डॉक्टरों की लिखी दवाएं छोड़ते हुए आपको डर लगता है क्योंकि ड्रग माफियाओं ने आपको डरा दिया है – हरिद्वार के योगग्राम में १५ वां दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल चतुर्दशी, विक्रम संवत, २०७९, शुक्रवार, १५ अप्रैल २०२२)

स्वामी रामदेवजीने आज सबेरे पांच बजे योगाभ्यास शुरू करते समय कहा:`दरिद्रता में सुख नहीं है, ऐश्वर्य में है. लेकिन ऐश्वर्य आते ही उसमें विलासिता प्रवेश कर जाने का जोखिम होता है. ऐश्वर्य आने पर उसे सही दिशा में लगाओ. समृद्धि सेवा के लिए है….पुरुषार्थ करेंगे तो अर्थ का आगमन निश्चित है लेकिन पुरुषार्थ करके जो समर्थ बनता है, वह सेवा करता है.’

स्वामीजी ने कहा,`कभी भगवान की कृपा का अनादर नहीं करना, शुभ का अनादर नहीं करना, गुरु का-शास्थ का-वेद का अनादर नहीं करना.’

हम सभी के व्यावहारिक जगत पर लागू होनेवाली एक बात स्वामीजी से सीखनी चाहिए, उन्होंने कहा:`स्वामी रामदेव कभी दिखावे के पीछ एक पैसा खर्च नहीं करता.’

स्वास्थ्य के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा,`डॉक्टर की लिखी दवाएं छोडने से आपको डर लगता है क्योंकि तुम्हें डराया गया है-जो ड्रग माफिया है, मेडिकल माफिया है-उन्होंने डराया है तुम्हें’, इतना कहकर उन्होंने कहा,`मैने जब इन दो शब्दों का उपयोग पहली बार किया था तब लोग मुझ पर टूट पड़ते थे.’

स्वामीजी ने ये दो शब्द कॉइन किए हैं, प्रचलित किए‍ हैं-ड्रग माफिया, मेडिकल माफिया. इन दोनों माफियाओं का प्रचार-प्रसार करने का काम मीडिया माफिया द्वारा होता है. मीडिया माफिया शब्द स्वामीजी का नहीं है.

आज पंद्रह अप्रैल-कुछ डेढ़ घंटे के योगाभ्यास के बाद स्वामीजी ने बात से बात निकलते हुए कहा,`मैं मंच पर से जो कुछ भी बोलता हूं, वे सभी आपको याद नहीं रहेंगी. इसीलिए मैं कहा करता हूं कि डायरी लेकर बैठो. ये हमारे सौरभ शाहजी बहुत बड़े लेखक भी हैं, विचारक भी हैं, चिंतक भी हैं और पूज्य (मोरारी) बापू के प्रेमी हैं. पूज्य बापू की भाषा में बोलें तो उनके `फ्लॉवर’ हैं! (मुझे) बोले,`स्वामीजी, मैं यहां पचास दिन के लिए आया हूं…’ मैने कहा ,`क्यों?’ बोले,` मैं कायाकल्प करने के लिए आया हूं..कल तो (उनका) बर्थ-डे था. बधाई हो आपको, बहुत आशीर्वाद..और बोले स्वामीजी, मेरी बीमारी तो सात-आठ दिन में ठीक हो गई. अब कुछ रहा ही नहीं…अब तो अंदर से रूपांतरण होगा….’

योगाभ्यास के बाद ब्रेकफास्ट, ट्रीटमेंट और लंच के बाद आराम करने के बदले मेरे मित्र जय वसावडा ने `गुरु तत्व’ विषय पर ग्रंथ के लिए एक लेख लिखने के लिए आमंत्रण दिया था तो मन ही मन मेरे लिए जो लोग गुरु समान हैं उन सभी का स्मरण करके लेख शुरू किया. लंबा होगा. आज, कल, परसों, जब और जैसे समय मिलेगा टुकडों टुकडों में लिखकर पूरा करूंगा. स्वामी सच्चिदानंद, पू. बापू, स्वामी रामदेव, नरेन्द्र मोदी सभी याद आए यह लेख लिखते लिखते.

कोई मुझसे से एक ही शब्द में जवाब मांगे कि योगग्राम में आकर आपको क्या मिला? तो मैं कहता हूं कि-संजीदगी, सीरियसनेस, गंभीरता, निष्ठा. अभी तो यहां आए दो ही सप्ताह हुए हैं. पचास दिन बाद मुंबई लौटूंगा तब मेरे इस जवाब में अधिक गहराई आ चुकी होगी या नहीं यह मुझे पता नहीं है. शायद बिलकुल अलग जवाब भी हो सकता है. लेकिन अभी मुझे लग रहा है कि शारीरिक शुद्धि के साथ मुझमें मानसिक शुद्धि की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. पहले मैं जिस जिस बारे में सजग था, सीरियस था उससे अधिक गंभीरतापूर्वक, अधिक निष्ठापूर्वक इन बातों को मैं लेने लगूंगा ऐसा मुझे लगताहै और यह प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है. कहां तक पहुंचती है, अब यह देखना है.

अपने काम के प्रति मैं अधिक सीरियस रहता हूं. अपने लेखन को अधिक गंभीरता से ले रहा हूं. यहां सबेरे साढ़े तीन बजे उठने के बाद रात के नौ, साढ़े नौ, दस तो कभी ग्यारह बजे तक अतिव्यस्त टाइमटेबल होता है. कोई भागदौड, धमाचौकडी या स्ट्रेस नहीं रहता लेकिन निरंतर प्रवृत्तिशील रहते हैं, इस प्रकार का शेड्यूल होता है. दो घडी गप्पे लगा लें या फोन पर ताजा समाचार जान लें इतनी फुर्सत दिन के दौरान मिल जाती है लेकिन इन सबके लिए अधिक समय नहीं होता. समय का संभाल कर उपयोग करना पडता है. अन्यथा कोई न कोई ट्रीटमेंट छूट सकती है, डॉक्टर के साथ कंसल्टेशन टालना पडता है या फिर सुबह-शाम की वॉक से कुछ छोडना पडता है या छोटा करना पडता है.

मुंबई में नहीं थी, इतनी कद्र मैं समय की अब करने लगा हूं. टालमटोल या आलस में समय नहीं बिगाडा जा सकता. थकान नहीं लगती. खुराक नियंत्रित होती है, आहार के बाद विचारों पर भी नियंत्रण होता है और साथ ही सघन योग-प्राणायाम कर रहे हों तो शरीर में किसी भी उम्र में थकान प्रवेश नहीं करती. कोई भी काम करने में ऊबन नहीं आती. अपना काम तो खुत कर लेते हैं, दूसरों की भी मदद करते हैं. शरीर जब प्राकृतिक रूप से बीमारियों से मुक्त होता है तब एक नई ऊर्जा का अनुभव होता है. जीवन का हर क्षण अमूल्य है, उपयोगी है ऐसा ध्यान रहता है. उसे बर्बाद नहीं करना है, ऐसी गंभीरता मस्तिष्क में रहती है.

योगग्राम में आने का दूसरा सबसे लाभ मुझे यह हो रहा है कि मैं ब्रह्म मुहूर्त में उठने लगा हूं. सुबह साढ़े तीन बजे मेरा अलार्म बजने से पहले ही मेरी आंख खुल जाती है. आज इस बारे में थोडी बात आपसे कहूंगा. मुझे पता है कि सभी के लिए सुबह जल्दी उठना संभव नहीं होता और ब्रह्ममुहूर्त में जागना तो लगभग सभी के लिए असंभव काम होता है. लेकिन यहां आकर ध्यान में आ रहा है कि यह काम हम जितना सोचते हैं उतना कठिन नहीं है और इसके विपरीत ब्रह्ममुहूर्त में जागने लगें तो उसके लाभ आप जो सोचते हैं उससे कई गुना अधिक है.

मेरे घर के व्यक्तियों का, मेरे आसपास के लोगों का, मेरे जीवन में कितना महत्व है, इस बारे में अधिक गंभीरता मुझमें आ रही है. मेरे परिचय में आया, लेकिन मुझसे कभी प्रत्यक्ष न मिले व्यक्ति भी मेरे जीवन के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं, इसकी समझ मुझमें आ रही है. अपने स्वयं के स्वास्थ्य के अलावा मेरी मानसिकता भी ठीक रहे, इसके लिए संजीदगी भी आ रही है. हर व्यक्ति को इसके लिए अपनी तरह से प्रयास करना पडता है. निगेटिव सारा उपेक्षित हो, उसके बारे में सोचना भी नहीं. निगेटिव बातों, लोगों या वातावरण के बारे में सोचते हैं तब सभी खत्म नहीं होता, दुगुना हो जाता है. इन सारी बातों को शब्दों में वर्णित करें तो-निष्ठा. जीवन के प्रति निष्ठा, ईश्वर द्वारा दिए गए आशीर्वाद के प्रति निष्ठा, स्व-धर्म के प्रति निष्ठा, यहां आने के बाद यह निष्ठा बढ़ रही है.

योगग्राम में आने का दूसरा सबसे लाभ मुझे यह हो रहा है कि मैं ब्रह्म मुहूर्त में उठने लगा हूं. सुबह साढ़े तीन बजे मेरा अलार्म बजने से पहले ही मेरी आंख खुल जाती है. आज इस बारे में थोडी बात आपसे कहूंगा. मुझे पता है कि सभी के लिए सुबह जल्दी उठना संभव नहीं होता और ब्रह्ममुहूर्त में जागना तो लगभग सभी के लिए असंभव काम होता है. लेकिन यहां आकर ध्यान में आ रहा है कि यह काम हम जितना सोचते हैं उतना कठिन नहीं है और इसके विपरीत ब्रह्ममुहूर्त में जागने लगें तो उसके लाभ आप जो सोचते हैं उससे कई गुना अधिक है.

ब्रह्म मुहूर्त में जागने का काम रातोंरात नहीं होता. थोडा अभ्यास करना पडता है, थोडी सी लाइफस्टाइल बदलनी पडती है. जरा विस्तार से समझते हैं. लेकिन इससे पहले हम सभी ने बचपन में जो कहावत सुनी थी उसे याद कर लें:

रात में जल्दी सोए, जल्दी जागे वीर; बल-बुद्धि और धन बढ़े, सुख में रहे शरीर

सुबह जल्दी जागने के लिए सबसे पहले रात को जल्दी सोने की आदत डालनी पडती है.ज़ल्दी सोने की आदत डालने का अकसीर इलाज है-जल्दी जागना. मजाक नहीं कर रहा. एक सप्ताह भी नहीं बल्कि, दो-तीन दिन ही, अलार्म लगाकर बिना आलस किए यदि सुबह साढ़े तीन-चार बजे जाग जाएंगे तो रात में नौ-दस बजे आपको अनिवार्यत: बिस्तर पर जाना पडेगा. ट्राय करके देखिएगा.

अपने यहां कहा जाता है न कि रात दस से मध्य रात्रि दो बजे तक नींद सोने के चरणों से आती है. दो से छह तक चांदी के चरणों से और छह के बाद यानी सूर्योदय के बाद की नींद लोहे के कदमों से आती है.

रात दस बजे सोना हो तो चौविहार का नियम पालें. सूर्यास्त से पहले रात का काम निपटा लेना चाहिए. यह संभव न हो तो देर से देर सात या आठ के बीच भोजन पूरा कर लेना चाहिए.

यहां योगग्राम में शाम का योग सत्र ६ से -७.३० तक होता है और तुरंत डायनिंग हॉल खुल जाता है लेकिन योग करके सीधे भोजन करने बैठने से बेहतर मैं चलना पसंद करता हूं. लौटकर फिर एक बार नहा धोकर फ्रेश होना अच्छा लगता है. भोजन करते करते साढे आठ, कभी नौ भी बज जाता है. फिर भी सुबह साढे तीन बजे जागने में तकलीफ नहीं होती. इसका कारण क्या है? यहां का डिनर बिलकुल लाइट होता है. डिनर ही नहीं, लंच, ब्रेकफास्ट सबकुछ लाइट होता है. घर में वैसे सातों दिन आप यहां जैसा नहीं खा सकेंगे (इसकी जरूरत भी नहीं है) लेकिन इतना जरूर ध्यान रख सकते हैं कि रात का भोजन भारी न हो; विवाह या पार्टी में गए हों तो पेट में थोडी जगह रखकर भोजन पूरा कर दें. और घर में यदि अभी के मौसम में आमरस और घी में डुबोई रोटी खानी हो तो ये सब लंच में खाएं. भजिया-श्रीखंड पूरी इत्यादि लंच में खाएं. शाम को हल्का भोजन करें. कभी कभार कुछ अपवाद हो जाय तो अधिक टेंशन न लें.

सोने का समय निश्चित करके उससे कम से कम दो घंटा पहले डिनर/सपर/भोजन निपटा लें.

खुशवंत सिंह ऑलमोस्ट शतायु बने. अस्सी से अधिक की आयु में सुबह जागकर टेनिस खेलने जाया करते. जिस जमाने में स्नूज वाले अलार्म नहीं थे तब टेबल पर दो घडियां रखते थे. एक में साढे चार का अलार्म सेट करते, दूसरी में पौने पांच का. पांच साढे पांच बजे घर से निकलकर चलते हुए जिमखाना पहुंचते.

पत्रकार लेखक खुशवंत सिंह खाने (और पीने) के मामले में मौज करते थे लेकिन उनका रुटीन अत्यंत सख्त था. अपने यहां मेहमान बुलाए हों या फिर खुद मेहमान बनकर किसी के यहां गए हों तो उनकी स्पष्ट सूचना रहती थी-शाम सात बजे ड्रिंक्स शुरू हो जाएगा. दो पेग पी जाएगी. आठ बजे डिनर सर्व होगा. नौ बजे विदा लेंगे.

उनके बारे में एक प्रचलित किस्सिा है. उनके यहां एक बार अमेरिका के एम्बेसेडर अपनी पत्नी के साथ भोजन करने आए. नौ बजे भोजन पूरा होने पर एंबेसेडर ने सिगार निकालकर खुशवंत सिंह की पत्नी से कहा,`मैडम, मुझे आपके यहां का नियम पता है. यह सिगार पीकर मैं आपसे विदा लूंगा.’

खुशवंत सिंह की पत्नी ने एम्बेसेडर से विवेकपूर्वक कहा,`सर सिगार तो आप अपने घर जाते जाते कार में भी पी सकते हैं.’

खुशवंत सिंह ऑलमोस्ट शतायु बने. अस्सी से अधिक की आयु में सुबह जागकर टेनिस खेलने जाया करते. जिस जमाने में स्नूज वाले अलार्म नहीं थे तब टेबल पर दो घडियां रखते थे. एक में साढे चार का अलार्म सेट करते, दूसरी में पौने पांच का. पांच साढे पांच बजे घर से निकलकर चलते हुए जिमखाना पहुंचते.

आज के जमाने में रात को जल्दी सोना कष्टकारी लगता है. परिवार के साथ रहनेवालों के लिए अधिक कष्टकारी है, संयुक्त परिवार में रहनेवालों के लिए तो उससे भी अधिक कष्टकारी है.

रात को टाइमपास करने, टीवी देखने की आदत बंद कर दें. यहां मेरे कमरे में टीवी है लेकिन मैने एक भी बार चालू नहीं की है. कुछ देखने की इच्छा होती है तो पांच-दस मिनट के लिए यूट्यूब पर अपने फेवरिट कमलेश मोदी `फूडी’ के चैनल पर लेटेस्ट वीडियो देख लेता हूं. गुजरात का कोई भी ऐसा गांव बाकी नहीं होगा कि जहां के खास व्यंजनों को कमलेश मोदी ने जाकर उनका स्वाद न लिया हो. (यहां हरिद्वार के योगग्राम में ऐसा टेस्टी फूड देखना तो क्या उसके बारे में सुनना भी `पाप’ माना जाएगा!)

टीवी पर आनेवाले समाचार या सीरियल्स या अन्य शोज़ आपका कीमती वक्त खा जाते हैं. मुझे तो मुंबई में भी टीवी देखने की आदत नहीं थी. रिपब्लिक टीवी पर अर्णब गोस्वामी के साथ लाइव डिबेट होती है तो बस उतने समय के लिए अपने लैपटॉप पर चैनल चालू रखकर मॉनिटर करता हूं. डिबेट खत्म, लैपटॉप बंद.

ओटीटी पर या प्लेयर पर मूवी देखना बहुत अच्छा लगता है लेकिन अब उस पर कंट्रोल करना पडेगा. बहुत सिलेक्टिव रहना है. सुबह आस्था चैनल पर स्वामी रामदेव को कई वर्षों से अनियमित रूप से तो अनियमित रूप से ही खूब देखा है. इसी का लाभ अभी हो रहा है. पूज्य मोरारी बापू की रामकथा का लाइव प्रसारण मौका मिलने पर देखता ही हूं और मोदीजी की `मन की बात’ कभी मिस नहीं करता.

सोने से पहले टीवी देखने की आदत से दूर रहना चाहिए. दस बजे बिस्तर में जाते ही नींद आ जाय इसके लिए जल्दी भोजन करके, सोने से एक घंटा पहले घर में अन्य सभी से अलग होकर अपने भीतर समा जाना चाहिए. अधिक चिंतन की प्रेरणा न दे, ऐसा पांच-पंद्रह मिनट का हल्का वाचन करके टेंशनवाले विचारों में फंसने के बजाय प्रसन्नचित्त होकर आंखें बंद करके पांच मिनट पडे रहने से तुरंत नींद आ जाती है.

पत्रकारिता के अपने व्यवसाय के कारण दैनिक समाचारपत्रों में मुझे अपनी सेकंड शिफ्ट में, नाइट शिफ्ट में काम करना पडता था; बाहर की रिपोर्टिंग का असाइनमेंट कम से कम समय में पूर्ण करके तत्काल लौटकर रिपोर्ट फाइल करनी होती थी तो वहां जागकर काम करना पडता था, सफर में जागरण होता था. खाने पीने का शेड्यूल भी शायद ही ठीक रह पाता था. उपन्यासकार के रूप में पूरा उपन्यास मैने कभी लगातार नहीं लिखा, प्रकरण लिखता जाता और छपता जाता, फिर अगला चैप्टर लिखा जाता. वह भी अंतिम क्षण में. रातभर जागकर प्रकरण पूरा करना पडता. कभी एक प्रकरण लिखने के लिए दो-तीन रतजगे करने पडते थे.

वर्षों तक इन सभी के कारण मेरे आहार और निद्रा पर विपरीत असर पड रहा था. सौभाग्य से तबीयत के बारे में कोई मेजर सेटबैक नहीं आया और अब आएगा भी नहीं क्योंकि योगग्राम में ५० दिन रहकर अपना कायाकल्प करके ही लौटनेवाला हूं. आज `न्यूज़प्रेमी’ के एक पाठक ने मुझे मेरी दो तस्वीरें भेजकर लिखा:`अंतर स्पष्ट दिखाई दे रहा है.’ पहली तस्वीर यहां आने के बाद दूसरे-तीसरे दिन स्वामी रामदेव से पहली बार मिला तब की थी, दूसरी तस्वीर उसके बारह दिन बाद की, यहां रूम की बालकनी में अपनी वर्षगांठ के दिन हवन कर रहा था तब की थी.

ब्रह्ममुहूर्त में जागने के फायदों के बारे में कुछ और निजी अनुभव मुझे आपके साथ साझा करने हैं. कल यह विषय जारी रखेंगे.

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