( गुड मॉर्निंग : न्युज़ प्रेमी डॉट कॉम : शनिवार, 6 सितंबर 2025)
हिन्दी सिनेमा की दुनिया में इतनी बोल्ड फिल्म अब तक नहीं बनी। इतनी सच्ची फिल्म अब तक नहीं देखी। इतनी हार्डहिटिंग डालने वाली फिल्म अब तक नहीं आई।
शायद स्वामी सच्चिदानंद ने दशकों पहले हमें ‘वीरता परमो धर्म’ का नया मंत्र दिया था, उसके पीछे के कारण इस फिल्म में दिखाए गए तथ्य हो सकते हैं।
विवेक रंजन अग्निहोत्री ने एक बार फिर पांच में से पांच स्टार देने लायक फिल्म बनाई है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘वैक्सीन वॉर’ को एक बार देखे बिना हर देशभक्त भारतीय का जीवन अधूरा है, और कल रिलीज हुई ‘द बंगाल फाइल्स’ को एक से ज्यादा बार देखे बिना हर देशभक्त भारतीय का जीवन अधूरा है।
यह फिल्म चौंकाने वाली है, झकझोर देने वाली है। क्या वाकई 1946 में बंगाल में ऐसा हुआ था? क्या वाकई आज की तारीख में भी ममता बनर्जी के बंगाल में ऐसा हो रहा है? अगर फिल्म देखते समय हर कदम पर ऐसे सवाल उठते रहें, तो इसका जवाब जान लीजिए: हाँ।
विवेक अग्निहोत्री ने एक बडी फाइल तैयार की है, जो जल्द ही किताब के रूप में रिलीज होगी। इस फाइल में फिल्म की हर एक घटना के दस्तावेजी सबूत हैं। विवेक ने इस फाइल को सेंसर बोर्ड में ‘द बंगाल फाइल्स’ के साथ जमा किया और इन सबूतों के आधार पर फिल्म को रिलीज की मंजूरी मिली। इसलिए अगर फिल्म देखते समय ऐसे सवाल उठें, या कोई पक्षपाती फिल्म समीक्षक अपने रिव्यू में ऐसे सवाल उठाए, तो फिल्म में दिखाए गए सत्य पर संदेह करने की कोई जरूरत नहीं है।
‘द बंगाल फाइल्स’ में बिना किसी हिचक के ममता बनर्जी के बंगाल में हो रही बांग्लादेशी घुसपैठ की बात है। इसमें उन दलालों का भी जिक्र है जो सरकार से सांठगांठ करके इन घुसपैठियों को नकली आधार कार्ड, नकली वोटर आईडी और नकली पासपोर्ट बनाकर देते हैं। बंगाल की डेमोग्राफी बदल रही है—हिंदुओं की आबादी घट रही है, उनकी हत्या हो रही है, और ऐसी परिस्थितियाँ खुद वहाँ की सरकार बना रही है कि हिंदु कहीं और भाग जाएँ। दूसरी ओर, बांग्लादेश के साथ भारत की सीमा को खुला छोड़कर अनगिनत मुसलमानों को बंगाल में बसाया जा रहा है। वहाँ की सरकार अपनी वोट बैंक में भारी इजाफा करने के लिए देशविरोधी साजिश रच रही है। अप्रैल 2025 में बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ से संबंधित नए कानून के विरोध के बहाने जो हिंसा भड़काई गई, वैसी ही हिंसा 1946 में जिन्ना और सुहरावर्दी ने डायरेक्ट एक्शन डे के नाम पर कोलकाता और नोआखली में की थी।
‘द बंगाल फाइल्स’ वर्तमान और अतीत की इन घटनाओं को आमने-सामने रखती है। कभी आप फिल्म के दृश्यों को लाचार होकर देखते रहते हैं, कभी गुस्से में मुट्ठियाँ भींच लेते हैं, कभी आपके मुँह से ‘शाबाश’ निकल जाता है, कभी आपकी आँखों में आँसू आते हैं, कभी हिंदुओं पर हुए अत्याचारों के दृश्य देखकर आपकी आँखें बंद हो जाती हैं, और कंपकंपी छूट जाती है।
फिल्म में किसी भी अच्छी फिल्म की तरह कई प्रतीक हैं। भारती बनर्जी भारत माता का प्रतीक हैं, जिन पर आजादी से पहले बहुत अत्याचार हुए और अब उनकी स्मृति धुंधली हो गई है। मुसलमानों ने उनके हाथ पर चाकू से मुस्लिम नाम—आयशाजान—खोद दिया है। पल्लवी जोशी इस किरदार को निभाती हैं।
मिथुन चक्रवर्ती की जीभ काट/जला दी गई है, उनके पुरुष अंग को काटकर उन्हें नपुंसक बना दिया गया है, और वे पागल की तरह भटकते रहते हैं। मिथुनदा भारत के लाचार हिंदू नागरिक का प्रतीक हैं।
जस्टिस बनर्जी आदर्शवादी, ईमानदार, गांधीवादी, उत्साही धर्मनिरपेक्षवादी हैं, और न्यायपालिका में अटूट विश्वास रखते हैं। मुस्लिमों का भीड़ और उसका सरदार उनके आदर्शों और धर्मनिरपेक्षता का जो हाल करता है, उसे देखकर भारत की खोखली धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वाले नागरिकों की आँखें खुल जाएँगी।
1946 में मुसलमानों ने कोलकाता और नोआखली को नवनिर्मित पाकिस्तान में मिलाने के लिए हिंदुओं का नरसंहार किया। राज्य के मुस्लिम मुख्यमंत्री और नए पाकिस्तान के जन्मदाता ने मिलकर इस नरसंहार को अंजाम दिया। कोलकाता को पाकिस्तान में मिलाने की योजना असफल रही, क्योंकि दो दिन की हिंसक तबाही के बाद माँ भारती का एक सच्चा सिपाही, गोपाल पाठा (मुखर्जी) , खड़ा हुआ। उसने कोलकाता के हिंदुओं को संगठित किया। सभी ने मिलकर ‘ईंट का जवाब पत्थर’ से देना शुरू किया। सुहरावर्दी और जिन्ना ने घुटनों पर आकर शांति का झंडा फहराने का ढोंग किया और अपनी जिहाद को नोआखली ले गए, जहाँ हिंदू केवल 20% थे। 80% मुस्लिम आबादी ने हिंदुओं का जातीय नरसंहार किया। नोआखली पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बना, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है।
युवा मुजिबुर रहमान सुहरावर्दी के डायरेक्ट एक्शन डे का सक्रिय साथी था। हाँ, यह वही शेख मुजिबुर रहमान हैं, जिन्हें इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश का हीरो बनाया। सत्ता हासिल करने के सिर्फ तीन साल में मुजिबुर की सरकार ने बांग्लादेश में ऐसा आतंक मचाया कि 1975 में भारत में आपातकाल लागू होने के साल ही 15 अगस्त की सुबह उनके घर में घुसकर उनकी और उनके अधिकांश परिवार की हत्या कर दी गई।
उस समय कोलकाता और नोआखली को पाकिस्तान में मिलाने के लिए हजारों हिंदुओं का नरसंहार हुआ। आज के बंगाल में ऐसा नहीं हो रहा। बंगाल या कोलकाता को पाकिस्तान में मिलाने की कोई कोशिश नहीं हो रही। बल्कि, बंगाल और कोलकाता को पाकिस्तान बनाने की कोशिश हो रही है। ममता बनर्जी ऐसी सच्चाई उजागर करने वाली फिल्म को बंगाल में रिलीज क्यों होने देंगी?
नया वक्फ कानून गलत तरीके से मुस्लिम विरोधी करार दिया गया और ममता बनर्जी ने घोषणा की कि केंद्र सरकार का यह कानून बंगाल में लागू नहीं होगा! 8 अप्रैल 2025 को ममता के बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के उमरपुर में संशोधित वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए और 11 व 12 अप्रैल को ये प्रदर्शन हिंसक हो गए, जो सांप्रदायिक दंगों में बदल गए, जो इन प्रदर्शनों का मूल उद्देश्य था। ‘सिमी’ और ‘पीएफआई’ जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों का इसमें हाथ था, जैसा कि कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त समिति और नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठनों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है। ये कोई स्वतःस्फूर्त दंगे नहीं थे; ये योजनाबद्ध सांप्रदायिक दंगे थे, जिसमें मुस्लिमों ने हिंदुओं की हत्या की। जो मुस्लिम मारे गए, वे पुलिस की गोली से मरे। मुस्लिमों ने पुलिस को भी डराया। 18 पुलिसकर्मी घायल हुए। हिंदुओं ने मुर्शिदाबाद छोड़कर पास के मालदा जिले में शरण ली। कुछ ने तो राज्य ही छोड़ दिया और झारखंड चले गए। कश्मीर में पंडितों को भगाने जैसा ही आज के बंगाल में हो रहा है, जो 1946 के बंगाल में भी हुआ था।
लाखों की संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए बंगाल में आ चुके हैं। उनके पास भारतीय नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज भी हैं। क्या बंगाल सरकार इतनी बड़ी संख्या में अवैध रूप से आए मुस्लिमों को रोजगार दे सकती है? नहीं। उनमें से कई अब अन्य राज्यों में फैल जाएंगे। अहमदाबाद के चंदोला तालाब में वर्षों से बसे बांग्लादेशी घुसपैठियों की बस्ती को साफ करने में गुजरात सरकार को बहुत मुश्किल हुई थी। ममता बनर्जी की मेहरबानी से आज भी रोज हजारों बांग्लादेशी घुस रहे हैं। वे न केवल गुजरात, बल्कि महाराष्ट्र से लेकर भारत के कई राज्यों में फैलकर हर शहर और हर राज्य की डेमोग्राफी बदलने की जी-तोड़ कोशिश करेंगे। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने इस मामले पर पहले ही लाल बत्ती दिखाई है और इसे रोकने के प्रयास भी हो रहे हैं।
‘द बंगाल फाइल्स’ ऐसी ही लाल बत्ती दिखाने वाली फिल्म है। अब तक हिंदी सिनेमा में क्रिएटिव के नाम पर तथ्यों और हकीकतों को अपनी सुविधा के अनुसार तोड़-मरोड़ कर सत्य को मुलायम और मीठा बना दिया जाता था। ‘द बंगाल फाइल्स’ में सत्य की कठोरता और कड़वाहट को यथावत रखा गया है।
इसलिए आलोचक इस फिल्म को प्रोपगेंडा फिल्म कह रहे हैं। जब ‘माचिस’ में आतंकवादियों का पक्ष दिखाया गया, तब क्या किसी ने कहा कि गुलजार ने एजेंडा वाली या प्रोपगेंडा फिल्म बनाई है? क्या विधु विनोद चोपड़ा की ‘मिशन कश्मीर’ और ‘शिकारा’ को किसी ने प्रोपगेंडा फिल्म कहा था? दोनों कश्मीर में आतंकवाद को उचित ठहराने वाली फिल्में थीं। ‘रोजा’, ‘फिजा’, ‘फना’ और ‘पर्जनिया’ से लेकर ‘माय नेम इज खान’ तक (मणि रत्नम की ‘बॉम्बे’ सहित) की फिल्में भारत के हिंदुओं को गलत तरीके से चित्रित करने वाली थीं। क्या किसी ने कहा कि वे प्रोपगेंडा फिल्में थीं?
और जब विवेक अग्निहोत्री मुस्लिमों के एक वर्ग द्वारा हिंदू समाज पर किए गए अत्याचारों की हकीकत को यथावत और आपके सामने प्रस्तुत करते हैं, तो आपको प्रोपगेंडा फिल्म लगती है? अगर ऐसा लगता है, तो यह साबित करता है कि आपके रगों में हिंदू का खून नहीं, हरा सेकुलर खून बह रहा है।
विवेक अग्निहोत्री की फिल्म में यह नहीं, वह नहीं, लंबी है, छोटी है, इसमें यह कमी है, उसमें वह कमी है, यह एक स्टार या दो स्टार की ही लायक है—कुछ खास फिल्म समीक्षकों ने इस तरह का दुष्प्रचार शुरू कर अग्निहोत्री के इस पवित्र हवन में हड्डियां डालना शुरू कर दिया है। कुछ फिल्म प्रेमी खुद को निष्पक्ष और तटस्थ दिखाने के लिए प्रशंसा के बीच दो पंक्तियां आलोचना की या आलोचना के बीच दो पंक्तियां प्रशंसा की लिखकर दर्शकों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं।
कहा जाता है कि हिंदू जनता भीरु है। हमारी समझदारी और सहनशीलता को भीरुता मान लिया गया है। राष्ट्र के ज्वलंत मुद्दों का सामना कर के या अन्य धर्मों के डर का सामना कर के हम अपनी आजीविका और प्रतिष्ठा को क्यों आँच आने दें; अगर किसी से टकराव करेंगे तो आपदा आएगी, जोखिम आएंगे, जीवन में बाधाएं आएंगी—यह अधिकांश (सभी नहीं, अधिकांश) हिंदुओं की मानसिकता है। 2014 के बाद माहौल बदला है। अब सुखी, प्रतिष्ठित और प्रभावशाली नागरिक भी राष्ट्रीय मुद्दों पर खुलकर बयान दे रहे हैं। मैं यह इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मैंने कल ही इसका एक शानदार उदाहरण देखा।
मैं कल ‘द बंगाल फाइल्स’ पहले दिन के पहले शो में देखने वाला था। यह तय करने से पहले कि किस थिएटर में टिकट बुक करूं, मुझे शाम 5:30 बजे वरली के पैलेडियम में पीवीआर के स्क्रीन नंबर 5 में आयोजित एक निजी शो का निमंत्रण मिला। यह शो मुंबई के शीर्ष नेत्र-चिकित्सक डॉ. कुलीन कोठारी ने आयोजित किया था। उन्होंने मोरारी बापू से लेकर शाहरुख खान तक के दिग्गजों की आंखों की देखभाल की है। मुंबई के कई धनपतियों का साथ लेकर और अपनी जेब से जोड़कर, उन्होंने अब तक अपने फाउंडेशन के माध्यम से लाखों गरीबों का मुफ्त इलाज किया है। मैं यह सब इसलिए बता रहा हूं क्योंकि कुलीनभाई जैसे स्तर तक पहुंचे व्यक्ति शायद ही कभी ऐसे मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से बुलंद आवाज़ में बोलते हों। इस स्तर की हस्ती को स्वाभाविक रूप से डर रहता है कि उपद्रवी उनकी प्रतिष्ठा, प्रभाव इत्यादी को जोखिम में डाल देंगे। उन्होंने अपने घर के निजी थिएटर में पांच-पचीस लोगों को बुलाकर फिल्म दिखाने के बजाय सार्वजनिक शो आयोजित किया। यह उनकी नैतिक साहस का सबूत है। राष्ट्रहित में काम करने में डरने की जरूरत नहीं है।
डॉ. कुलीन कोठारी के इस हाउसफुल शो में लगभग 300 दर्शक थे। इनमें से आधे ऐसे थे जो अगर कुलीनभाई जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति का निमंत्रण न होता, तो कभी भी ‘द बंगाल फाइल्स’ जैसी (‘प्रोपगेंडा’) फिल्म देखने नहीं जाते।
हमें भी यही करना है। हमें अपने कम्फर्ट झोन से बाहर निकलना है, अपनी प्रतिष्ठा और प्रभाव को दांव पर लगाकर, जो सही है उसका साथ देना है—जोरदार आवाज में साथ देना है, अपनी जेब से खर्च करके साथ देना है। इस वीकएन्ड में ही फिल्म देखने जाना है और जितने संभव हो उतने दोस्तों, रिश्तेदारों, परिवारजनों, पड़ोसियों, ऑफिस सहकर्मियों को साथ ले जाना है। खास तौर पर कॉलेज के छात्रों को यह फिल्म दिखाने की विनती।
संशोधित वक्फ कानून, या सीएए और एनआरसी, मुस्लिम विरोधी नहीं हैं। फिर भी, कुछ देशद्रोही तत्व मुस्लिम जनता को भड़काने के लिए इन कानूनों को मुस्लिम विरोधी बताकर दुष्प्रचार करते हैं। यही तत्व आपको कहेंगे कि ‘द बंगाल फाइल्स’ मुस्लिम विरोधी है।
‘द बंगाल फाइल्स’ किसी भी तरह से मुस्लिम विरोधी नहीं है। इसमें मुस्लिम नेताओं द्वारा अपने समर्थकों को भड़काकर किए गए हिंदू विरोधी षड्यंत्रों का बयान है, जो ऐतिहासिक सत्य है। अगर ऐसे घटनाक्रमों को प्रस्तुत करते समय आप मुस्लिमों की गलतियों को छुपाते हैं, तो यह मुस्लिम तुष्टिकरण है, मुस्लिमों की चापलूसी करना है। ‘द बंगाल फाइल्स’ मुस्लिमों के (या पहले की कुछ फिल्मों में आतंकवादियों के लिए जैसा किया जाता था) तुष्टिकरण के लिए नहीं बनाई गई है, इसका मतलब यह नहीं कि यह मुस्लिम विरोधी फिल्म है। जहां वह समुदाय—उनके राजनेता, उनके गुंडे, उनके समर्थक—गलत हैं, उसे डंके कि चोट पर उजागर करने में आम तौर पर हिंदी फिल्म वाले डरते हैं; विवेक अग्निहोत्री ने बिना किसी डर के सत्य को आपके सामने प्रस्तुत करने का साहस दिखाया है।
फिल्म देखते समय हमें छिछोरे समीक्षकों की तरह नहीं बनना है कि यहां यह नहीं, वहां वह नहीं। खामियां ढूंढने के बजाय, हमें उन दृश्यों को समझना है जो विवेक ने बहादुरी से जान जोखिम में डालकर बनाई फिल्म में प्रस्तुत किए गए हैं। हमें उस सत्य को सिल्वर स्क्रीन पर देखना है जिसे वामपंथी मुस्लिम समर्थक इतिहासकारों और शिक्षाविदों ने हमसे छुपाया है, जो हमारे पाठ्यपुस्तकों को तैयार करते हैं। हिंदू-मुस्लिम समस्याएं किसने शुरू कीं, कौन इसका शिकार हुआ और हो रहा है—इसके बारे में यह साढ़े तीन घंटे का मास्टरक्लास है।
विवेक अग्निहोत्री कोई करण जौहर नहीं हैं। विवेक अग्निहोत्री के पास गुदगुदाने वाली फिल्में बनाकर करोड़ों रुपये कमाने की रचनात्मक और तकनीकी क्षमता है। लेकिन उनका उद्देश्य भारत की जनता की आंखें खोलना है। फिल्म के माध्यम से, रिसर्च के बाद लिखी कहानी-पटकथा के माध्यम से, वे आपको यह बताना चाहते हैं कि भारत की समस्याएं किसने और कैसे पैदा कीं।