(न्यूज़प्रेमी डॉट कॉम: गुरुवार, २५ मार्च २०२१)
पिछले सात वर्ष में मोदी के बजाय राहुल का शासन होता या मनमोहन सिंह जैसे सोनिया गांधी के इशारे पर नाचनेवाले किसी अन्य का शासन होता और भाजपा के बदले इस देश पर कांग्रेस का कब्जा होता तो इस देश में क्या हुआ होता?
इन ७ वर्षों में करोडों बांग्लादेशी घुसपैठिए पश्चिम बंगाल और असम में ही नहीं बल्कि सारे देश में फैल गए होते. २०१४ से पहले, सोनिया-मनमोहन के राज में, लाखों घुसपैठिए इस देश में आ ही गए थे. मुंबई के मीरा रोड और मुंब्रा में तथा अहमदाबाद के एक विशेष क्षेत्र में बांग्लादेशी कई दशकों से बसे हैं. मूल रूप से यह पाप इंदिरा गांधी का है जिन्होंने पूर्व पाकिस्तान से आए एक लाख से अधिक `शरणार्थियों’ को भारत में बसने दिया. इतना ही नहीं उन्हें `संभालने’ के लिए खर्च हो रहे करोडो रुपए रिफ्यूजी रिलीफ स्टैंप के नाम पर भारतीय नागरिकों से वसूले.
कांग्रेस से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक सभी राजनीतिक दलों के लिए ये घुसपैठिए वोटबैंक हैं. केवल भाजपा अपवाद है. बंगाल विधानसभा के चुनाव में कई लोग नाराज होंगे, कई सारे लोग भाजपा के विरुद्ध मतदान करेंगे ऐसा खतरा लेकर भी भाजपा ने खुलेआम जाहिर किया है कि सत्ता पर आएंगे तो बंगाल में सी.ए.ए. लागू करेंगे.
गत सात वर्ष के दौरान मोदी-भाजपा यदि सरकार नहीं चला रहे होते तो म्यांमार से और भी कई सारे रोहिंग्या मुस्लिम भारत आकर आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, वोटर्स कार्ड, राशन कार्ड धारक बन गए होते .
म्यांमार में अपनी हिंसक प्रवृत्ति के कारण कुप्रसिद्ध बन चुके रोहिंग्याओं को हैदराबाद में असदुद्दीन ओवैसी आश्रय देते हैं और जम्मू कश्मीर से जब तक धारा ३७० को नहीं हटाया गया था तब फारुख-उमर अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती की ओर से आश्रय मिल रहा था.
धारा ३७० हटने के बाद भारत सरकार ने कश्मीर में घुसे हजारों रोहिंग्याओं को चुन चुन कर डिटेंशन सेंटर में भेजा. उन्हें देश से निकालने की कानूनी कार्रवाई शुरू की तब उनके समर्थन में कौन आ रहा है? प्रशांत भूषण. अरविंद केजरीवाल के किसी जमाने में निकटतम साथी और राष्ट्रीय उपद्रवी एड्वोकेट प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में इन रोहिंग्याओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने देने के लिए, उन्हें इसी देश में रहने देने के लिए एक याचिका दाखिल करके मोदी सरकार के सामने फिर एक बार अडंगा डाला है.
केंद्र में भाजपा सरकार होने के बावजूद रोहिंग्याओं का पक्ष लेनेवाले देशद्रोही इस देश में हैं. केंद्र में कांग्रेस होती तो ये देशद्रोही रोहिंग्याओं को दामाद बनाकर संभाले रखते.
यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है. मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे तब सच्चर रिपोर्ट नामक एक विभाजनकारी रिपोर्ट की सराहना करते हुए वे सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि,`इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है.’
क्या जुर्रत है!
कांग्रेसियों के तो खून में ये सब है. कम्युनल हार्मनी बिल के नाम पर एक भयंकर प्रावधान कांग्रेस ला रही थी- सोनिया के राज में. इस देश का सौभाग्य है कि ये बिल पारित न हो सका और कानून का स्वरूप प्राप्त नहीं पर पाया. सांप्रदायिक सौहार्द्र के नाम पर इस बिल में ये प्रावधान था कि देश में जो भी सांप्रदायिक दंगे होंगे उसमें कानूनी कार्रवाई के समय मुसलमानों का पलडा भारी रहेगा और हिंदुओं को भुगतना पडेगा. खाने में जमालुद्दीन और पिटने में भगवानदास जैसे प्रावधानों वाला यह प्रस्ताव लाने का दुस्साहस कांग्रेसी कर रहे थे. बेशर्मी की भी हद है. खुलेआम इस देश की ८५ प्रतिशत जनता को एक झटके में सेकंड क्लास सिटिजन बनाने की ये साजिश यदि कामयाब हो जाती तो?
गत ७ वर्ष में कांग्रेस का शासन होता तो इस देश में ३७० धारा का दूषण जारी रहता, इतना ही नहीं देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक स्थापित हो चुका होता और हिंदुओं को सेकंड क्लास सिटिजन बना दिया गया होता.
२००४ से २०१४ तक सोनिया राज की दु:स्वप्न समान स्मृतियों का कार्यकाल जिन्होंने अनुभव किया है वे स्वीकार करेंगे कि फिर एक बार यदि उस अंधेरे युग से नहीं गुजरना है तो मोदी को, भाजपा को, रिपब्लिक जैसे इक्का दुक्का राष्ट्रवादी टीवी चैनल्स को और वामपंथी सेकुलर तथा ल्युटियन्स मीडिया का विरोध कर रहे गिने चुने पत्रकारों को समर्थन देकर, लगातार उनके साथ रहकर उन्हें सशक्त बनाना होगा. मोदी सहित इन सभी पर हो रहे प्रहारों को टालने के लिए देशद्रोहियों, कांग्रेसियों और वामपंथियों के सामने ढाल बनकर खड़े होना पड़ेगा.
हर किसी में कोई न कोई कमी ढूंढकर खुद को दूसरे से ऊंचा दिखानेवाले विरोधियों को समझना चाहिए कि मोदी, भाजपा, रिपब्लिक टीवी जैसी इक्का दुक्का चैनल्स या राष्ट्रीय स्तर पर तथा स्थानीय स्तर पर काम कर रहे गिने चुने हिंदूवादी राष्ट्रनिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ आपको कोई छोटी मोटी शिकायत हो तो उन आपत्तियों को नजरअंदाज़ करके एक विस्तृत परिप्रेक्ष्य देखिए. कौन सी परिस्थिति बेहतर है? कांग्रेस का पांव से सिर तक देश को खाई में धकेलने जा रहा शासन या फिर कोई स्वाभाविक और मामूली खामियों वाला मोदी शासन? करप्शन के अलावा अन्य किसी भी बात पर ध्यान नहीं देने वाले और समाज का विभाजन करनेवाले कांग्रेसी नेतागण आपको चाहिए या फिर छोटी मोटी गलतियां होने के बावजूद देश के विकास के लिए काम करके भारत को अखंड रखने के लिए प्रयत्नशील भाजपा नेता चाहिए?
मोदी में या भाजपा में या हिंदूवादी राष्ट्रनिष्ठ मीडिया-पत्रकारों में कमियां तलाशकर कुछ लोग आलोचनाएं करते हैं तब मुझे एक बात याद आती है. अस्सी के दशक के मध्य की बात है. कुछ साल मैने मुंबई छोडकर सूरत जाकर काम किया था. उस समय स्थानीय समाचारपत्रों में अमेरिकन प्रेसिडेंट रोनाल्ड रेगन की कडी आलोचना करने वाले संपादकीय छपा करते थे और लिखनेवाले की बहादुरी की सराहना वाले चर्चापत्र छपते थे . लेकिन सूरत के मेयर की आलोचना करनेवाले संपादकीय लिखने का साहस किसी में नहीं था.
जो लोग अपनी सोसायटी के चेयरमन या सेक्रेटरी की आलोचना मासिक बैठकों में नहीं कर सकते, वे लोग व्हॉट्सऐप-टि्वटर पर मोदी, शाह, अर्नब की खुलेआम कडी आलोचना करते हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि रोनाल्ड रेगन तो सूरत से अखबार मंगवाते नहीं लेकिन सूरत के मेयर के घर पर सुबह की चाय के साथ स्थानीय समाचार पत्र पढ़े जाते हैं.
ट्विटर इत्यादि पर मोदी की कमियां खोजने वाले अनेक तथाकथित हिंदूवादी भी फूट निकले हैं. उन मित्रों से बस इतना ही कहना है कि बैठे बैठे बातें करने के बजाय राहुल के साथ जुड जाओ ना! अर्णब पसंद नहीं है तो एनडीटीवी चालू करके रवीशकुमार को देखो ना! कौन रोक रहा है आपको!
एक बात याद रखिएगा. जब जब आपको मोदी-भाजपा-रिपब्लिक इत्यादि की आलोचना करने का मन हो तब सोचिएगा कि क्या राहुल-कांग्रेस -एनडीटीवी वाले वातावरण में आप सांस भी ले सकेंगे? कोरोना के कारण लादे गए लॉकडाउन की इस पहली वर्षगांठ के मौके पर हमने फिर एक बार देख लिया है कि मोदी है तो मुमकिन है.
हम भाग्यशाली हैं कि इस युगपुरुष के शासन में जी रहे हैं. हर दिन अठारह घंटे, साल में बिना कोई अवकाश लिए, अपनी और अपने संबंधियों की निजी संपत्ति के लिए एक रुपए का भी अनैतिक काम किए बिना जो आदमी देश के एक एक नागरिक के लिए खून पसीना एक कर रहा है उसे, उनका राजनीतिक अस्तित्व जिनके आधार पर है उस भाजपा को तथा आरएसएस को और उनके संदेश को, उनके कार्य को करोडों तक पहुंचानेवाले इक्का दुक्का टीवी चैनल्स को तथा गिनेचुने पत्रकारों को चलते फिरते टपली मारना बंद करें और हो सके तो उनकी ढाल बनकर उनकी सुरक्षा करें.
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