सोनिया के किस डर से मनमोहन सिंह पीएम बने

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – १३ फरवरी २०१९)

राष्ट्रपति को लिखे पत्र में सुब्रमण्यम स्वामी ने अब्दुल कलामसाहब का इस ओर ध्यान आकर्षित किया था कि भारत के कानून के अनुसार विदेश में जन्मा व्यक्ति भारतीय नागरिकता स्वीकार कर ले तो भी उसे भारत में उतने ही अधिकार मिलेंगे जिसके लिए जितना अधिकार वह देश भारत में जन्मे व्यक्ति को उस देश की नागरिकता स्वीकार करने के बाद देता है. इटली के कानून के अनुसार भारत में जन्मा व्यक्ति इटली की नागरिकता स्वीकार कर ले तब भी वह इटली का प्रधान मंत्री नहीं बन सकता.

बात यही खत्म होती है. स्वामी के अनुसार वह कानून बाद में रद्द हो गया था. इसके बावजूद सांवैधानिक तरीके से उस निरस्तीकरण को भी चुनौती दी जा सकती है. स्वामी का पत्र मिलते ही राष्ट्रपति भवन में भूकंप आ गया. राष्ट्रपति ने स्वामी को मिलने के लिए बुलाया. इस भेंट के बाद शाम को राष्ट्रपति ने सोनिया को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देने हेतु बुलाया था, उस मुलाकात को रद्द करने का पत्र राष्ट्रपति ने तुरंत सोनिया के घर भिजवा दिया. इस दौरान राष्ट्रपति ने सोनिया तक स्वामी के पत्र की जानकारी पहुंचा दी होगी और उन्हें ये भी समझा दिया होगा कि वे सोनिया गांधी को प्रधान मंत्री पद की शपथ नहीं दिला सकेंगे ताकि देश में सांवैधानिक संकट पैदा न हो. क्योंकि दूसरे ही दिन सुबह सोनिया ने जब राष्ट्रपति से मुलाकात की तब उस मुलाकात के बाद सोनिया ने अपने `त्याग’ की बात मीडिया के सामने रखी. राजमाता द्वारा किए गए इस त्याग को कांग्रेसी नेताओं की टोली ने खूब उछालकर अपनी वफादारी का प्रदर्शन किया. कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने छाती कूटना शुरू किया, आत्महत्या की कोशिशें भी हुईं. ये कांग्रेसी कल्चर में घुस चुकी गुलाम मानसिकता का भोंडा प्रदर्शन था.

स्त्रैण अदाओं, स्त्रैण आवाज और स्त्रैण मिजाज रखनेवाले डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधान मंत्री के पद पर चिपके रहने के लिए सोनिया गांधी द्वारा किए गए तमाम अपमानों को सहा, देश को हो रहे नुकसान को नजरअंदाज किया. दो-एक मामलों के अलावा अट्ठानबे प्रतिशत मामलों में सोनिया की हां में हां मिलाई. इन दस वर्षों के दौरान अपने ऊपर कोई आंच न आए और सारी गलतियों का ठीकरा प्रधान मंत्री के सिर पर फूटे, कुछ इस प्रकार से सोनिया और उनके परिवारजनों, सोनिया और उनके कांग्रेसी चमचों तथा सरकारी की ब्यूरोक्रेसी में ऊपर से नीचे तक के अधिकारियों-कर्मचारियों ने इस देश को बेतहाशा लूटा. दुनिया के किसी देश में प्रधान मंत्री के नाते किसी कठपुतली को बिठाकर पूरे एक दशक कुछ लोगों ने ऑफिशियली देश का शोषण किया हो, ऐसा उदाहरण आपको नहीं मिलेगा.

डॉ. मनमोहन सिंह को पता होगा कि उनमें पी.एम. बनने की पत्रता नहीं है. वे यह बात भी जानते होंगे कि वे खुद कांग्रेस के पावरफुल नेता होते तो उन्हें सोनिया ने इस पद पर बिठाया नहीं होता. सोनिया को अपनी बात माननेवाले व्यक्ति की जरूरत थी. उठ कहे तो उठे और बैठ कहे तो बैठ जाय और चुप कहे तो चुप रहे. उन्हें ऐसे कर्मचारी की जरूरत थी. २००४ में कांग्रेस के पावरफुल नेताओं में प्रणवकुमार मुखर्जी का नाम सबसे पहले आता था. नरेंद्र मोदी ने जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया है, ऐसे प्रणव मुखर्जी को १९६९ में इंदिरा गांधी ने राज्यसभा में भेजा था. इंदिरा गांधी के सबसे वफादार साथियों में एक रहे प्रणवकुमार मुखर्जी १९८२ में पहली बार देश के वित्त मंत्री बने थे. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणवकुमार मुखर्जी ही देश के प्रधान मंत्री बनेंगे, ऐसा वातावरण था, लेकिन `इंदिरा गांधी कहेंगी तो मैं झाडू लगाने के लिए भी तैयार हूँ’ ऐसा कहनेवाले राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने नैतिकता को ताक पर रखकर और नियम कानूनों की धज्जियां उडाते हुए तुरंत राजीव गांधी को प्रधान मंत्री पद की शपथ दिला दी. १९८५ से १९८९ के दौरान प्रणवकुमार ने रूठ कर अपनी दुकान `राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस’ के नाम से शुरू की. बाद में राजीव गांधी के साथ हाथ मिला लिया.

प्रणवकुमार मुखर्जी के अलावा अर्जुन सिंह भी कांग्रेस के प्रधान मंत्री पद के दावेदार माने जाते थे, लेकिन यदि पार्टी का शक्तिशाली नेता प्रधान मंत्री बन जाएगा तो वह उनके कहे में नहीं रहेगा, ऐसा सोनिया को डर था, जो सही भी था. इसीलिए उन्होने कक्षा में ऐसे मास्टर को भेज दिया जो न तो पढाएगा और न ही मारेगा. मनमोहन सिंह ने एक बार ठीक ही कहा था कि वे दुर्घटनावश पीएम बन गए हैं, आई ऐम ऐन एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर.

संजय बारू ने इन सटीक शब्दों को पकड कर पी.एम.ओ. से निवृत्त होने के करीब पांच साल बाद `द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ नामक किताब लिखी जिसेके प्रकाशन के पांच साल बाद इसी नाम से एक अफलातून फिल्म बनी जिसमें अनुपम खेर ने हूबहू मनमोहन सिंह को सिल्वर स्क्रीन पर जीवंत किया है. जो लोग ये कहकर अनुपम खेर जैसे अनुभव और शीर्षस्थ अभिनेता की तथा सुंदर फिल्म की आलोचना करते हैं कि अनुपम खेर ने एक्स पी.एम. की मिमिक्री की है, तो उन्हें यूट्यूब पर जाकर मनमोहन सिंह से जुडा वीडियो देख लेना चाहिए. बराक ओबामा जब भारत आए थे तब मोदीजी ने उनके सम्मान में जो समारोह आयोजित किया था, उसमें यूपी के तत्कालीन मुख्य मंत्री अखिलेश यादव भी उपस्थित थे. अखिलेश जैसे गली के मव्वाली जैसे राजनेता को प्रोजेक्ट करने के लिए किसी ने एक क्लिप अपलोड की है. सही शब्द डालकर सर्च करेंगे तो मिल जाएगा. उसमें जब मनमोहन सिंह की एंट्री होती है तब आपको हूबहू `टीएपीएम’ में अनुपम खेर जिस तरह से दोनों हाथ आगे करके जापानी महिला किमोनो पहनकर सरकती हुई चलती है, उस तरह से चलते हैं, यह आपको याद आ जाएगा. अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह की स्त्रैण अदाओं को बखूबी पकडा है. कहां उस पीएम की ये चाल और कहां आज के पीएम की सिंह समान मर्दानगी भरी चाल.

पिक्चर अभी बाकी है.

आज का विचार

स्मशान जाते समय कार में जी.पी.एस. का उपयोग नहीं करना चाहिए. वर्ना वो गूगल वाली आंटी बोलेगी कि `यू हैव रीच्ड योर डेस्टिनेशन’ तो कैसा लगेगा!

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका: कल १४ फरवरी है. सभी को खजूर खाना चाहिए.

पका: क्यों भई?

बका: ताकि हम कह सकेंग कि आय हैड अ `डेट’ ऑन वैलेंटाइन्स डे!

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