न्यूजव्यूज: सौरभ शाह
१५ फरवरी २०१९
रिवेंज इस इज अ डिश बेस्ट सर्व्ड कोल्ड. मारियो पुजो के उपन्यास `गॉड फादर’ ने इस इटैलियन कहावत को विश्व प्रसिद्ध कर दिया. प्रतिशोध लेना हो तो उसे ठंडे दिमाग से क्रियान्वित करना चाहिए.
ये समय होहल्ला मचाने का नहीं है, ये समय आक्रोश की गैरजिम्मेदाराना अभिव्यक्ति का नहीं है, ये समय नहीं है प्रधानमंत्री को चलाह देने का कि सर्जिकल स्ट्राइक करो, ३७० हटा दो, ओपन वॉर डिक्लेयर कर दो. अब तो युद्ध में ही कल्याण है कहकर भारत के प्रधान मंत्री को सलाह देने की हमारी कोई हैसियत नहीं है. मोदी जानते हैं कि क्या करना है, नहीं भी जानते होंगे तो उनके पास नेशनल सिक्योरिटी एड्वाइजर अजित डोभाल सहित दर्जनों विशेषज्ञ, अनुभवी और राष्ट्रप्रेमी सलाहकार हैं. हम डिफेंस के बारे में जानते ही कितना हैं. घर की रसोई में कटहल की सब्जी में कितना मसाला पडता है, इस बात की जिन्हें जानकारी नहीं है, ऐसे लोग भी देश के प्रधान मंत्री को सलाह देने निकल पडे हैं: सर्जिकल स्ट्राइक करो, युद्ध करो.
पाकिस्तान अब जानता है कि भारत सर्जिकल स्ट्राइक कर सकता है. इस समय पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से तैयार होगी. भारत को सर्जिकल स्ट्राइक करने के लिए उकसाने हेतु भी ये हमला किया गया होगा, ताकि उस समय एलओसी पार करनेवाले भारतीय जवानों को अपने जाल में फंसा कर वे उन्हें भारत लौटने न दें. ये प्लानिंग हो सकती है. क्या आपको लगता है कि मोदी और डोभाल क्या इस बात की कल्पना नहीं कर सकते होंगे?
खुलेआम युद्ध घोषित करना संभव नहीं है. अमेरिका में कोई मेड इन इंडिया चप्पल डोनाल्ड ट्रम्प के ऊपर फेंक दे तो ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इसके लिए भारत जिम्मेदार है. आतंकवादियों के पास पाकिस्तान के मार्केवाले हथियार और अन्य सामान मिलने से ये साबित नहीं हो जाता कि आतंकवादियों को पाकिस्तान सरकार का समर्थन है. पाकिस्तानी शासक और सेना के अधिकारी तो पागल हैं. वह तो भारत से अपनी रक्षा करने के बहाने मिसाइल से परमाणु बम छोड सकता है. नंगे का नहाना क्या और निचोडना क्या. वह खुद तो बर्बाद हो चुका देश है. भारत को गंभीर नुकसान पहुंचाने की तमन्ना पूरी करने का मौका पाकिस्तान को थाल में रखकर परोसने की मूर्खता नरेंद्र मोदी नहीं करेंगे.
मोदी स्ट्रैटेजी के आदमी हैं. और रणनीतियां ठंडे कलेजे से बनाई जाती हैं. अमेरिका और चीन दोनो भारत के दोस्त हैं. अमेरिका काफी हद तक अभी पाकिस्तान के खिलाफ है. चीन अभी भारत और पाकिस्तान दोनों को बारी-बारी से खिलाता है. लेकिन दुनिया के अधिकांश देश भारत की बात मानने लगे हैं. इसमें सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देश भी हैं. आतंकवाद के मुद्दे पर युनो हम जो कहें वो करने के लिए तैयार है. इन सब बातों का मतलब है कि युद्ध घोषित किए बिना भारत राजीनतिक, आर्थिक तथा सैन्य दृष्टि से पाकिस्तानी की डोर सीधे काटने में सक्षम है.
कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी को बुलाकर मोदी भविष्य में क्या कदम उठाए, इस बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं. उन पर हमें दबाव नहीं डालना चाहिए. उन्हें अपना काम करने देना चाहिए. हमें बस कटहल की सब्जी में मसाला डालना सीखना चाहिए.
कंधार अपहरण याद है ना? मुझे बखूबी याद है. २४ दिसंबर १९९९ के शुक्रवार को काठमांडू से दिल्ली के लिए उडान भरनेवाली इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट नंबर आईसी १८४ का अपहरण करके उसे अमृतसर, लाहौर, दुबई जैसे लोकेशन्स पर ले जाने के बाद उसे अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर उतारा गया. विमान में १५ क्रू मेंबर्स सहित १७३ पैसेंजर्स और ३ अपहरणकर्ता थे. इनमे से २७ पैसेंजर्स को दुबई में छोड दिया गया लेकिन उनमें से कई पर चाकू से हमला किया गया था. कई गंभीर रूप से घायल हो गए थे, एक यात्री की मौत हो गई थी.
बाकी यात्रियों के भारत स्थित संबंधियों ने हाहाकार मचा दिया कि हमारे संबंधियों को किसी भी तरह भारत वापस लाइए. मीडिया ने उस होहल्ले को लाउडस्पीकर दे दिया. वाजपेयी सरकार भारी दबाव में आ गई. जनाक्रोश धधक उठा तो देश में परिस्थिति बेकाबू हो जाएगी. इस डर से सरकार ने आत्मसमर्पण कर दिया. रक्षामंत्री जसवंत सिंह भारत की जेल में सड रहे तीन खूंखार आतंकवादियों को गाजेबाजे के साथ कंधार ले गए और उसके बदले में बाकी क्रू मेंबर्स तथा यात्रियों को छुडा कर ले आए. कौन थे वे आतंकवादी? जरा याद कीजिए?
पुलवामा में १०० किलो से अधिक विस्फोटक सामग्री एसयूवी से आत्मघाती हमला करके केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के ४० से अधिक जवानों की जान लेने का षड्यंत्र किया, उस जैश ए मोहम्मद का लीडर मौलाना मसूद अजहर था, जिसने २००१ में दिल्ली के संसद भवन पर हमला करवाया था.
दूसरा था अहमद उमर सईद शेख, जिसने डेनियल पर्ल नाम के वॉल स्ट्रीट जर्नल दैनिक के इजराइली पत्रकार का अपहरण करके उसकी हत्या कर दी थी.
और तीसरा मुश्ताक अहमद जर्गर, जो पीओके में आतंकवादियों को ट्रेनिंग देने का काम करता था.
मसूस अजहर को सरकार ने जनता के दबाव में आकर छोडा न होता तो आज परिस्थिति की कुछ और ही होती. इसीलिए ये समय नहीं है मोदी को सलाह देने का. विचित्र कविताएं या बेढंगे व्हॉट्सएप मैसेजेस फॉरवर्ड करने का काम हमें बंद करना चाहिए. मन ही मन शहीदों की आत्मा की सद्गति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और यदि सचमुच में देश के प्रति भावना प्रकट करनी हो तो उनके परिवारजनों के पास जाकर उन्हें भरपूर आर्थिक सहायता करके सांत्वना देनी चाहिए कि हम तन-मन-धन से शहीदों के परिवारजनों के साथ हैं. यदि इस तरह का काम करने की संभावना, चाहता या सुविधा न हो तो बात समझी जा सकती है. ऐसे समय में चुप रहना चाहिए. मोदी को उनका काम करने देना चाहिए. बाकी, अभी हम सभी लोग जो कर रहे हैं वह कोई देशप्रेम प्रकट करने का सहीं तरीका नहीं है.
जयहिंद