संडे मॉर्निंग
सौरभ शाह
यहां पर सफाई का अर्थ है स्पष्टीकरण. बास्टरडाज्ड हो रही पत्रकारिता की भाषा के अनुसार सफाई का अर्थ रहस्योद्घाटन लेकिन शुद्ध हिंदी में सफाई का अर्थ होता है क्लैरिफिकेशन यानी स्पष्टीकरण. जिन्हें नाक साफ करना भी नहीं आता ऐसे लोग जब पत्रकारिता में घुस जाते हैं तब पत्रकारिता की भाषा बास्टरडाइज्ड हो जाया करती है.
खैर. बात आरोपों की चल रही है. आजकल ट्रेडिशनल मीडिया में, सोशल मीडिया में, निजी बातचीत को सार्वजनिक सभा में या फिर संसद में बेरोकटोक होकर बेबुनियाद आरोप लगाने का एक खतरनाक ट्रेंड शुरू हो चुका है. मैं इसे केजरीवालगिरी या राहुलगिरी का नाम देता हूं. आप इसे पप्पूगिरी भी कह सकते हैं.
कल्पनाओं की तरंगों से उभरनेवाले आरोप लगाते लोग अपने मन की गंदगी को बाहर उंडेलते रहते हैं. असल में उन्हें मां-बहन की गालियां ही देनी होती हैं लेकिन वे सार्वजनिक रूप से अपशब्द से अपनी छवि को लगने वाले कलंक के बारे में अवगत होते हैं इसीलिए वे इन अपशब्दों के बदले में बेबुनियाद आरोप करते रहते हैं. अब से जब भी संसद में, मीडिया में, सोशल मीडिया में, सार्वजनिक सभाअें में या फिर निजी बातचीत में किसी के मुख से आप बेबुनियाद आरोप सुनें तो मान लें कि वे बोलना तो चाहते हैं मां-बहन की गालियां ही पर उनके मुंह से निकल रहे हैं बेबुनियाद आरोप.
आरोप लगाना आसान काम है, वह भी स्पेशली उस समय जब आपको आरोपों के साथ प्रमाण देने की जरूरत नहीं होती है, और आरोप जब झूठ साबित होते हैं तब आपको कोई मुआवजा नहीं भरना पडता. कीचड उछालने के अलावा जब कोई दूसरा उद्देश्य नहीं होता है तब कई लोगों के लिए बेबुनियाद आरोपों का हथियार सुलभ होता है.
जब भी कोई आरोपबाजी करता दिखे तब हमें सबसे पहले उस व्यक्ति का बैकग्राउंड पता करना चाहिए कि वह जिस पर आरोप लगा रहा है उसकी तुलना में उसने अपने क्षेत्र में कितना काम किया है. राहुल गांधी जब नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाते हैं तब आकलन करना चाहिए कि सार्वजनिक जीवन में मोदी ने कितना काम किया है, राहुल ने कितना काम किया है. सोशल मीडिया पर कोई लल्लू पंजू जब किसी क्षेत्र के दिग्गज पर कीचड उछालता है तब तमाशा देखने वाले व्यक्ति को इन दोनों व्यक्तियों के बैकग्राउंड की जांच करनी चाहिए. कानाफूसी करनेवाले को जिसने भद्दे कमेंट्स करने का अभियान छेडा हुआ हैं उसने अपने क्षेत्र में क्या करामात की है और जिसके बारे में अंधाधुंध आरोप किए जा रहे हैं उसने अपने क्षेत्र में कितना प्रचंड काम किया है, बेबुनियाद आरोप लगाने का एक उद्देश्य तो अपने मन भरे फ्रस्ट्रेशन को बाहर निकालना होता है तथा एक और हेतु यह भी होता है कि सामनेवाले व्यक्ति को रॉन्ग बॉक्स में रखकर सफाई देने पर उसे मजबूर करो. यहां पर एक ट्रिक सिचुएशन पैदा होती है. आप उसे अनुचित महत्व नहीं देने के लिए उसे नजरअंदाज करते हैं तो आपकी उपेक्षा का अर्थ ये लगाया जाता है कि आपको डर लग रहा है या फिर दूसरे लोग आपको ऐसा डर दिखाते हैं कि आप उन आरोपों को स्वीकार कर रहे हैं, आपके स्पष्टीकरण में लोगों के गले उतरने जितनी सच्चाई नहीं है. आरोपों में उछाला गया कीचड आप पर चिपक जाएगा.
आप अपना काम छोडकर आरोपों का खुलासा देते रहें और आरोप करनेवाले अपना कॉलर ऊंचा करके अपने छोटे, संकुचित दायरे में घूमते रहते हैं कि देखा, मैं जो कहता हूं उसका कितना वजन होता है? इतने बडे आदमी को भी मेरी बातों का जवाब देना पडा? बेबुनियाद आरोपों का जवाब दिया जाय या नहीं, इसका कोई स्टैंडर्ड फॉर्मूला नहीं है. कभी कभी चुप रहने और चाटुकारों – मिनियन्स को महत्व नहीं देने में ही समझदारी होती है. कभी कभी कोई खुला तीर छोडकर उसे मर्माहत करने में भी समझदारी होती है. कभी प्रत्यारोप करना जरूरी होता है. बेबुनियाद आरोप लगानेवालों को यह पता होता है कि वे खुद गप्पे हांक रहे हैं, कोरा झूठ फैला रहे हैं. ऐसे झूठे और बेशर्म लोगों के आरोपों का जवाब देकर अपना कीमती वक्त बर्बाद करना समझदार लोगों को उचित नहीं लगता इसीलिए वे बस अपने ठोस कामों में लगे रहते हैं- मोदी की तरह. जब जरूरत पडती है यानी कि जब पानी नाक तक पहुंच जाता है तब सामनेवाले पप्पुओं को मोदी की तरह ऐसा मुंहतोड जवाब देते हैं कि उन्हें दिन में तारे नजर आने लगते हैं!
आज की बात
संसद में अविश्वास प्रस्ताव के बारे में भाषण करने के बाद राहुल गांधी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झुक कर झप्पी दी तब क्या कहा? `साहब, मुझे भाजपा में ले लीजिए ना…’
– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ
संडे ह्यूमर
बेकारी के दिनों में एक बार बका सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए गया तब उससे इंटरव्यू में पूछा गया: `अंग्रेजी आती है?’
बका: क्यों, चोर इंग्लैंड से आनेवाले हैं क्या?