लिख लिया नाम इस पे तेरा

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

`अभिमान’ जिस साल रिलीज हुई उसके अगले साल सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में फिल्म `अनुराग’ आई. शक्ति सामंता उसके निर्माता- निर्देशक थे. जिन्होंने पहले सचिनदा के साथ `आराधना’ और `राहुल देव बर्मन’ के साथ `अमर प्रेम’ और `कटी पतंग’ बनाई थी. १९६२ में रिलीज हुई शक्ति सामंता की फिल्म `नॉटी बॉय’ में भी सचिन दा का संगीत था, जिसमें किशोर कुमार हीरो थे इसीलिए स्वभाविक रूप से उसमें किशोर कुमार की प्लेबैक सिंगिंग थी ही. `नॉटी बॉय’ और `आराधना’ के बीच के ७ वर्षों में शक्ति सामंता ने रवि, ओ.पी. नैयर और शंकर -जयकिशन के संगीत में हिट फिल्में बनाईं. इन तीनों ही संगीतकारों के साथ पहले शक्तिदा काम कर चुके थे. १९५९ में शक्ति सामंता ने `इंसान जाग उठा’ में एस.डी बर्मन का म्यूजिक लिया था.

`अनुराग’ में सचिनदा ने किशोर कुमार से एक गीत `राम करे बबुआ’ गवाया लेकिन फिल्म में लताजी और रफी साहब का गाया युगल गीत: तेरे नैनों के मैं दीप जलाऊंगा, वो क्या है, एक मंदिर है…. लोकप्रिय हुआ था.

१९७२ में आई तपन सिन्हा की `जिंदगी जिंदगी’ (सुनील दत्त, वहीदा रहमान) में सचिनदा ने किशोर कुमार से तीन गीत गवाए लेकिन उसका एक भी गीत किसी को याद नहीं है. उसी वर्ष वजाहत मिर्जा के लिखे डायलॉग-स्क्रीन  प्ले पर बनी `ये गुलिस्तां हमारा’ नामक चीन सीमा पर उत्पन्न तनाव वाले हालात की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म में सचिनदा ने देव आनंद के लिए किशोर कुमार की आवाज का उपयोग किया `गोरी गोरी गांव की छोरी’ लोकप्रिय हुआ लेकिन लोगों को याद रह गया. डैनी डेंजोंग्पा का गाया ये गीत: मेरा नाम आओ, मेरे पास आओ.

वजाहत मिर्जा एक जमाने के सलीम-जावेद थे. `मदर इंडिया’, `मुगल ए आजम’ और `गंग-जमुना’ के डायलॉग्स उन्होंने ही लिखे थे. १९३३ में रिलीज हुई के. एल. सहगल के नायकत्व में बनी `यहूदी की लडकी’ डायर्लाग राइटर के नाते उनकी पहली फिल्म थी. उन्होंने पांच फिल्मों का निर्देशन भी किया था.

१९७१ का साल सचिनदा-किशोर कुमार के लिए जुगलबंदी का यादगार साल था. `गैंबलर’, `नया जमाना’, `शर्मीला’ और `तेरे मेरे सपने’- ये सचिनदा के संगीतवाली चार फिल्में आईं- `गैंबलर’ में देव आनंद के लिए किशार कुमार ने `चूडी नहीं ये मेरा दिल है’ गाया. `दिल आज शायर है’ भी गाया. इसके अलावा दो गीत गाए थे. मोहम्मद रफी का गाया `मेरा मन तेरा प्यासा’ भी लोकप्रिय हुआ. गुलशन नंदा के उपन्यास पर आधारित प्रमोद चक्रवर्ती द्वारा निर्मित `नया जमाना’ के लिए किशोर कुमार ने धर्मेंद्र को अपनी आवाज दी. दो गीत गाए जिसमें से `दुनिया ओ दुनिया तेरा जवाब नहीं’ अभी भी याद है. `शर्मीली’ में किशोर कुमार छा गए. शशि कपूर- राखी की इस फिल्म की कहानी भी गुलशन नंदा की थी. (गुलशन नंदा के दो होनहार पुत्र हिमांशु नंदा- राहुल नंदा दो दशकों से हिंदी फिल्मों की पब्लिसिटी डिजाइन का बडा कारोबार करते हैं. करीब हर बडी फिल्म का लोगो , उसके पोस्टर, उसकी पब्लिसिटी की सामग्री ये दोनों भाई तैयार करते हैं. किसी जमाने में राहुल नंदा गुजराती कवि-उपन्यासकार हरींद्र दवे की प्रचलित रचना `माधम क्यांय नथी मधुवन मां’ सहित अनेक गुजराती उपन्यासों की ऑडियोबुक बनाने की योजना की थी)‍. `शर्मीली’ में लताजी के साथ किशोरदा का युगल गीत `आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन…’ और `कैसे कहें हम’ आपको याद होंगे और ये दोनों गीत तो आप कभी नहीं भूलेंगे: खिलते हैं गुल यहां, खिल के बिखरने को’ और `ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली आओ ना तडपाओ ना. और तेरे मेरे सपने’. निर्माता- अभिनेता देव आनंद के साथ मुमताज और हेमा मालिनी और निर्देशक विजय आनंद. ए मैने कसम ली और जीवन की बगिया महकेगी- ये दो गीत कौन भूल सकता है.

उसी तरह १९७० में देव आनंद द्वारा निर्मित – निर्देशित `प्रेम पुजारी’ में हाल ही में दुनिया छोडकर गए कवि नीरज ने सचिनदा के संगीत में शब्द लिखे और किशोर कुमार ने उन्हें गाकर अमर कर दिया जो आज भी याद है: शोखियों में घोला जाए…. और फूलों के रंग से…. ये दोनों गीत आप आज भी शब्दश: गा सकते हैं. ट्राय कीजिएगा (जब नहाने जाइएगा तब). लताजी का रंगीला रे तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन भी कैसे भूला जा सकता है?

१९६६ मे `गाइड’ रिलीज होने के बाद सचिनदा के संगीतवाली तीन फिल्में आईं जिसमें से `तलाश’ (१९६९) में किशोरदा का एक भी गीत नहीं था. फिल्म सुपरहिट हुई थी, गीत भी खूब लोकप्रिय हुए थे. ओ.पी. रल्हन ने उस जमाने में पब्लिसिटी की थी कि अभी तक बनी ये सबसे महंगी फिल्म है- एक करोड रूपए‍ के खर्च से बनी है.

`ज्वेल थीफ’  १९६७ में आई. देव आनंद का प्रोडक्शन था. छोटे भाई विजय आनंद का निर्देशन था. अशोक कुमार की दमदार भूमिका, वैजयंतीमाला और तनुजा के साथ देव आनंद तो थे ही. देव आनंद ने उसमें जो ब्लैक एंड व्हाइट चेक्सवाली टोपी उस समय खूब लोकप्रिय हुई थी, फुटपाथ पर बिकने लगी. मजरूह सुलतानपुरी का लिखा ये गीत किशोर ने गाया: ये दिल न होता बेचारा. लताजी के साथ डुएट गाया: आसमां के नीचे हम आज… इसी फिल्म का एक गीत शैलेंद्र ने लिखा जो लताजी की आवाज में है: रुला के गया सपना मेरा. इस फिल्म से एक हुनरमंद गिटारिस्ट प्लेबैक सिंगिंग के क्षेत्र में कदम रखा. भविष्य में जिन्होंने `दिल ढूंढता है’ और `बीती ना बिताई रैना’ ऐसे भूपिंदर सिंह ने लताजी के गीत `होठों में ऐसी बात’ को आवाज दी: `ओ…शालू!’ बस यही दो शब्द थे.

और तीसरी फिल्म थी `आराधना’ जिसने राजेश खन्ना और किशोर कुमार के करियर का ग्राफ ऊपर ले जाने में जबरदस्त भूमिका निभाई थी. बेशक, आनंद बक्षी `जब जब फूल खिले’ से सुपरहिट गीतकार के रूप में प्रसिद्ध हुए, लेकिन `आराधना’ के बाद उनकी गणना टॉप क्लास गीतकारों मे होने लगी. चौथा व्यक्ति जिसे `आराधना’ ने संगीतकार के रूप में करियर में जबरदस्त बूस्ट दिया वे थे सचिन देव बर्मन के असिस्टेंट राहुल देव बर्मन. शक्ति सामंता ने `आराधना’ के बंगाली वर्जन के पोस्टर्स तथा होर्डिंग्स में संगीतकार पिता के अलावा उनके पुत्र को भी असिस्टेंट के रूप में क्रेडिट दिया था. फिल्मों में सहायक बने संगीतकार के लिए इतनी बडी क्रेडिट अभी तक कभी नहीं मिली थी. शक्ति सामंता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि `आराधना’ से मैने इतना कमाया था कि केवल उसकी म्यूजिक की कमाई में से मेरू अगली पांच फिल्मों का खर्च निकल गया. `आराधना’ में संगीत देने का आमंत्रण लेकर शक्ति सामंता सचिनदा से मिले थे तब सचिनदा ने `गाइड’ के म्यूजिक से जबरदस्त सफलता का स्वाद चखा था. हालांकि सचिनदा के लिए ऐसी सफलताएँ नई नई नहीं थीं. `गाइड’ आज एक क्लासिक फिल्म मानी जाती है, लेकिन रिलीज के समय बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट नहीं हुई थी, उसका संगीत सुपरडुपर हिट साबित हुई. सचिनदा ने शक्तिदा से कहा `मैं आपकी नई फिल्म नहीं कर सकता हूं. मेरा रेट बढ गया है. आप नहीं दे सकेंगे.’

बहुत ही आनाकानी करने के बाद शक्तिदा ने जब सचिनदा को खूब आग्रह किया तब सचिनदा ने अपनी नई फीस बताई: पहले आपने मुझे जो फीस दी थी उससे पांच हजार रूपए ज्यादा.

शक्ति सामंता ने कहा: मैं तो आपको एक लाख रूपए ज्यादा देने की गिनती करके आया था!

और `आराधना’ शुरू हो गई. उसका संगीत तैयार हो गया. हुआ यूं कि किशोर कुमार के गाए इन तीनों गीतों का उल्लेख किए बिना हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णिम युग की बात भी अधूरी है: रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना, मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू, और कोरा कागज था ये मन मेरा लिख दिया नाम इस पे तेरा…

आज का विचार

एक बारिश की बूंद तस्वीर में मढ दी
तब से उसके नम किनारे कभी सूखे नहीं.

– रमेश पारेख

एक मिनट!

बका: (दुकानदार से): आप तबला और बंदूक बेचते हैं. ये कैसा मेल है?

दुकानदार: जो भी तबला खरीद कर जाता है उसका पडोसी दो दिन बाद बंदूक लेकर जाता है.

(मुंबई समाचार, बुधवार – ८ अगस्त २०१८)

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