के अतिरिक्त किसी ओर कोई मुसलमान (अथवा तो दूसरे धर्म के पुरुष) के साथ विवाह करेगी तो उस की नागरिकता समाप्त हो जाएगी। अर्थात् उस को अरबी के रूप में जो अधिकार मिलते है वह नहीं मिलेंगे। इस नियम के कारण अरबी कन्याएं अरबी के सिवा किसी ओर से विवाह नहीं करती। स्वामीजी लिखते है: “देखा ना, अपनी कन्याओं को संभालने का उपाय? तीन से पांच प्रतिशत कन्याएं ही विधर्मीओं से विवाह करती है। हम हमारी कन्याओं को संभाल नहीं सकते, इतना ही नहीं, ऐसे धर्मांतरित विवाह का बचाव और प्रोत्साहन देने के लिए हमारे ही भाई आगे आते है। और तो और, यह सब वन-वॅ होता है। हमारी कन्याएं तो धर्मांतरित विवाह करती है किन्तु दूसरे धर्म की कन्याएं या तो धर्मांतरित विवाह करती ही नहीं, कर सकती नहीं अथवा तो हम स्वीकार सकते नहीं। बोलो, अब भविष्य कैसा होगा?”

ओर एक बात पर स्वामीजी प्रकाश फैंकते है: “यहां के अरबी पुरुष अरबी के अतिरिक्त मुस्लिमों की कन्याओं के साथ विवाह करे तो उनकी नागरिकता छिन ली नहीं जाती किन्तु आनेवाली कन्या को पांच वर्ष के पश्चात नागरिकता मिलती है।”

दुबई, यु.ए.इ. में जो कानून है वह यथातथ भारत में बनाना संभव नहीं, आवश्यक भी नहीं। किन्तु उस में से प्रेरणा लेकर भारत की इस समस्या के लिए क्या-क्या हो सकता है इस के लिए चिंतन अवश्य कर सकते हैं। सब से आवश्यक बात। जहां चाह वहां राह। अब तक की सरकारों का ऐसा कोई मन ही नहीं था। नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने के पश्चात पता चला कि सरकार में ऐसा सब करने का मन है और योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के पश्चात लग रहा है कि मोदी को नक्शा भी मिल चूका है।

यह नक्शे की झांकी देख लेते है। आगामी आलेख: मुस्लिम जनसंख्या बॉम्ब को डिफ्यूझ करने के उपाय।

(यह आलेख मार्च २०१७ में लिखी गई श्रेणी में से अपडैट करके लिया गया है।)

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