(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल तृतीया, विक्रम संवत २०७९, मंगलवार, १९ अप्रैल २०२२)
दो सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है, मैने गेहूँ-चावल-शक्कर/चीनी/गुड़-घी-तेल-मिर्च-नमक, कुछ भी नहीं खाया है. सारा जीवन इन सबका त्याग करना है ऐसी बात नहीं है. पचास दिनों के दौरान ये सब छोड़ने के बाद इक्यावनवें दिन से इन सब पर नियंत्रण आ जाना तो निश्चित ही है. प्रतिदिन के आहार में इन सभी की मात्रा घट जाएगी.
योगग्राम के आकर ध्यान में आता है कि अभी तक आप वर्षों से शरीर के पोषण के लिए नहीं बल्कि जीभ के स्वाद के लिए खा रहे थे. एक उपमा ध्यान में आ रही है. मान लीजिए कि पेट्रोल या डीज़ल की गंध आपको अच्छी नहीं लगती. कोई ऑयल कंपनी परफ्यूम से युक्त पेट्रोल बनाती है जिसकी सुगंध आपको बहुत अच्छी लगती है. लेकिन यह सुगंधित पेट्रोल आपकी कार या आपकी स्कूटर/बाइक की टंकी में डाले जाने पर इंजिन पर बुरा असर पडेगा और आपके वाहन के पार्ट्स जल्दी घिस जाएंगे. तब आप क्या करेंगे? आपको अच्छा लगनेवाले, मन को सुकून देनेवाले सुगंध युक्त पेट्रोल को टंकी में डलवाएंगे या फिर जिसकी गंध अच्छी नहीं लगती, ऐसा नॉर्मल पेट्रोल उपयोग में लाएंगे?
आहार के साथ भी यही बात है. बचपन से ही पौष्टिक आहार की आदत के प्रति माता-पिता सजग नहीं होते. बच्चों को दुलारने के चक्कर में नासमझ पैरेंट्स उन्हें चॉकलेट-पिपरमिंट-आइसक्रीम-मिठाइयॉं-पिज्जा-वेफर्स-कोकाकोला की लालच देने लगते हैं, उसके बाद बच्चों को ये अच्छा नहीं लगता, वह अच्छा नहीं लगता, इस तरह से जिद्द करने की आदत पड़ जाती है.स्कूल में जब जाने लगते हैं तब देखादेखी जंक फूड्स के चक्कर में पड जाते हैं. इन जंक फूड्स के लिए जो भारत में अरबों रूपए का कारोबार कर रही मल्टीनेशनल कंपनियां प्रचारप्रसार करती हैं, वह जिम्मेदार हैं. कई स्कूलें ऐसी कंपनियों की एजेंट होती है जो अपनी कैंटीनों में एक्स्ट्रा कमिशन से मिलनेवाली एयरेटेड कोल्ड ड्रिंक्स या वेफई जैसी चीजें बेचकर विद्यार्थियों का पौष्टिक अल्पाहार से वंचित रखती हैं. अधिकांश विद्यार्थी भी नादान बुद्धि के कारण जंक फूड खाने को मॉडर्न मानते हैं जब कि पराठा, चबैना, सब्जी या अन्य दर्जनों आहार लंच बॉक्स में लेकर आने को पुरानी बात मानने लगते हैं. अब तो कई माताएं खुद ही टिफिन में जंक फूड देकर बच्चों को खुश करने के बहाने से अपनी जिम्मेदारी को झटक देती हैं और अपनी पसंद-नापसंद को छिपाने लगती हैं. इसमें इन युवा माताओं की भी गलती नहीं है. वे जिस वातावरण में रह रही हैं वही दूषित है, वे जहां नौकरी-व्यवसाय करती हैं, उस ऑफिस में और अगर वे खुद हाउसवाइफ हैं तो घर के तथा अडोस-पड़ोस के वातावरण में सर्वत्र जंक फूड के प्रदूषण का बोलबाला है.
आहार में स्वाद का बड़ा महत्व है यह तो स्वीकार कर लिया लेकिन स्वाद यानी क्या, इस बात की हमें खबर तक नहीं है. नमक, चीनी और तेल-घी से भरपूर व्यंजन ही स्वादिष्ट होते हैं, ऐसा मान लिया है.
भगवान ने हम सभी को कितना सुंदर शरीर दिया है, जीवन दिया है, बुद्धि दिया है. उनकी कृपा का अनादर नहीं करना चाहिए. – स्वामी रामदेव
स्वामी रामदेव कहते हैं कि स्वाद के लिए ही जो खा रहे हैं उसे जीभ पर रखकर उसका पूरा स्वाद लो. मुंह में एक रसगुल्ला, एक पानी-पुरी रखकर उसका पूरा आनंद लेकर स्वाद की इच्छा को दो मिनट में तृप्त कर लें. क्योंकि आपको पता है कि यह आहार जीभ से गले के नीचे जाने के बाद आपको कोई फर्क नहीं पडेगा कि आपने स्वादिष्ट खाया है या और कुछ, आपने कुछ पसंदीदा खाया है या कुछ और. जो भी खेल है वह केवल जीभ पर रखने का होता है, और यह क्षण भर के लिए होता है. तो फिर दो मिनट के लिए उसका आनंद ले लीजिए. लेकिन बाद में शरीर को पौष्टिक आहार दीजिए.
आज स्वामीजी ने योगाभ्यास के दौरान कहा कि,`भगवान ने हम सभी को कितना सुंदर शरीर दिया है, जीवन दिया है, बुद्धि दिया है. उनकी कृपा का अनादर नहीं करना चाहिए. किसी भी सात्त्विक तत्व का अनादर नहीं करना चाहिए. किसी भी खराब तत्व का आदर नहीं करना चाहिए.’
स्वामीजी ने कहा कि `जीवन विधि-निषेध से चलता है.’
स्वामीजी की इस बात पर जरा विस्तार से विचार करते हैं. विधि यानी क्या क्या करना, किन नियमों का जीवन में पालन करना. निषेध यानी क्या क्या नहीं करना, जीवन में किन बातों का त्याग करना चाहिए या किन बातों को प्रवेश नहीं करने देना है. अंग्रेजी में कहें तो जीवन में कई सारे `डूज़’ और `डोन्ट्स’ तय कर लेने चाहिए.
`जीवन एक अखंड, प्रचंड पुरुषार्थ है. विनम्रता और विनय के साथ होनेवाला पुरुषार्थ है.’ – स्वामी रामदेव
आपको कल कितने बजे उठना है, इसका निर्णय विधि का एक हिस्सा हुआ. जागने के बाद क्या क्या नहीं करना है वह निषेध का हिस्सा माना जाएगा. इसी तरह से खाने-पीने के मामले में धंधा-व्यवसाय-नौकरी के मामले में, संबंधों के मामले में, कमाई के मामले में, खर्च करने के मामले में, सामाजिक और सार्वजनिक जीवन के मामले में, चरित्र के मामले में, विचारों के मामले में, व्यवहारों के मामले में, वाचन के मामले में, बोलने और देखने तथा सुनने के मामले में, घूमने फिरने के मामले में-जीवन के हर मामले में कई विधियां तय करनी होती हैं, कई निषेधों का पालन करना होता है. यह तय करने का काम आपका संस्कारा, आपका पालन पोषण, आपके आसपास का वातावरण, आपका लक्ष्य-ये सभी कुछ आपके विधि-निषेध को तय करने में भूमिका निभाते हैं. ऐसा मुझे लगता है. आप इस बारे में एकांत में विचार करेंगे तो आपको भी लगेगा और स्वामीजी ने एक वाक्य में जो बड़ी बात कही है, उसे समझने में आसानी होगी.
स्वामीजी ने आज यह भी कहा कि,`जीवन एक अखंड, प्रचंड पुरुषार्थ है. विनम्रता और विनय के साथ होनेवाला पुरुषार्थ है.’
उन्होंने कहा,`क्षणिक आवेश या आवेगों में बहने से बचें. उत्तेजना, आक्रोश, रिएक्शन, क्रोध, लालच, धन-दौलत, खान-पान-इन सभी में क्षणिक आवेश के परिणाम या कारण निहित हैं. धैर्य कभी न खोना. क्षणिकवादी कभी न बनना. शाश्वत का प्रतिनिधि बनना. मन होते ही तुरंत शॉपिंग पर निकल जाने के बदले जितना है, उसका आनंद लेना सीखो, कम में संतोष करना सीख लो.’
स्वामीजी की एक-एक बात सूत्रात्मक होती है. प्रत्येक सूत्र पर आप भाष्य लिख सकते हैं:`परंपरा के नाम पर आप परंपरावादी न बन जाना… योग का पहला चलरण ही श्रद्ध है लेकिन अंधश्रद्धा-अंधविश्वास ठीक नहीं है. पाखंड का विरोध करना, उसका समर्थन मत करना…प्रार्थनापूर्वक पुरुषार्थ करना…मैं तो एक दिन में मानो सारा जीवन जी लेता हूं, इस तरह से जीता हूं. कल का दिन मिल जाय तो बोनस है… सात्विक आत्मा को कभी मत सताना. बेबस-लाचार को भी कभी ना सताना…व्यक्ति की नहीं, व्यक्तित्व की उपासना करो. चित्र की नहीं, चरित्र की उपासना करो…दिन के १६ से १८ घंटे सभी को काम करना चाहिए… जड़ से जुड़े रहकर आकाश सो छूना है… आदत बदलो-जीने की, खाने-पीने की आदतें बदल डालो… विपश्यना कई लोग करते हैं. उसमें शून्य की साधना करनी होती है. अपने पास साधना करने के लिए और भी बहुत कुछ है-ओम, गायत्री मंत्र-और भी बहुत कुछ. तो फिर शून्य की उपासना क्यों करनी? मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा लेकिन जो सत्य है, हकीकत है उसकी जानकारी आपको दे रहा हूँ…किडनी की समस्या हो तो गोखरू और कुलक का पानी बना कर पीते रहें. स्टोन फॉर्मेशन नहीं होगा. धनिया को पानी में क्रश करके उसे छानकर पानी पीते रहो…’
ये सारी सूत्रात्मक बातें आज एक ही दिन में, सुबह के योग शिबिर के दौरान, स्वामीजी से सुनीं. हर सूत्र के बारे में चिंतन करके एक-एक लेख लिखा जा सकता है.
कई असाध्य चर्मरोगों तथा अन्य कई सारी बीमारियों के इलाज के हिस्से के रूप में लीच थेरेपी कारगर साबित हुई है. स्वामीजी ने एक बार कहा था भविष्य में सारे देश में खुलने जा रहे सैकड़ों पतंजलि वेलनेस सेंटर्स में लीच थेरेपी उपलब्ध हो, ऐसी योजना है.
योगग्राम में आने से पहले मुझे थोड़ी-बहुत जानकारी थी कि यहां प्राकृतिक चिकित्सा के एक हिस्से के रूप में लीच थेरेपी भी मिलती है. लीच यानी जोंक. ये पानी में होती है. जोंक एक बार आपके पांव या शरीर के किसी अंग पर चिपक जाती है तो आपका खून चूस-चूस कर जब तक तगडी नहीं हो जाती तब तक आपको नहीं छोड़ती और बाद में खुद मर जाती है.
प्राकृतिक चिकित्सा में लीच थेरेपी को शास्त्रीय स्वरूप में अपनाया गया है. यहां पर कई लोग लीच लगवाते हैं. डॉक्टर से रिकमेंडेशन लेनी पडती है या डॉक्टर सामने से आपको सजेस्ट करते हैं. मुझे लीच थेरेपी की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन अपने पैर के वेरिकोज़ वेन्स के इलाज के लिए जिसने योगग्राम में लीच लगवाई है, उससे मैने ये बातें जानी हैं:
सबसे पहले तो लीच लगवाने का निर्णय करने के बाद ब्लड टेस्ट करवाना होता है-आप एच.आई.वी. पॉजिटिव तो नहीं हैं, इसका विश्वास कर लेने के लिए. क्योंकि चिकित्सा सहायक आपके रक्तवाली जोंक को छूते हैं. इसके अलावा, आपका रक्त तुरंत जमने जैसा है या नहीं, यह भी आपकी ब्लड रिपोर्ट से तय हो जाता है. इन दोनों मामलों में आपको समस्या होगी तो आपको लीच थेरेपी नहीं दी जा सकती.
लीच को पानी भरे जार में रखा जाता है. जिस भाग पर लीच रखनी होती है वहां पर पहले दूध लगाया जाता है. वेरिकोज़ वेन्स के लिए पांव पर दो-तीन जगहों पर लगाई जाती है. यह इस पर निर्भर करता है कि समस्या कितनी है. कइयों को कंधे पर, मुंह पर, माथे पर, आंखों के पास, पीठ पर-विविध अंगों के इलाज के लिए लीच लगाई जाती है. दूध इसीलिए कि लीच को ध्यान में आ जाय कि यहां खुराक है. लीच शरीर को छूती तब चींटी काटने जैसा अनुभव होता है. कइयों को अधिक दर्द भी होता है-जिसका जैसा शरीर. करीब एक से दो घंटे तक धीरे-धीरे ये जोंक आपके शरीर से अशुद्ध रक्त चूसती रहती है. इस दौरान वह बिलकुल मोटी हो जाती है. समय ध्यान में लेकर अनुभवी थेरेपिस्ट इन जोकों को आपके शरीर से दूर करते हैं. लीच वैसे के वैसे नहीं निकलती. उस पर थोड़ी हल्दी छिड़की जाती है तो वह तुरंत फिसल कर नीचे गिर पडती है. थरेपिस्ट उन्हें उठाकर धीरे से निचोड़ता है. जोंक द्वारा चूसा गया सारा अशुद्ध रक्त जोंक के शरीर से बाहर निकल जाता है और फिर उस रक्त का उचित निपटारा कर दिया जाता है और जोंक को फिर से पानी वाली जार में रख दिया जाता है. इस तरह से एक बार उपयोग में लाई गई लीच (जोंक) को एक सप्ताह तक `आराम’ दिया जाता है, सप्ताह भर के बाद फिर काम पर लगाया जाता है. जोंक से यदि रक्त को निचोड़ नहीं लिया जाता है, तो वे मर जाती हैं. कई असाध्य चर्मरोगों तथा अन्य कई सारी बीमारियों के इलाज के हिस्से के रूप में लीच थेरेपी कारगर साबित हुई है. स्वामीजी ने एक बार कहा था भविष्य में सारे देश में खुलने जा रहे सैकड़ों पतंजलि वेलनेस सेंटर्स में लीच थेरेपी उपलब्ध हो, ऐसी योजना है. लीच थेरेपी लेने के बाद एक दिन के संपूर्ण आराम करना होता है और नहाना भी नहीं होता. दूसरे दिन बैंडेज खोलकर डॉक्टर जो सूचना देते हैं उसके अनुसार आगे बढ़ना होता है.
खूब सारी गैरजरूरी आवाजें, खासकर शहरी-अर्ध शहरी क्षेत्रों में हमारे कानों में पड़ती होंगी और हमें पता भी नहीं चलता, इस तरह से हमारे अवचेतन मन को क्षुब्ध करती होंगी.
मैने आज दो नई थेरेपियां लीं जिसमें से एक थी कर्ण-पूरण. दोनों कानों में बारी-बारी से औषधीय तेल डाला जाता है. इससे पहले कान पर मसाज करके उसका रक्तसंचार गतिशील किया जाता है. कान बहुत ही नाज़ुक अवयव है. अनेक बीमारियों का बुरा प्रभाव भी कान पर पड़ता है जिसके कारण बहरापन आ जाता है. मैने पिछले दो-तीन साल पहले कान की जांच करवाई थी. मेटल के साधन से आवाज के धीमे झंकार करके जांच की गई थी. फेफड़ों की भी जांच करवाई थी. फूंक मारकर प्लास्टिक की बॉल को कितना ऊंचा उछाला जा सकता है, यह सब देखते हैं. सौभाग्य से, सबकुछ टनाटन था और अभी तक इन मामलों में कोई कष्ट नहीं है.
कान में रूई डालकर एक घंटे तक तेल को सोखने दिया जाता है. इस दौरान बाहर की आवाज बहुत ही कम मात्रा में सुनाई देती है. थेरेपी लेकर मैं खाने के लिए डाइनिंग हॉल में गया. किसी के साथ बात करते समय ठीक से सुनाई दे सके इसके लिए मैने एक कान से रूई जैसे ही निकाली कि तुरंत ही डाइनिंग हॉल में हो रही लोगों की भुनभुनाहट मुझे रेलवे प्लेटफॉर्म पर होने वाली शोरगुल की तरह तेज लगने लगा. मैं अशांत हो गया. मैने रूई फिर से लगा ली. सामान्य संयोगों में रोज इतनी ही आवाज डाइनिंग हॉल में होती है जिस पर मेरा ध्यान कभी नहीं गया था. जरा सोचिए कि ऐसे तो खूब सारी गैरजरूरी आवाजें, खासकर शहरी-अर्ध शहरी क्षेत्रों में हमारे कानों में पड़ती होंगी और हमें पता भी नहीं चलता, इस तरह से हमारे अवचेतन मन को क्षुब्ध करती होंगी. रेलगाडी, लाउडस्पीकर्स, पानी की मोटर, ट्रैफिक-हॉर्न, टीवी-कई फिजूल की आवाजों से मन उद्विग्न रहता होगा और हमें पता तक नहीं चलता. मनोज कुमार की एक प्यार का नगमा है वाली फिल्म `शोर’ याद आ गई.
कर्ण-पूरण करवाकर, भोजन करने से पहले, मुझे एक वॉटर थेरेपी लेनी थी. जल चिकित्सा एक बहुत बड़ा शास्त्र है. माटी प्रयोग तथा यज्ञ चिकित्सा के बारे में पहले हम बात कर चुके हैं, इसी तरह से आगामी दिनों में इसके बारे में भी विस्तार से लिखने का विचार है. वॉटर थेरेपी कई प्रकार की होती है. यहां पर आधा एक दर्जन से अधिक प्रकार की जलचिकित्सा होती है.
बाथटब से थोड़े चौड़े टब में फैलकर बैठना होता है-गले से ऊपर का भाग पानी से बाहर रहता है. लबालब पानी में मुट्ठी भर मैग्नीशियम और नमक डालकर मशीन चालू की जाती है. पानी में चारों दिशाओं में रखे फौव्वारे अलग अलग प्रेशर से पानी छोड़ते रहते हैं और आपके शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करते हैं, आपको गुदगुदी होती है. मजा आता है. वैसे यह सब मजे के लिए नहीं होता. औषधीय पानी द्वारा, पानी के प्रेशर द्वारा शरीर को जो मसाज मिलता है, उसका महत्व है. पंद्रह-बीस मिनट `मजा’ करके रूम पर आकर नहा लेना होता है.
यहां प्रतिदिन सुबह लंच से पहले और दोपहर में लंच के बाद सभी को दो-तीन-चार उपचार लेने होते हैं. ऐसी हर थेरेपी यदि आप शहर में अलग से लेने जाएं तो प्रति ट्रीटमेंट पांच सौ से लकर पांच हजार रुपए हो जाते हैं. कनाडा से अपनी माता के साथ आई गरिमा नामक युवती ने मुझे बताया कि वहां पर एक बार वह अपनी सहेली को लेकर अपना बर्थडे मनाने के लिए ऐसे ही एक उपचार केंद्र में गई थी तब उसने दो लोगों के लिए दो घंटे के पांच सौ डॉलर्स खर्च किए थे.
योगग्राम –निरामय में कुल लगभग ग्यारह सौ व्यक्तियों के रहने की, इलाज की व्यवस्था है. उनके लिए यहां कुल दो हजार लोगों का स्टाफ है जिसमें बड़े बड़े डॉक्टर्स, आयुर्वेदाचार्य, नेचरोपथिस्ट, योगाचार्य, यज्ञ करवानेवाले स्वामीजीयों से लेकर चिकित्सा सहायक, वेटर, एड्मिन स्टाफ, हाउसकीपिंग स्टाफ इत्यादि का समावेश होता है. प्रैक्टिकली प्रति व्यक्ति दो जन का स्टाफ हुआ.
योगपीठ यहां से आधा घंटे की दूरी पर है. दिल्ली-हरिद्वार हायवे से लगे योगपीठ कॉम्प्लेक्स में २५ अप्रैल से योगग्राम जैसा ही `पतंजलि वेलनेस’ सेंटर शुरू होने जा रहा है. उसमें दो हजार लोगों के ठहरने, चिकित्सा देने की व्यवस्था की गई है. दुनिया का सबसे बड़ा योग-आयुर्वेद-प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र बनेगा. स्वामीजी २५ तारीख को बड़े पैमाने पर यज्ञ करके उसका उद्घाटन करेंगे और पांचेक दिन के लिए वहीं पर सुबह का योग शिबिर लेंगे. यहां के अनेक वरिष्ठ डॉक्टर तथा साथ अनुभवी योगाचार्य भी अपने सहायकों को यहां की जिम्मेदारी सौंपकर वहां के नए संकुल की व्यवस्था लगाकर सप्ताह भर बाद लौट आएंगे. स्वामीजी लगातार पांच-छह दिन वहां रहने के बाद बारी बारी से दोनों संकुलों में शिबिर लेते रहेंगे.
आज सुबह के योगाभ्यास के बाद ब्रेकफास्ट से सहले रूम में पेट-पेडू पर तथा आंख पर मिट्टीपट्टी रखते समय भारतरत्न स्वरसाम्राज्ञी एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी के स्वर में सुप्रभातम प्रार्थना सुनी. उनके स्वर में विष्णूसहस्त्रनाम सुनने का भी एक अलग आनंद है. आप भी सुनिएगा.