`इस दुनिया में हर कोई दीर्घायु होने के लिए ही पैदा हुआ है’: स्वामी रामदेव – हरिद्वार के योगग्राम में पांचवां दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल चतुर्थी, विक्रम संवत, २०७८. मंगलवार, ५ अप्रैल २०२२)

आज योगग्राम में मेरा पांचवां दिन शुरू हो रहा है. आज एक्युप्रेशर के लिए गया तब यहां की योगशिक्षिका कृत्तिका ने मुझसे पूछा कि `आपको यहां कैसा लग रहा है?’ चार महीने पहले बुकिंग करते समय मैने मन ही मन जो अपेक्षाएं रखी थीं, उसकी तुलना में हर दिन पांच-पांच प्रतिशत की बढ़ोतरी होती जा रही है, इतना सुखद अनुभव हो रहा है. उन्होंने पूछा `यहां कि कौन सी बात आपको सबसे ज्यादा अच्छी लगी?’

मैने कहा, ‘यहां के शीर्षस्थ डॉक्टरों से लेकर चिकित्सा कार्य में सहयोग करनेवाले तमाम सहयोगी, हाउस कीपिंग स्टाफ, डायनिंग हॉल के लोग-सभी आपके साथ ऐसी आत्मीयता से आचरण करते हैं मानो आप उनके परिवार का ही हिस्सा हों-भाई-बहन या माता-पिता हों.’

कृत्तिका खुश हो गईं. वैसे यह बात मैने उन्हें खुश करने के लिए नहीं कही थी. सचमुच पिछले ९६ घंटों में मुझे यहां हर जगह ऐसे अनुभव आए हैं. ईवन, ई-रिक्शा में एक से दूसरी जगह ले जाने वाले ड्रायवर्स भी अपने घर का वाहन चला रहा हों, इस तरह का व्यवहार हमारे साथ करते हैं.

आज सबेरे उठकर जलनेति तथा नेत्र प्रक्षालन का रुटीन पूर्ण करने के बाद रबरनेति लेनी थी. रबर की पतली नली तेल में डुबोकर नासिका छिद्र में डाली जाती है और आपको उसे मुँह से बाहर निकालना होता है. फिर दूसरी नासिका में यही विधि की जाती है. इसके कारण वर्षों से बिना मेन्टेनेंस के ब्लॉक हो चुकी नासिकाएँ खुल जाती हैं और प्राणायाम करते समय सांस अंदर-बाहर करने में अधिक सुगमता हो जाती है. मैने कहा,`मुझसे नहीं हो पाएगा’ चिकित्सक ने कहा,`ट्राय को कीजिए…’ मैने निवेदन किया,`फिर कभी, आज नहीं.’ उन्होंने हंसकर मुझे जाने दिया. उन्हें मुझ जैसे बहुत सारे मिलते होंगे.

झटपट स्वामीजी के सान्निध्य में योगाभ्यास के लिए पहुंच गए.

स्वामीजी यहां डेढ़ घंटे तक कठिन योगासन कराते कराते, प्राणायाम कराते कराते सुंदर बोधवाक्य बोलते जाते हैं. बीच में भजन भी होते हैं. पांच बजे वे जब यहां पहुंचते हैं तब पसीने से लथपथ होते हैं. तेजी से दौडने का भरपूर व्यायाम करके यहां आते हैं. साथ ही उनके अंगरक्षक भी कंधे पर ऑटोमैटिक रायफल्स लटका कर दौड़ते हैं. दौड़ते समय स्वामीजी स्पोटर्स शूज़ पहनते हैं. अन्यथा लकड़ी की खड़ाऊं (पादुका) पहनते हैं.

स्वामीजी ने आज वॉर्मिंग अप एक्सरसाइज़ करवाते समय कहा,`इस दुनिया में हर कोई दीर्घायु होने के लिए ही जन्मा है.’

उन्होंने कहा,‘कई लोग शिकायत करते हैं कि `इतने समय से योग कर रहे हैं लेकिन हमें तो कोई फायदा नहीं हो रहा.’ ऐसा होगा ही नहीं. जैसे सायनाइड लेने पर मृत्यु निश्‍चित है उसी तरह योग किया जाय तो शरीर स्वस्थ हो जाता है. लेकिन कई लोग बेईमानी करते हैं. अधूरा योग करते हैं. निश्चित मात्रा में नहीं करते.’

फिर स्वामीजी ने प्रत्यक्ष उदाहरण के साथ अपनी बात समझाई. पास में प्रज्वलित हवन की अग्निशिखा में एक ओर से हथेली घुमाकर तुरंत दूसरी ले आए. ऐसा दस बार किया औैर फिर कहा,`देखो, मैने इतनी बार अग्नि में हाथ डाला लेकिन कुछ हुआ मुझे? अब यदि मैं दस सेकंड तक अग्नि में हाथ बिना हिलाए रखे रहूँ तो क्या होगा? मैं जल जाऊंगा. अग्नि अपना स्वभाव दिखा देगी. योग भी ऐसा ही है. आप लोग प्राणायाम अधूरा-अधूरा करेंगे तो कहां से लाभ होगा? किसी तरह से आसन करके जल्दबाजी में काम पूरा कर देते हैं तो कोई फायदा नहीं होगा. पूरे का पूरा प्राणायाम करो, ठीक तरह से आसन करो तो योग भी अपना स्वभाव दिखाएगा ही.’

यह बात मेरे मन में बिलकुल बैठ गई. स्वामीजी ने यज्ञशिखा में दस बार हाथा घुमाया, हम भी घुमा सकते हैं-कुछ नहीं होता. लेकिन दस सेकंड तक उसमें हाथ डाले रहें तो? योग करते समय प्राणायाम या आसनों के आवर्तन को सिर्फ करने के लिए करते हैं तो कोई लाभ नहीं होने वाला. पूरी निष्ठा से ठीक तरह से हर प्राणायाम हो तो ही उसका लाभ होता है. और आसनों के साथ भी ऐसा ही है. स्कूल में जब थे तब पी.टी. की कक्षा में फिजिकल ट्रेनिंग देनेवाले शिक्षक की सीटी की आवाज़ पर एक-दो-तीन-चार गिनकर बेमन से हाथ-पैर हिलाकर लौट आते थे. कोई लाभ हुआ उसका?

स्वामीजी ने कहा,`जीवन में आनेवाले हर दु:ख, झंझावात, संघर्ष भगवान का आशीर्वाद है. भगवान कहते हैं कि इन सभी से बच सको, इतना शारीरिक-मानसिक बल प्राप्त करो. उसी तरह से शरीर के रोग या विकार भी प्रभु का आशीष हैं. भगवान लालबत्ती दिखाते हैं कि अब तुम सुधर जाओ, फिर से स्वस्थ हो जाओ, फिर एक बार तंदुरुस्त हो जाओ. अन्यथा दीर्घायु प्राप्त नहीं कर सकोगे. जीवन में बाद के वर्षों में बीमारियों से विवश होकर दूसरों पर बोझ बनकर जीना पड़ेगा. इसीलिए अभी सचेत हो जाओ.’

स्वामीजी आज हवन चिकित्सा के बारे में बात करते करते धुएँ का उल्लेख करते हुए हिंदी से गुजराती पर आ गए. मंच से मेरी तरफ देखकर कहा,’गुजराती मां एने धुमाड़ो कहे छे!’

आज मंडूकासन करते समय मुझे ध्यान में आया कि चार दिन में ही मेरे शरीर की फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ने लगी है, पालथी मारकर जमीन पर बैठते और उठते हुए कोई तकलीफ नहीं हो रही. अर्ध-पद्मासन में कितनी भी देर तक बैठा जा सकता है और पद्मासन भी आसानी से कर सकता हूँ.

मंडूकासन वज्रासन में बैठकर किया जाता है. पहले वज्रासन में बैठने के लिए आराम से दोनों पैर पीछे मोडकर एडी पर बैठ सकता था. लेकिन यहां आकर पहले ही दिन पता चल गया कि अब मुझसे वज्रासन नहीं हो सकता. वर्षों से आदत छूट चुकी है. इसीलिए पद्मासन लगाकर मंडूकासन करता था जिसमें पैंक्रियाज़ पर दबाव डालना होता है. जिन्हें शुगर की समस्या होती है उन्हें यह प्रतिदिन करने की सलाह दी जाती है.

आज स्वामीजी ने मंडुकासन करने को कहा तो मुझे लगा कि चलो देखें वज्रासन में बैठ सकते हैं कि नहीं. चमत्कार! आराम से बैठ सका और मंडूकासन कर सका. चार ही दिन में इतना लाभ हुआ तो पचास दिन बाद मुंबई लौटते समय ऐसे कई सारे फायदों का खजाना मेरे साथ होगा! डायबिटीज़ के लिए भ्रामरी प्राणायाम भी प्रभावकारी है.

गार्डन में सबेरे अद्भुत वातावारण होता है. धीरे धीरे खुलता आकाश, हम जहां बैठे होते हैं उस सारी जगह पर यज्ञ की वेदी से उठता `धुऑ’, साथ ही चिंतनमय गुरुवाणी और संगीत. इतना ही नहीं मोर, कोयल के अलावा मेरे लिए अनजान अन्य आधे दर्जन पक्षियों का कलरव.

स्वामीजी ने प्रति दिन की तरह आज भी कहा कि,`कोई निष्क्रिय होकर बैठा न रहे. अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार करें. `स्वामीजी योगाभ्यास के संदर्भ में कह रहे थे. यह स्वाभाविक बात है कि हर कोई आरंभ से ही किसी एक्सपर्ट की तरह प्राणायाम या आसन नहीं कर सकता. अमुक रोग या अमुक विकारों के कारण अमुक आसन नही हो सकते तो उनके विकल्प के रूप में अन्य आसन हैं. प्राणायाम का भी ऐसा ही है. कई बार तो योगशिक्षक ही मना कर देते हैं कि यह आसन-प्राणायाम आपके लिए नहीं है. कई बार आपके लिए आवश्यक आसन-प्राणायाम उचित शिक्षा, योग्य अभ्यास और उचित समझ के अभाव में नहीं हो सकते. इसीलिए `अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार…’ एक के बाद एक दिन बीतेंगे और आप कल की तुलना में आज अधिक अच्छी तरह से कर सकेंगे, परसों और अच्छी तरह से कर सकेंगे… इस तरह से एक एक सोपान चढ़ते जाएंगे तो ही जीवन में योग-प्राणायाम पूरी तरह से सम्मिलित हो जाएंगे. जीवन में बाकी के कार्यों के लिए भी ऐसा ही होता है. निष्क्रिय बैठे नहीं रहना है. अपनी अपनी शक्ति के अनुसार सतत काम करते रहें तो कैपेसिटी क्रमश: बढ़ती जाती है.

मध्यम मार्ग के महत्व की बात करते करते स्वामीजी ने कहा कि,`बडा लक्ष्य पाने के लिए तात्कालिक तीव्रता (एक्स्ट्रीम) भी बहुत जरूरी है.’

कई लोग चौबीसों घंटे योग-आरोग्य के पीछ पड़ जाते हैं लेकिन योग-आरोग्य आखिरकार तो कर्मयोग के लिए है. अर्थात यदि आप अपने प्रतिदिन के काम से कट जाएं और हर समय आरोग्य के बारे में उहापोह करते रहते हैं या योग-प्राणायम ही करते रहते हैं तो इसका कोई अर्थ नहीं है. अपना कर्मयोग आप पूरी शक्ति से, अपने सामर्थ्य के साथ कर सकें इसके लिए योग करने की आवश्यकता है, शरीर का संरक्षण करने की जरूरत है. स्वामीजी के साथ आसन करते करते ये विचार मन में आया तो लगा कि इसे आपके साथ साझा करना चाहिए.

स्वामीजीन ने आज अपने बारे में बात कही जिसमें कहीं भी आत्मश्लाघा का अंश नहीं था. जो बात थी वह केवल वास्तविकता को बयान कर रही थी. उन्होंने कहा,`भारत में कई लोग मेरी निंदा करते हुए नहीं थकते. बिजनेस गुरु कहते हैं मुझे! मैं तो कहता हूँ कि स्वामी रामदेव ने जो काम किया है अगर वह न किया होता तो विदेशी कंपनियां अब भी भारत को लूट रही होतीं. आज करोडों भारतीय तंदुरुस्त हुए हैं, लाखों लोगों को रोजगार मिला है. मैने चाहा होता तो ये सब करने के बजाय हिमालय जाकर साधना करने में जीवन व्यतीत करता…मुझे तो भारत ही नहीं विदेशों में भी पतंजलि के उत्पाद बेचकर वहां का पैसा यहां लाना है. नेपाल या अफ्रीका जैसे गरीब देशों से नहीं. बल्कि अमेरिका से-वहां की फार्मा कंपनियों ने हमें वहां की दवाएं बेच-बेच कर खूब लूटा है हमें. यूके और यूरोप के देशों में भी-उन लोगों ने हम पर शासन करके भारत का खूब धन अपने देश ले गए हैं. लूट का माल तो वापस लाना पड़ेगा ना. रूस से भी- खूब शस्त्र बेचे हैं हमें. और चीन से भी…इन सभी धनवान देशों को पतंजलि का सामान बेचकर भारत में धन वापस लाएंगे, जरूर लाएंगे, आप देखिएगा.’

पच्चीस वर्ष पहले क्या किसी को कोई कल्पना भी थी कि ये भगवाधारी संन्यासी भारतीयजनों का आरोग्य सुधारने के लिए प्रोडक्ट्स बनाकर साल भर में २५,००० करोड का टर्नओवर करने वाली कंपनी खड़ी करेगा और इसके बाद भी खुद बिलकुल अकिंचन ही रहेगा.

आज ब्रेकफास्ट में केवल एक सेब खाना था. आज मेरी सर्दी बढ़ गई थी इसीलिए दिन के दौरान सारी ट्रीटमेंट्स कैंसल करके सुबह शाम एंटी कोल्ड मसाज हुआ. पैर के तलुवे और हथेली पर लौंग का तेल, कलौंजी (अनियन सीड्स) तथा साथ ही अन्य कई औषधियॉं डालकर मालिश की गई. अच्छा लगा.

आज मेरी ट्रीटमेंट और आहार का पहला टाइमटेबल पूर्ण हो रहा था. आगामी पांच दिन के लिए नया टाइमटेबल बनाना था. शाम को एक्युप्रेशर के बाद डॉ. आकाश राठोड से मिला. उन्होंने और उनके सहायक ने मुझे चेक करके नए प्रोग्राम का प्रिंटआउट दिया. जब यहां आया था तब बीपी बहुत तो नहीं लेकिन नॉर्मल से अधिक था. १४०/९८. आज मापा तो १२८/८२ था. नॉर्मली १२०/८० होना चाहिए. वैसे, इसमें कोई सटीक ही नहीं होता. प्रकृति के अनुसार हर किसी का बीपी नॉर्मल से कुछ कम-ज्यादा होता ही है. (यही बात शुगर की भी है). डॉक्टर ने कहा कि यहां आपको खाने में नमक के बदले सैंधव नमक दिया जाता है और वह भी बिलकुल कम मात्रा में जिसके कारण बीपी नॉर्मल हो गया.

डॉक्टर ने मुझे दॉंतों की सुरक्षा के लिए रोज सबेरे नमक डालकर सरसों के तेल से दांत और मसूड़े पर उंगली से मालिश करने को कहा और साथ ही नारियल के तेल से ऑयल पुलिंग करने को कहा. शाम को सरसोंवाली ऑयल पुलिंग उन्होंने खुद ही बंद करा दिया.

उसके बाद मुझे डॉक्टर अनुराग से मिलना था. उनसे मिलने के लिए टोकन लेना पड़ता है. मेरे पास पांच नंबर का टोकन था. पंद्रह मिनट इंतजार करने के बाद वहां कोई चार नंबर के टोकनवाला आ गया, बाद में नंबर दो वाला टोकन लेकर कोई आ गया. मेरे पीछे काफी सारे लोग थे. आज दोपहर को ही एक बडा ग्रुप आया है. उन्हें यहां का सिस्टम पता नहीं होगा यह तो स्वाभाविक है इसीलिए सभी जल्दबाजी में थे. मुझे तो डॉक्टर अनुराग से इतना ही कहना था कि उनकी लिखी दवा अभी तक मैने शुरू नहीं की है. फिर वे जो सूचनाएं-सलाह देंगे उसके अनुसार आगे बढ़ना था. कल मिल लिया जाएगा, ऐसा सोचकर मैं वहां से चला गया.

ट्रीटमेंट सेंटर के बाहर निकलकर रिसेप्शन से गुजरते समय स्वामीजी के बॉडीगार्डस दिखे. मैं रुक गया. स्वामीजी वहीं थे. मैने जाकर उनसे कहा,`बापू की कथा का एक दिन के लिए लाभ लेना है लेकिन यहां के नियम इतने कड़े हैं कि कॉम्प्लेक्स से बाहर भी पैर नहीं रखा जा सकता. बापू के दर्शन हो जाएं तो…’

इतना सुनते ही स्वामीजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा,`चिंता क्यों करते हैं? कल मेरे साथ बैठ जाइएगा…’

कितनी सरलता और कितना त्वरित निर्णय. गजब है!

आज छह बजे के योग वर्ग में त्राटक सिखाया. अंधेरा करके घी के दिए की ज्योति के सामने एकटक देखते रहना होता है. आंख और मन की शांति के लिए त्राटक, षट्कर्मों में से एक है. स्वामीजी ने आज सबेरे ही कहा था कि,`कई विद्यार्थियों की आंखें बहुत पढाई करने से कमजोर हो जाती हैं और इसीलिए कम उम्र में चश्मा लग जाता है, ऐसा कहा जाता है. लेकिन वास्तविकता ये है कि पढने से नहीं बल्कि पढते समय मन अशांत होने पर आंख कमजोर होती है जिसके लिए त्राटक करना चाहिए.’

त्राटक सीखने के बाद निवास स्थान के बगीचे की बेंच पर दो घडी बैठकर जो कल्पनातीत कही जा सकती है, ऐसी बात होने जा रही है, इसी बारे में सोच रहा था. स्वामीजी मुझे अपनी गाडी में बिठाकर बापू की कथा सुनवाने ले जाएंगे!

आज के आनंद के कारण लौकी का सूप और लौकी की सब्जी भी पकवान जैसी लगी. वैसे लौकी का सूप तो सचमुच में स्वादिष्ट था. रेसिपी जाननी पड़ेगी. रात में क्वाथ पीकर सो गया.

योगग्राम में दूसरे दिन का लेख लिखने के बाद कुछ भी लिखा नहीं था लेकिन यहां का एक्साइटमेंट इतना था और साथ ही एक के बाद एक ऐसी कल्पनातीत घटनाएं हो रही थीं कि उस यूफोरिया में और कुछ सूझ ही नहीं रहा था. एंटी कोल्ड मसाज के बाद शरीर में थोड़ा सुधार हो रहा है लेकिन अभी भी हंड्रेड पर्सेंट दुरुस्त नहीं हुआ है. शंख प्रक्षालन के बाद शरीर का कचरा इस तरह से भी कुछ लोगों में निकला करता है. सबेरे तक पूरी तरह से ठीक हो जाय, ऐसी प्रार्थना के साथ सो गया.

1 COMMENT

  1. उत्तरोत्तर प्रगति की रिपोर्ट प्रभावी हैं।

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