गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(newspremi.com, रविवार – ३१ मार्च २०१९)
एक ओर हिंदू आतंकवाद का भ्रम फैलाना शुरू हुआ तो दूसरी तरफ मुस्लिम आतंकवादियों को को जान मारने के मामलों को `फेक एनकाउंटर’ के रूप में साबित करने की उठापटक शुरू हो गई. २००६ में अहमदाबाद में सोहराबुद्दीन शेख को मारने का सीधासादा केस किस तरह से फेक एनकाउंटर में बदल दिया गया और किस तरह से डी.जे. वंजारा जैसे जांबाज पुलिस ऑफिसर तथा उनकी टीम को वर्षों तक जेल में रखा गया, इसका इतिहास आप जानते हैं. सोहराबुद्दीन लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तानी जासूसी संस्था आई.एस.आई. (इंटर सर्विसेस इंटेलिजेंस) से जुडा था. सेकुलर और वामपंथी पत्रकारों ने खूब उठापटक की. लेकिन सत्य की जीत हुई. बंजारा और अमित शाह सहित सभी लोग निर्दोष साबित हुए.
एक बात आप मार्क कीजिएगा. कोई मुस्लिम आतंकवादी या गुंडामव्वाली पकडा जाता है और वर्षों तक जेल में रहने के बाद कोर्ट उसे निर्दोष घोषित करता है तो सेकुलर मीडिया के वामपंथी पत्रकार शोर मचा देते हैं कि इस बेगुनाह को जेल में रखकर उसके परिवार पर जो गुजरी है, उसने खुद जो पीडा सही है उसका मुआवजा कौन देगा? लेकिन मुस्लिम आतंकवादियों को जान से मारनेवाले बंजारा जैसा साहसी पुलिस अधिकारी तकरीबन एक दशक तक जेल में पडा रहे और अंत में निर्दोष किया जाता है तब इन वामपंथी पत्रकारों में से कोई भी माई का लाल वही मापदंड अपनाकर ये नहीं कहता है कि इस बेगुनाह हिंदू पुलिसवाले के परिवार ने तथा उसने खुद जो यातनाएं सही हैं उसका कॉम्पेन्सेशन कौन देगा. मुस्लिम आतंकवादियों को भारत से मुआवजा दिलवाने वाले सेकुलर पत्रकार कभी भी हिंदू पुलिसवालों को मुआवजा देने की मांग नहीं करते.
ऐसे ही `फेक एनकाउंटर’ का किस्सा आर.वी.एस. मणि ने `द मिथ ऑफ हिंदू टेरर’ में लिखा है.
दिल्ली में १३ सितंबर २००८ को पांच जगहों पर बम विस्फोट हुए थे जिसमें ३० लोग मारे गए, १०० घायल हुए थे. इस ब्लास्ट का षड्यंत्र रचनेवाले आतिफ अमीन और उसके साथी नई दिल्ली के जामिया नगर के शाहीन बाग स्थित बाटला हाउस नामक इमारत के एल-१८ फ्लैट में रहते हैं, ऐसी सूचना दिल्ली पुलिस को मिली. १९ सितंबर २००८ को सुबह साढे दस बजे के आस पास इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा तथा दिल्ली पुलिस की विशेष सेल की टीम ने बाटला हाउस की चार मंजिला इमारत पर छापा मारा. छिपे हुए आतंकवादियों ने गोलीबारी शुरू कर दी. पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई की. आतिक अमीन और मोहम्मद साजिद नाम के आतंकवादी मारे गए. आतंकवादियों की गोली से इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा शहीद हो गए. वे स्पेशल सेल के श्रेष्ठ अधिकारियों में एक थे. दो आतंकवादियों को जीवित पकडा गया- मोहम्मद सैफ और जीशान. एक भागने में कामयाब रहा. दो पुलिसवाले घायल हुए.
इस एनकाउंटर के बाद दिग्विजय सिंह के कहने से मीडिया ने बाटला हाउस एनकाउंटर को फेक बताने की खोखली थियरी को इतना प्रचारित किया कि लोग सच मानने लगे. जिस एनकाउंटर में खुद उस एनकाउंटर को लीड करनेवाला पुलिस इंस्पेक्टर अपनी जान गंवा देता है, वह फेक कैसे हो सकता है, ये पूछने के बजाय मीडिया में हर कोई कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए इसी झूठ के अभियान में शामिल हो गया. बाटला हाउस एनकाउंटर के समय गृहमंत्री शिवराज पाटील दिल्ली पुलिस के मुख्यालय में किसी उद्घाटन समारोह में मौजूद थे और उन्हें इस एनकाउंटर के बारे में सेकंड सेकंड की जानकारी दी जा रही थी. वहां आने-जानेवाले वायरलेस मैसेज से भी वे वाकिफ रहे होंगे. लेकिन दिग्विजय सिंह ने जब फेक एनकाउंटर की थियरी प्रचारित की तब शिवराज पाटील को साहस ही नहीं हुआ कि वे दिग्विजय सिंह के झूठ का पर्दाफाश कर सकें. शिवराज चुप्पी साधकर दिग्विजय के षडयंत्र में शामिल हो गए. शिवराज पाटील का इससे भी बडा पाप तो २६/११ के मुंबई बम धमाके के समय खुलनेवाला था. ये बात बाद में करेंगे.
बाटला हाउस एनकाउंटर की पुलिस जांच हुई. उसे फेक एनकाउंटर का टि्वस्ट दिया गया. यह जांच जॉइंट कमिश्नर (क्राइम) अमूल्य पटनायक के नेतृत्व मेह हुई जो आगे चलकर दिल्ली के सी.पी. (कमिश्नर ऑफ पुलिस) बने.
दिग्विजय सिंह द्वारा शुरू किए गए मिथ्या प्रचार में कांग्रेसी नेता तथा मीडिया जब जुड गई तो एन.जी.ओ. वाले भला कैसे पीछे रहते. `एक्ट नाव फॉर हार्मनी एंड डेमोक्रेसी’ जैसी विचित्र नामवाली एनजीओ ने दिल्ली हाईकोर्ट का रूख किया कि इस मामले की जांच नेशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन से कराई जाए. एक अत्यंत शर्मनाक थियरी यह भी प्रचारित की गई कि इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा को आतंकवादियों ने नहीं बल्कि उनके खुद के ही पुलिस साथियों ने मार डाला. वे तो आंतरिक ईर्ष्या और स्पर्धा का शिकार हुए हैं.
ऐसी असत्य बातें समय बीतने पर असत्य ही साबित होती हैं. मीडिया को, राजनेताओं को, एन.जी.ओ. वालों को तथा सेकुलर वामपंथी ब्रिगेड को पता होता है कि सत्य क्या है और एक न एक वह बाहर आए बिना नहीं रहेगा, लेकिन उन्हें भी पता होता है कि अंतिम परिणाम क्या निकला, इसकी परवाह लोगों को नहीं होती. घटना की गर्माहट में जो कुछ भी प्रचार में उछाला जाता है, लोग उसी के बहाव में आ जाते हैं. आज की तारीख में भी आप लोगों से पूछेंगे तो उन्हें सोहराबुद्दीन `फेक एनकाउंटर’ केस की जानकारी होगी लेकिन बंजारा के साथ ही सभी लोगों के उससे निर्दोष मुक्त होने की बात बहुत ही कम लोगों को पता होगी. पब्लिक परसेप्शन में आज भी बाटला हाउस केस `फेक एनकाउंटर’ का ही है और स्वामी असीमानंदजी तथा साध्वी प्रज्ञादेवी बेगुनाह मुक्त होने के बाद भी `हिंदू आतंकवादी हैं. इसके दो कारण हैं. ऐसे केस जब होते हैं तब इतना झूठ फैलाया जाता है कि झूठ के धुएं में सत्य पूरी तरह से छिप जाता है. वर्षों बाद जब धुंध छंटती है और सत्य सामने आता है तब मीडिया शायद ही उस पहले पेज पर प्रमुखता से छापती है. अधिकतर अंदर के पेज पर ऐसी खबरों को सुला दिया जाता है. उस रिपोर्ट की भाषा भी जानबूझकर इतनी अटपटी और अस्पष्ट रखी जाती है कि निर्दोष छूटनेवाले सचमुच निर्दोष छूटे हैं ऐसी छाप पाठक पर पडने के बजाय उन पर लगे आरोप ही पाठकों को याद रहते हैं.
दूसरा कारण ये है कि जनता ये मान लेती है कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती या स्वामी असीमानंद या बंजारा या अमित शाह जैसों को जब कोर्ट निर्दोष छोडती है तो वे अपने `रूतबे’ के कारण छूटे हैं यानी जनता ये मान बैठती है कि `बडे लोगों को तो कोर्ट भी हाथ नहीं लगा सकती.’ ऐसी मान्यता के पीछे दो कारण हैं. कांग्रेस के शासन में सचमुच ऐसा होता था कि बडे बडे बिजनेसमैन से लेकर राजनेता बडे बडे कांड या हत्या या बलात्कार के कोर्ट केसेस से आसानी से छूट जाते थे. दूसरे, वामपंथी मीडिया ने पिछले ७० सालों में लोगों के दिमाग में इस कदर भूसा भर दिया है और उसमें एक ही बात ठूंस ठूंस कर भरी है कि ये सारा तंत्र गरीबों के लिए अन्यायकारी है और धनवान और बडे लोग इस सिस्टम का उपयोग करके निर्दोष छूट जाते हैं.
अखबार में छपी बात सत्य है और टीवी पर देखी बात तो सवाया सच है, ऐसा हमने मान लिया है और कांग्रेस ने तथा उसके पालतू सेकुलर एक्टिसिस्टों ने और वामपंथी मीडिया ने हमारी इस मान्यता का अभी तक भरपूर दुरूपयोग किया है.
ताज, सी.एस.टी, कैफे लियोपोल्ड इत्यादि पर हुए २६/११२००८ के आतंकी हमले में क्या कांग्रेसी नेता और कांग्रेस का पाले हुए ब्यूरोक्रेट्स का और पाकिस्तानी आतंकवादियों का सक्रिय हाथ था? आर.वी.एस मणि `द मिथ ऑफ हिंदू टेरर’ पुस्तक में जो लिखते हैं, उसी का उल्लेख मुझे करना है. शेष कल.
आज का विचार
श्रीमती प्रियंका वाड्रा ने कहा कि `अयोध्या आने के बावजूद रामलला का दर्शन करने नहीं जाऊंगी क्योंकि मामला कोर्ट में है.’ तब लोगों ने पूछा कि,`मामला तो तुम्हारे पति का भी कोर्ट में है और तुम्हारी मात- तुम्हारे भाई का भी कोर्ट में है. तो क्या तुम ससुराल या मायके नहीं जाओगी?’
एक मिनट!
बका बैंक में गया: `मोटरसाइकिल खरीदने के लिए लोन चाहिए.’
मैनेजर: `ईएमआई कैसे भरेंगे?’
बका: `माननीय राहुल भैया जो ७२,००० रूपए हर साल देनेवाले हैं, उसमें से काट लीजिएगा.’
Wah Saurabhji. Thanks for sharing unknown facts