बहुसंख्यक अल्पसंख्यक न बन जाएं इसके लिए दृढ हिंदूवादियों की ज़रूरत है- लेख ५: सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग क्लासिक्स: रविवार, २६ अप्रैल २०२०)

पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा अन्य कई राज्यों में भी भारतीय धर्मों के अनुयायियों की जनसंख्या भयंकर रूप से घटती जा रही है. उत्तर प्रदेश में १९०१ में साढ़े ८५ प्रतिशत भारतीय धर्म के अनुयायी थे. वे १९९१ में साढ़े ८२ प्रतिशत हो गए. इसके विपरीत मुस्लिमों की आबादी उत्तर प्रदेश में खतरनाक तरीके से बढ़ रही है. १९०१ में १४ प्रतिशत मुस्लिम उत्तर प्रदेश में थे जो १९९१ में बढ़कर १७ प्रतिशत हो गए. २०११ की जनगणना में ऑलमोस्ट २० प्रतिशत पर ये आंकडा पहुंच चुका है. पीएम मोदी ने इस राज्य के नए मुख्य मंत्री के रूप में जिम्मेदारी `हार्ड कोर हिंदुत्ववादी’ (असल में ऐसा कहना चाहिए कि मूल्यनिष्ठ हिंदूवादी, दृढ हिंदूवादी) योगी आदित्यनाथ को सौंपकर बहुत ही समझदारी का काम किया है. मु्ल्ला मुलायम सिंह और उनके पुत्र की समाजवादी (एक्चुली नमाजवादी) पार्टी को और कांग्रेस को यदि अधिक कारनामे करने से रोकना हो तो सेकुलर मीडिया की तनिक भी परवाह किए बिना मोदी को बोल्ड डिसीजन्स लेने ही थे.

राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित करीब हर राज्य में मुसलमानों की आबादी का प्रतिशत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है. केरल जैसे राज्य में तो थोडे ही समय में भारतीय धर्मों के अनुयायी अल्पसंख्यक हो जाएंगे. केरल में १९०१ में १३ ईसाई और १७ प्रतिशत मुसलमानों के सामने ६९ प्रतिशत भारतीय धर्मों के अनुयायी थे, जो १९९१ में घटकर केवल ५७ प्रतिशत रह गए और मुसलमान बढ़कर २३ प्रतिशत तथा ईसाई बढ़कर १९ प्रतिशत हो गए.

भारत में बसने वाले अल्पसंख्यकों की जिन्हें चिंता है, उन्हें बांग्लादेश में तथा पाकिस्तान में रहनेवाले अल्पसंख्यक समुदाय की भी चिंता करनी चाहिए‍. भारत में अल्पसंख्यक माने जानेवाले दोनों संप्रदाय- मुसलमान और ईसाई- तेजी से फलफूल रहे हैं, उनकी कुल आबादी तथा उनकी आबादी की बढोतरी की दर तथा प्रतिशत सभी कुछ बढ़ रहा है और वह भी भारत की मूल मुख्य जनता की कीमत पर ये बढोतरी हो रही है. इसके विपरीत बांग्लादेश में भारतीय धर्म के अनुयायियों का क्या हाल है? १९०१ में बांग्लादेश में अर्थात आज के राजकीय बांग्लादेश में उस समय के भौगोलिक प्रदेशों में ३४ प्रतिशत आबादी भारतीय धर्मों के अनुयायियों की थी, और ६६ प्रतिशत मुसलमान थे. १९९१ के बांग्लादेश में भारतीय धर्मो के अनुयायियों की जनसंख्या घटकर ११ प्रतिशत हो गई है और भारत में अल्पसंख्यक मौज से रह सकते हैं (और सरकार के सिर पर चढ़कर तबला भी बजा सकते हैं) ऐसी स्थिति बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की नहीं है. वहां के हिंदुओं पर अक्सर हमले होते रहते हैं, बलात्कार होते हैं, उन्हें लूटा जाता है, उनके धर्म-आस्था के स्थानों को बारंबार नष्ट किया जाता है.

पाकिस्तान में स्थिति इससे भी खराब है. १९०१ में १५ प्रतिशत भारतीय धर्म के अनुयायियों वाले पाकिस्तान में आज की तारीख में पौने दो प्रतिशत से भी कम आबादी उनकी (यानी कि हम लोगों की, हिंदुओं की) हो गई है और मुसलमान ८४ प्रतिशत से बढकर ९७ प्रतिशत पर पहुंच गए हैं.

इसके बावजूद आज भारत के अनेक तथाकथित बुद्धिवादी लोग चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों पर अन्याय होता है. ये सयाने पुरुष अगर सचमुच में निष्पक्षता या तटस्थता प्रेमी हैं तो उन्हें पाकिस्तान और बांग्लादेश में जाकर वहां के अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लडना चाहिए, वहां की सरकारों के पास जाकर इन अल्पसंख्यकों के संहार या जेनोसाइड या पोग्रोम का हिसाब मांगना चाहिए.

चेन्नई की सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज ने जो विशाल संशोधन ग्रंथ प्रकाशित करके इतने सारे आंकडे हम तक पहुंचाए हैं, उसी प्रकार से कोन्राड एल्स्ट ने भी `द डेमोग्राफिक सीज’ नामक पचास पृष्ठों की पुस्तिका लिख कर इस समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया है. वॉइस ऑफ इंडिया, दिल्ली द्वारा प्रकाशित और इंटरनेट पर आसानी से सर्च करके खरीदी जा सकनेवाली ये छोटी किंतु विस्फोटक सामग्रियों से समृद्ध पुस्तिका का विस्तार से विवेचन और विश्लेषण करने के लिए कल इस जनसंख्या पुराण को आगे बढ़ाएंगे.

(यह लेख मार्च २०१७ को लिखी श्रृंखला सिरीज से अपडेट करके लिया गया है.)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here