(गुड मॉर्निंग: चैत्र पूर्णिमा, विक्रम संवत, २०७९, शनिवार, १६ अप्रैल २०२२)
ब्रह्ममुहूर्त में जागने बाद आपको क्या करना चाहिए? टीवी चालू करके पिछली रात को नहीं देखी सीरियलों का रिपीट टेलीकास्ट देखना चाहिए? यूट्यूब पर न्यूज़ चैनलों द्वारा रेकॉर्ड की गई कल की `गर्मागर्म’ खबरों के बारे में हॉट डिबेट्स देखनी चाहिए? मनपसंद फिल्म देखनी चाहिए? वॉक करना? योग-प्राणायाम का अभ्यास करना?निकट के पार्क में सैर-सपाटा करके गेट के बाहर खड़े खाने-पीने के स्टॉल से पोहा, पापड़, जूस या इडली सांभर का मज़ा लेना चाहिए? करना क्या चाहिए?
इसका जवाब पांच सौ वर्ष पहले गुजरात के ख्यातनाम संत नरसिंह मेहता ने दिया है.
रात रहे जागा,
अंतिम षट् घडी में,
साधु पुरुष को सोते नहीं रहना चाहिए;
निद्रा को दूर कर, सुमिरो श्री हरि को,
एक तू, एक तू, कहते रहो
जोगी हो तो जोग संभाले,
भोगी हो तो भोग को त्यागे,
वेदांती हो वह वेद विचारे,
सुकवि हो तो सद्ग्रंथ रचे,
दाता हो तो दान करे,
पतिव्रता नारी को पति से पूछना चाहिए-
पति जो कहे वह चित्त में धरना चाहिए;
हम अपना धर्म संभाले
कर्म का मर्म विचारें….
नरसैया स्वामी को स्नेह से सुमिरे,
हरि नया अवतार लेते नर हों या नारी….
नरसिंह जिन्हें `साधु पुरुष’ कहते हैं उसमें `साधु’ यानी सज्जन लोग. हम सभी को संबोधित करते हुए नरसिंह ने यह बात कही है. अन्यथा जो सचमुच के साधु हैं, संत हैं, संन्यासी हैं उन्हें तो नरसिंह की सलाह की कोई ज़रूरत ही नहीं होती-उन्हें तो पता है कि ब्रह्ममुहूर्त का महत्व कितना है और ब्रह्ममुहूर्त में क्या करना चाहिए, यह उनकी वर्षों की तपस्या भी है.
तो ये `साधु पुरुष’ यानी अच्छे लोग और `पुरुष’ मे स्त्री –पुरुष-बच्चे हर कोई आ जाता है. (चेयरमैन को चेयरपर्सन बना देने वाले जेंडरवादी थोड़ा एक तरफ हट जाएं. यहां आपका कोई काम नहीं है).
षट घडी यानी छड घडी. घडी यानी २४ मिनट का समय. सूर्योदय से पहले दो घंटे होने के लिए जब २४ मिनट का समय शेष होता है तब ब्रह्ममुहूर्त शुरू हो जाता है. मान लीजिए कि कल सूर्योदय ६ बजे होनेवाला है तो उसके करीब ढाई घंटा पहले यानी कि साढ़े तीन बजे से ब्रह्ममुहूर्त शुरू हुआ माना जाता है. बिलकुल वेदकाल से हमारे ऋषिमुनियों ने इस ब्रह्ममुहूर्त का महत्व समझाया है. इस समय आप जो कुछ भी पढ़ रहे हैं या जो कोई भी गतिविधि कर रहे हैं, उसका असर आपके मन में स्थायी छाप छोड जाता है.
भगवद् गोमंडल कोष के अनुसार सूर्योदय से पहले की छह घडी का नहीं बल्कि दो घडी का अर्थात ४८ मिनट का समय ब्रह्म मुहूर्त माना जाता है. अर्थात ६ बजे सूर्योदय होना है तो करीब पौना घंटा पहले, सवा पांच बजे ब्रह्ममुहूर्त का समय आरंभ होता है.
वैदे हमें नरसिंह वाले ब्रह्ममुहूर्त का समय अधिक रोचक लगता है.
सभी ऋषि, महर्षि, देव सभी लोग इस समय पर ब्रह्मचिंतन किया करते हैं, इसीलिए उनके चिंतन का प्रभाव तेज के रूप में सर्वत्र प्रसारित होता है, ऐसा शास्त्रों का कहना है. जो लोग इस समय उचित तरीके से ब्रह्मचिंतन करते हैं वे इस तेज को यथायोग्य रूप से प्राप्त करते हैं.
ब्रह्मचिंतना का बृहद् अर्थ निकालें तो केवल ईश्वर का ही चिंतन नहीं, अपितु समस्त प्रवृत्तियों का इसमें समावेश किया जा सकता है. मेहताजी के प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार ब्रह्ममुहूर्त में जागकर, प्रभु का नाम लेकर, इस जगत का संचालन करनेवाले ईश्वर ही हैं-और कोई नहीं, ऐसी सभानता मन में स्थिर कर लेनी चाहिए, ताकि हम अपना का निष्ठा से करते रहें किंतु उस काम का परिणाम क्या देना है, कितना देना है, कब देना है-इस पर केवल और केवल भगवान का ही अधिकार है ऐसा स्वीकार लें और काम शुरू कर दें.
कैसा काम?
नरसिंह कहते हैं कि जो जोगी हैं,योगी हैं-उन्हें योग करना चाहिए. जो भोगी हैं, सांसारिक हैं, उन्हें इस समय भोग त्याग कर बिस्तर से उठ जाना चाहिए. `वेदांती’ का अर्थ है वेदशास्त्री. जिसने वेदों-उपनिषदों का अध्ययन किया है ऐसे विद्वानों को वेदाभ्यास करना चाहिए. सुकवि अर्थात यूं तो अच्छा कवि लेकिन उसमें हम कवि के अलावा लेखक, उपन्यासकार, भाष्यकारी, सभी शामिल कर लेते हैं, व्यंग्य लेखकों को भी. तो इन सभी को सद्ग्रंथ बांधना है. यानी बुक बाइंडिंग का व्यवसाय नहीं करना है, बल्कि अच्छा अच्छा लिखने के लिए बैठ जाना चाहिए.
इससे पूर्व नरसिंह ने कहा है कि वैष्णव हो तो उसे कृष्ण को भजना चाहिए. जो वैष्णव नहीं हैं, वे भी कृष्ण को भज सकते हैं और कृष्ण को नहीं भजना हो तो अपने अपने इष्ट देव को भज सकता है. वेदांती और सुकवि का बात करके नरसिंह ने श्रीमद् भगवद्गीता ज्ञानयोग की तरख इशारा किया है और उससे पहले वैष्णव-कृष्णवाली बात करके भक्ति योग की तरफ.
आगे चलकर नरसिंह ने कहा है कि जो सक्षम लोग हैं, समर्थ हैं, उनमें यदि दान करने की इच्छा जागती है तो ऐसे दाताओं को ब्रह्ममुहूर्त में अपना दान किसे, किस तरह से मिलेगा, इसकी व्यवस्था के बारे में सोचना चाहिए.
फिर एक बार फेक नारीवादी वाले न्यूसन्स मेकर्स थोड़ा बाहर चले जाएं. नरसिंह कहते हैं कि पतिव्रता नारी को पति से पूछना चाहिए.व्हिच मीन्स पति को भी ब्रह्ममुहूर्त में जाग जाना चाहिए, बिस्तर में पड़े पड़े हुक्म न करे. पत्नी को क्या पूछना चाहिए? आज घर में कोई मेहमान आनेवाले हैं? आने वाले हों तो उसकी तैयारी शुरू कर दें. आज आपका कोई विशेष प्लान है? शाम का क्या प्रोग्राम है? और पति जो कहता है उसे मन में रखना है. इन सभी मामलों में डिस्कशन के बाद जो तय होता है, वह ठीक से दिमाग में बैठ जाना जरूरी है और सारे दिन का टाइमटेबल उसी तरह से निर्धारित कर लेना चाहिए.
भक्ति योग और ज्ञानयोग के बाद नरसिंह ने यहां सबसे महत्वपूर्ण कर्मयोग की बात की है. ` हम अपना धर्म संभाले, कर्म का मर्म विचारें’.
हमें अपना धर्म संभालना चाहिए. यहां पर धर्म यानी स्व-धर्म. धर्म यानी केवल रिलीजन नहीं बल्कि जीवनकर्म. धर्म का अर्थ अत्यंत विशाल है, हमारे यहां. रिलीजन तो धर्म का एक हिस्सा है, अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है लेकिन हिस्सा ही है. धर्म यानी स्व-धर्म ऐसी समझ जो लोग गीता को ठीक से आत्मसात कर चुके हैं वे लोग स्वीकार करेंगे. प्रोफेसर का धर्म पढ़ाना है. डॉक्टर का धर्म रोगी को ठीक करना है. संगीतकार का धर्म वादन-गायन का है. लेखक का धर्म लिखना है.
प्रात:काल शुरू होने से पहले ढाई घंटे के समय में हर किसी को अपने अपने धर्म को अपना धर्म क्रियाशील करने लिए करना चाहिए ऐसा मेहता जी का कहना है.
यहां थोड़ा रुककर कालगणना कीअपनी भव्य परंपरा के कर्स शब्दों को भी देख लें. प्रहर अर्थात तीन घंटे का समय. अर्थात साढ़े तास घडी जितना समय (घड़ी यानी २४ मिनट ये अब आपको याद है). प्रहर यानी २४ घंटे के रात-दिन का आठवां भाग.
प्रहर या पहर से प्रहरी शब्द बना है-प्रहरी अर्थात चौकीदार, द्वारपाल. दोपहर अर्थात सूर्योदय होने के पश्चात दो प्रहर बाद का समय (छह घंटे का समय).
२४ घंटे का ८ प्रहर. १ प्रहर की साढ़े सात घड़ी. एक घड़ी के ६० पल. १ पल का ६० विपल. १ विपल बराबर ३० क्षण. आधुनिक गणना के अनुसार एक पल बराबर चौबीस सेकंड.
ब्रह्ममुहूर्त के करीब ढाई घंटे समय के अगणित क्षण, पल, सेकंड्स और मिनट जीवन में बर्बाद हो गए, इसका जब हिसाब लगाते हैं तब ध्यान में आता है कि हरिद्वार आकर योगग्राम में सुबह साढ़े तीन बजे जागने की आदत भविष्य में, शेष जीवन के लिए, कितनी अधिक मूल्यवान साबित होनेवाली है.
अंत में एक पर्सनल बात करके आज के लेख का समापन करता हूं. गुजराती भाषा के प्रथम पंक्ति के चिंतक-विचारक गुणवंत शाह के साथ मेरा पिता-पुत्र जैसा रिश्ता है. मैने २००३ में प्रकाशित अपनी एक पुस्तक को उनके चरणों में अर्पित किया था, उसके पांचेक वर्ष पहले उन्होंने अपना निबंध संग्रह `विराट ने हिंडोले’ (अर्थात `विराट के पालने में’) मुझे अर्पित करके अर्पण पंक्ति लिखी है:`मैत्री तो भूकंप का मौन भी पचा सकती है.’
योगग्राम की पचास दिनों की यात्रा शुरू करने से पहले मैंने वडोदरा में उनके निवास स्थल `टहुका’ पर जाकर आशीर्वाद लिया था. उन्होंने मुझे लौटने के बाद मेरे अनुभव कथन को सुनने के लिए फिर से वडोदरा आने के लिए कहा है. जरूर जाऊंगा.
गुणवंतभाई ने १९९७ में साठ वर्ष जब पूर्ण किए तब उस निमित्त आकाशवाणी उनका एक दीर्घ साक्षात्कार आर्काइव्ज के लिए रेकॉर्ड करना चाहता था. तीन-चार घंटे का इंटरव्यू रेकॉर्ड करके उसमें एक घंटे का साक्षात्कार प्रसारित होना था. भाई ने (हम सभी गुणवंतभाई को केवल भाई के प्यार भरे संबोधन से पहचानते हैं) आकाशवाणी से कहाकि,`सौरभ मेरा इंटरव्यू ले तो मैं आऊंगा. पूछ लीजिए उससे, उसकी फीस बहुत ज़्यादा होगी-आकाशवाणी उसका वहन कर सकते तो बुला ले उसे?’
आकाशवाणी से मुझे फोन आया. अगले दिन ही साक्षात्कार रेकॉर्ड करना था. समय की कमी थी. भाई का इंटरव्यू और वह भी ऑल इंडिया रेडियो के आर्काइव्ज़ में संरक्षित किया जाना हो तो मेरे लिए पैसे की कोई शर्त हो ही नहीं सकती थी-भाई मेरे लिए आग्रह रखें, इसी में मुझे करोड़ रुपए मिल गए. मैने `आकाशवाणी’ को दो शर्तें कहीं: एक, पूरे साक्षात्कार में से जो एक घंटे का प्रसारण होना है, उसकी एडिटिंग मैं खुद स्टूडियो में बैठकर करूंगा और दो, आर्काइव्ज़ के लिए रेकॉर्ड होनेवाले तीन-चार घंटे के इंटरव्यू की एक कॉपी आकाशवाणी को मुझे देनी होगी.
दोनों शर्तें मान्य हो गईं. सारी रात,लिटरली सारी रात, मैने इंटरव्यू के लिए तैयारी की और सुबह दस बजे आकाशवाणी पहुंच कर दोपहर को देर तक भाई का इंटरव्यू लिया.
भाई वडोदरा से मुंबई आते हैं तो उन्हें सबके साथ बात करने की इच्छा होती है. खुद जल्दी जाग जाते हैं तो मान लेते हैं कि मुंबईवासी भी उनकी तरह अच्छी आदतवाले होंगे. मैं देर से उठता था इसीलिए पहले दो-चार फोन निपटाकर बिलकुल सुबह सात-साढ़े सात बजे मुझे फोन करते हैं. पप्पा उनसे कहते कि सौरभ तो सोया है इसीलिए प्रेम से आदेश देकर भाई कहते:`उठाइए उसे!’
मुझे फोन लेना ही पड़ता. भाई मुझे प्रेम से डांटते कि `इतनी देर तक सोता है!’ मैं कहता,` भाई, पहले पूछिए तो सही कि रात में कितने बजे काम पूरा करके सोया हूं. किसी तरह साढ़े तीन बजे तो सोया!’
ये सब चलता रहता.
फिर मैने `मिड-डे’ में संपादक के रूप में जिम्मेदारी स्वीकार की. दोपहरा का अखबार है. सुबह दस बजे छपकर बारह बजे लंच टाइम से पहले मुंबर्स के सेंट्रल-वेस्टर्न सबर्ब के हर स्टेशन के बुक स्टॉल पर पहुंच जाना चाहिए. इतने में आप भला ताजा खबरें कितनी दे सकते हैं? मैने मैनेजमेंट को समझाकर अखबार को अगली शाम को तैयार करने की प्रथा बंद करके नाइट शिफ्ट शुरू करवाई और मैं खुद सुबह पांच बजे ऑफिस पहुंच कर साढ़े आठ बजे तक फ्रेश अखबार तैयार करूंगा, ऐसी व्यवस्था की.
सुबह पांच बजे ऑफिस पहुंचने केलिए मुझे घर से बहुत जल्दी निकलना पडता. जल्दी जागने की आदत नहीं थी इसीलिए सुबह के समय भागमभाग मच जाती. एक-दो महीने में मैं ऊब गया. लेकिन अखबार पहले से कहीं अधिक सुधर गया था और सभी लोग खुश थे, इसीलिए मुझे सुबह पांच बजे ऑफिस पहुंचना अनिवार्य था. मैने तय किया कि चाहे आसमान ही क्यों न टूट जाय लेकिन मैं रोज साढ़े तीन बजे उठ जाऊंगा और शांति से,बिना किसी हडबडी के तैयार होकर पौने पांच बजे ऑफिस पहुंचने का टार्गेट रखूंगा. सप्ताह भर तक तकलीफ हुई क्योंकि ऑफिस से लौटने का मेरा कोई निश्चित समय नहीं हुआ करता था. सुबह पांच से शाम पांच के बाद भी काम के बोझ के कारण निकला नहीं जा सकता था. कई बार तो घर पहुंचते पहुंचते रात के नौ-दस बज जाया करते. लेकिन सुबह साढ़े तीन बजे जागने के लाभ इतने सारे थे कि रात कितने बजे घर आते हैं, यह बात गौण हो जाती थी. पांच के बदले पौने पांच बजे पहुंचने का फायदा ये होता था कि पंद्रह मिनट में अपनी केबिन में सेटल होकर शार्प पांच बजे मैं न्यूज़रूम में पहुंचकर अपनी टीम के साथ शिफ्ट शुरू कर सकता था.
यह रुटीन सेट हो जाने के बाद मुझे एक दिन शरारत करने की सूझी. भाई वडोदरा में पांच बजे जाग जाते थे, यह मुझे पता था. वर्षों से उनकी ये आदत है. मैने घर से निकलकर ऑफिस पहुंचूं कि उससे पंद्रह मिनट पहले, साढ़े चार बजे उन्हें फोन किया. `भाई, इतनी देर तक आप सोते हैं!’
और फिर तो अब बदला लेने की मेरी बारी थी. हिंदी फिल्म वाले कहते हैं ना, खून का बदला खून! वैसे यहां बिलकुल अलग ही तरह का `रिवेंज’ था. सप्ताह में एक बार मैं भाई को ब्रह्ममुहूंर्त में साढ़े चार बजे जगाकर जब तक बात नहीं कर लेता तब तक मुझे चैन न पड़ता. और ऐसे `कुसमय’ पर मुंबई से मेरा फोन नहीं आता तो भाई को चैन नहीं पड़ता!
योगग्राम आकर ब्रह्ममुहूर्त के साथ जुड़ी ये सारी स्मृतियां ताजा हो गईं और आपके साथ शेयर कीं.