गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, गुरुवार – १३ सितंबर २०१८)
कभी लिखा था, पक्का याद नहीं है लेकिन बरसों पहले ये बात कही थी. और अगर आपको याद हो तो फिर एक बार पढिएगा, नुकसान नहीं होगा. क्षमापना के मंगल अवसर पर ही यह बात लिखी होगी.
पर्युषण पर्व के समापन की बात करने से पहले बात नए साल की हुई थी. दिवाली के बाद वाले दिन, नए वर्ष पर हमें जो मिलता है उसे, चलते फिरते, `साल मुबारक’ या `नूतन वर्षाभिनंदन’ या फिर `हैप्पी न्यूइयर’ कहते फिरते हैं. एक दिन नहीं, महीना नहीं, सारा वर्ष शुभ बीते ऐसी शुभेच्छा कितनी कैजुअली हम देते फिरते हैं. फोन बुक में तमाम वॉट्सएप कॉन्टैक्ट्स को न्यू इयर प्रॉस्परस होने के लिए दिए के चित्रवाली शुभेच्छाएँ भेज देते हैं. इनमें से, मां कसम, अगर किसी व्यक्ति को वर्ष के दौरान कभी याद करके उनका बीता महीना हमारी शुभेच्छा के अनुसार बीता या नहीं और वर्ष के शेष महीनों में हमारी शुभेच्छाएं उन्हें फलनेवाली हैं या नहीं क्या इसकी विशेष फिक्र कभी की हो हमने? फुर्सत ही कहां है. और परवाह भी किसे है. हम खुद से ही नहीं ऊपर नहीं आ पाते. लेकिन विश यू हैप्पी न्यू इयर कह दिया तो एक काम पूरा हुआ.
एक रुटीन विधि की तरह बिलकुल लापरवाह, कैजुअल एटीट्युड से कहे जानेवाले `साल मुबारक’ की एक फॉर्मेलिटी के अलावा दूसरी कोई उपयोगिता नहीं है. देखिए, हर नए साल पर ढेरों शुभेच्छाएं मिलती हैं, बावजूद इसके क्या कोई फर्क पडता है हमारे जीवन में.
पर्युषण के पवित्र महापर्व के समापन के बात एक सुंदर प्रथा धर्म के महापुरुषों ने सुझाई है- क्षमापना. बीते साल के दौरान मन, वचन, व्यवहार से जाने अनजाने में किसी को हमने दुखाया हो तो ये मौका होता है माफी मांगने का: मिच्छामि दुक्कडम.
लेकिन इसका हाल भी `साल मुबारक’ जैसा हो गया है. `सॉरी’ या `माय अपोलॉजिस’ या `रिग्रेट’ की गंभीर भावना व्यक्त करनेवाले ये सुंदर शब्द – मिच्छामि दुक्कडम- इतने कैजुअली और बिना भाव के बोले जाते हैं कि हमें लगता है जैसे ये भाई साहब (या बहन) क्या सचमुच हमारी माफी लायक हैं?
सबस पहले तो किसी को भी मिच्छामि दुक्कडम कहना नहीं होता. वॉट्सएप के ग्रुप में या एफबी की पोस्ट के रूप में मिच्छामि दुक्कडम भेजना नहीं होता. जो लोग पूरे वर्ष आपसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आए ही नहीं हैं, भला उनकी भावनाएँ जाने-अनजाने में आपके कारण कैसे आहत हुई होंगी? उनसे क्यों माफी मांगनी?
लिफ्ट में या रास्ते में मिलने पर या ट्रेन में या फ्लाइट में टकरा जाने पर बिलकुल अपरिचित लोगों को `गुड मॉर्निंग’ या `नमस्ते’ का फॉर्मल अभिवादन करना सौजन्यता का व्यवहार है. लेकिन हम तो `नए साल की शुभकामनाओं’ की पावन भावना को उसी फार्मेलिटी में घसीट लाए हैं और इतना ही नहीं, अब तो `मिच्छामि दुक्कडम’ जैसी अति गंभीर धर्मपरंपरा भी फ्रिवोलस (तुच्छ) बना दी गई है.
आप जानते हैं कि बीते वर्ष के दौरान आपने परिवार में, मित्रों में या धंधे-व्यवसाय में किस किसको दुखी किया है. बिलकुल ठीक से आपको पता है. आप जानते हैं कि कई लोगों को आपने जानबूझकर भले न दुखाया हो लेकिन अनजाने में उन्हें आपसे दुख पहुंचा है, आपकी इच्छा नहीं होने के बावजूद, आपने उन्हें दुखाने जैसा कुछ ऐसा किया है, कुछ बोला है.
आज प्रतिक्रमण करने के बाद उन सभी को एक एक करके, याद कीजिए. रूबरू संभव न हो तो फोन पर और वह भी संभव न हो तो लंबा पर्सनल मैसेज बनाकर विशेष रूप से याद करके उनसे कहिए कि फलाना मौके पर आपको मुझसे दुख हुआ. आज याद करके मुझे खुद से शर्मिंदगी महसूस हो रही है. इस घटना के बाद मुझे तुरंत ही आपसे क्षमा मांगनी चाहिए थी लेकिन इतना साहस नहीं जुटा पाया था. महीनों तक वह बात मुझे कचोटती रही. मैने तय किया है कि अब से आपके साथ ऐसा कोई बर्ताव न हो, इसके प्रति मैं सजग रहूंगा. इतना सुधार मेरे स्वभाव में, मेरे व्यवहार में लाने जैसी जागरूकता खुद में लाऊंगा. और हां, आपको आहत करके मैने आपकी जो भावनाएं दुखाई हैं वह `मिच्छामि दुक्कडम’ कह देने से मिट जानेवाला है, ऐसा मानना मेरे लिए बचकाना बात है. उस चोट, उस जख्म को भरने के लिए आनेवाले वर्ष के दौरान मैं आपके साथ ऐसा बर्ताव करूंगा जो आपके लिए मलहम का काम करे और आगामी वर्ष के पर्युषण पर्व की समाप्ति के बाद वे मलहम वाले किस्से आपके अलावा मुझे भी शांति देंगे. आगामी वर्ष में ही नहीं, शेष सारी जिंदगी में मुझे आपसे कभी माफी न मांगनी पडे, `मिच्छामि दुक्कडम’ कहने की जरूरत न पडे ऐसा आचरण करने की क्षमता भगवान मुझे दें, ऐसी प्रार्थना करता हूं.
इतना कहने/लिखने के बाद आपको कहना/लिखना हो तो कहिए/लिखिए: मिच्छामि दुक्कडम.
अब दूसरी बात.
कोई आपसे माफी मांगता है तो आपको क्या करना चाहिए? उन्हें उदारता से माफ करना चाहिए. उन्हें सांत्वना देकर कहना चाहिए कि जो हो गया सो गया. बात ही ऐसी थी. आपकी क्षमा का मैं स्वीकार करता हूं, आपको क्षमा करता हूं.
लेकिन ऐसा जताने के बदले हम किसी का `मिच्छामि दुक्कडम’ सुनकर सामने क्या कहते हैं? `मिच्छामि दुक्कडम’! लो भई, ये कोई सलाम – नमस्ते थोडे ही है. कोई आपको `सलामअलैकुम’ कहते हुए ऊपरवाला आप पर शांति का आशीर्वाद बरसाए ऐसी शुभेच्छा देता है तब आप भी प्रत्युत्तर देते हैं कि `वालेकुमस्सलाम’ (ऊपर वाला आप पर भी शांति का आशीर्वाद बरसाए) ऐसा कहें तो ठीक है. लेकिन `मैं आपसे क्षमा चाहता हूं’ का जवाब `मैं (भी) आपसे क्षमा मांगता हूं, मुझे क्षमा कीजिए, ऐसा नहीं हो सकता. मिच्छामि दुक्कडम के उत्तर के रूप में जब तक धर्मपुरुष ऐसा कोई सटीक शब्द प्रयोग नहीं खोज निकालते हैं तब तक आप कह सकते हैं कि,`नहीं, नहीं, ऐसा बोलने की जरूरत नहीं है’, `डोन्ट मेंशन’ या तो `अरे भाई, मैं तो वह घटना कब का भूल चुका हुं, आप भूल जाइए.’ या फिर,`हां मैने आपको हृदय से क्षमा किया. आप भी अपने मन ऐसा कोई विचार मत रखिए.’
तीसरी बात
बीते वर्ष के दौरान आपके किसी ऐसे बर्ताव से ऐसे किसी सिरीज ऑफ बिहैवियर से मैं हर्ट हुआ हूं या मैने जानबूझकर आपको आहत किया है और उसका मुझे कोई अफसोस, कोई रिग्रेट मेरे मन में न हो तो मुझे आपको `मिच्छामि दुक्कडम’ क्यों कहना चाहिए? ऐसे पवित्र मौके पर ऐसा दंभ क्यों करना चाहिए? मैने उस समय आपसे जो कहा या आपको साथ जो बर्ताव किया था वह आपके व्यवहार के जवाब मे था और आप फिर से अगर मेरे साथ वैसा बर्ताव करेंगे तो मैं फिर से आपको वैसे ही जवाब दूंगा क्योंकि मुझे नहीं चाहिए कि मेरी लाइफ में मेरे साथ कोई इस तरह से बिहैव करे. इसीलिए मुझे कोई अफसोस नहीं है. मुझे कोई खेद प्रकट नहीं करना है. आय एम नॉट सॉरी फॉर व्हॉट आय टोल्ड यू एंड आय एम नॉट गोइंग टू से `मिच्छामि दुक्कडम’ टू यू.
माफी मांगनी है तो व्यक्तिगत रूप से मांगनी चाहिए, सबके सामने नहीं मांगनी चाहिए. एक माफी की फोटो कॉपी निकालकर सभी को वितरित नहीं करनी चाहिए. किसी की भेजी हुई `मिच्छामि दुक्कडम’ की पोस्ट किसी को फॉरवर्ड नहीं करनी चाहिए. (यह आर्टिकल फॉरवर्ड करना हो तो किया जा सकता है)
प्रेम, प्रार्थना, सेक्स और भोजन जितनी ही पर्सनल चीज है क्षमा. इसकी अभिव्यक्ति निजी होती है- दो लोगों के बीच.
क्षमा मांगनी ही है तो इस तरह से मांगनी चाहिए कि सामनेवाले तक आपकी भावनाएं ठीक से पहुंचें कि आप क्यों क्षमा मांग रहे हैं. `मिच्छामि दुक्कडम’ के भाव भरे पावन शब्दों को नीरसता से जल्दबाजी में या बिना किसी संदर्भ के बोलकर हम क्षमापना पर्व की गरिमा को हानि पहुंचा रहे हैं.
अगर गले उतरती है तो इस बात को आज से ही अमल में लाइएगा. सच्चे हृदय से, विस्तारपूर्वक मांगी गई क्षमा से आपके दिल का बोझ हल्का हो जाएगा और सामनेवाले व्यक्ति की नजर में आपके प्रति घटा हुआ आदर पुन:स्थापित हो जाएगा.
आज का विचार
लव मीन्स नेवर हैविंग टू से यू आर सॉरी/
– एरिक सेगल (`लव स्टोरी’ उपन्यास से)
इसी वाक्य का बेहतरीन अनुवाद कवि उदयन ठक्कर द्वारा: दिल की बातों में दिलगिरी नहीं होती.
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