गुड मॉर्निंग: सौरभ शाह
(newspremi.com, सोमवार, १० अगस्त २०२०)
हवा का रूख देखकर पलटी मारनेवाले और जिनका हृदय परिवर्तन हुआ है- ऐसे दोनों प्रकार के लोगों एक ही लकडी से हांकने जाएंगे तो उन पर और आप पर- दोनों पर अन्याय होगा.
हिंदुत्व की थाली में लड्डू देखकर सेकुलरों की पंगत छोडकर इस तरफ आकर बैठनेवाले कई उठाईगिरे होंगे, हैं. मेरे आस पास ऐसे अनेक अवसरवादी लोग हैं. सार्वजनिक जीवन में काई मौकापरस्त लोगों को मैं नाम से जनता हूं. आप भी जानते होंगे.
इसके विपरीत ऐसे भी अनेक लोग हैं जिन्हें सेकुलरवाद की भेंट चढा दिया गया है, जो ईश्वर अल्लाह तेरो नाम के बनावटी भजनों के शब्दों का मंजीरा बजाने लगे, जिन्हें सेकुलर शब्द में व्याप्त गंदगी का अभी एहसास नहीं हुआ इसीलिए सेकुलर होना यानी उदार होना, विशाल होना, क्षमाशील होना और सर्वस्वीकार्य होना मानने के भ्रम में आकर गलत मार्ग पर चले जाते हैं. लेकिन समय बीतते बीतते उन्हें ध्यान में आता है कि मुझे सेकुलरवाद की माला पहनाकर भाग जानेवाले खुद ही कट्टरपंथी हैं. गूंगे प्राणी डर न जायं इसलिए दिवाली में पटाखे नहीं फोडने की सलाह देने वाले शांतिप्रिय लोग खुद बकरा ईद के दिन गूंगे प्राणियों को तडपा तडपा कर, हलाल करके खाते हैं. हिंदू आस्था पर ईंटों से प्रहार करनेवाले अपनी आस्था पर फेंके रूई के फाहे को भी नहीं सह पाते. ऐसे शांतिप्रिय समाज को सेकुलर राजनेताओं की छत्रछाया मिल जाती है.
ये सब देखने-समझने के बाद `सेकुलर’ शब्द अपने आप में मां-बहन की गाली से भी ज्यादा अपवित्र लगने लगता है और कोई जब हिंदूवादी बन जाता है तब उसका हृदय परिवर्तन हो गया है, ऐसा कहा जाता है.
सेकुलर शब्द की गंदगी को पहचान कर हिंदुत्व की सुगंध की तरफ आकर्षित हुए अनगिनत लोग मेरे आस पास हैं.
आपके आस-पास, जिनके साथ आपका उठना बैठना है, आपने जो शिक्षाली है, आप जो अखबार-पत्रिका पढते हैं, आपको जो लेखक प्रिय लगते हैं, जिन पत्रकारों पर आप भरोसा करते हैं, उन सभी के मुख से `सेकुलरवाद की उदारता’ के फायदे और `हिंदुत्व की कट्टर विचारधारा’ के दुष्परिणामों के बारे में दिन रात सुनते रहते हैं तब स्वाभाविक है कि आप अपने कंधे पर रखे बकरे को कुत्ता समझकर उतार दें. और जैसे ही आप अपने बकरे को रास्ते में उतार देते हैं कि तुरंत ही आप उसे कसाई के हाथों खींच कर ले जाते हुए देखते हैं और तब आपके मन में पहली बार सवाल उठता है: अभी तक मैं `सर्व धर्म समभाव’ का कोरा चेक हर किसी को फाडकर दे रहा था, क्या यह ठीक था?’ इस सवाल का जवाब तलाशने की लंबी यात्रा कांटों भरी होती है. लेकिन इस यात्रा का सुखद परिणाम ये आता है कि आपको अंतिम पडाव पर आकर ध्यान में आता है कि ऐसे ब्लैंक चेक किसी को नहीं दिया जाना चाहिए. अब तो एक हाथ ले, एक हाथ दे- ऐसा समान व्यवहार ही होगा, अब `सर्व धर्म समभाव’ के बदले मेरे जीवन का सूत्र होगा: जो व्यक्ति मेरे धर्म का आदर करता है, मैं उसी व्यक्ति तक उसके धर्म के प्रति समभाव रखूंगा. इससे न ज्यादा, न कम.
सेकुलर शब्द की गंदगी को पहचान कर हिंदुत्व की सुगंध की तरफ आकर्षित हुए अनगिनत लोग मेरे आस पास हैं. इस परिवर्तन के पीछे न तो कोई अवसरवाद है, न ही कोई लालच. केवल सेल्फ रियलाइजेशन होता है. बनावटी हिंदूवादियों की जमात से मीलों दूर रहनेवाले ऐसे वास्तविक हृदय परिवर्तन वाले लोग सार्वजनिक जीवन में भी बडी संख्या में हैं जिन्हें मैं नाम से पहचानता हूं. आप भी पहचानते होंगे.
शायद आपके सगे संबंधियों में या आपके अपने घर में ही ऐसे लोग होंगे जो आपके हिंदुत्व की हंसी उडाते होंगे
जेनुइन हृदय परिवर्तन करनेवाले एक व्यक्ति की आपबीती पांच अगस्त को मैने ट्विटर पर पढी. एक पूरा लेख लिखा जा सकता है, इतना बडा थ्रेड है. ट्विटर पर खुद को `साकेत’ के नाम से प्रस्तुत करनेवाले उस व्यक्ति की आईडी साकेत ७१ है यानी हम मान सकते हैं कि उनका जन्म १९७१ में हुआ होगा और १९९२ में उनकी उम्र बीस-इक्कीस साल रही होगी. अभी वे पचास के करीब होंगे. `जागरण’, `स्वराज्य’ और `ऑपइंडिया’ में उनके राष्ट्रवादी लेख प्रकाशित होते रहते हैं. एक-दो किताबें भी लिखी हैं. ट्विटर पर तेईसी-चौबीस हजारी फॉलवर्स वाले साकेत सूर्येश की एक बडी खूबी है कि वे जितनी अच्छी अंग्रेजी लिखते हैं, उतना ही प्रभावी लेखन उनका हिंदी में भी है. पेशे से इंजीनियर है. दिल्ली में रहते हैं.
एक तरह से देखें तो पंद्रह ट्विट के इस थ्रेड को आप साकेत की स्वीकारोक्ति भी कह सकते हैं. उनके कन्फेशन के बारे में बात करने का एक कारण ये है कि आपके आस पास शायद अब भी ऐसे कई सेकुलरवादी होंगे, शायद आपके सगे संबंधियों में या आपके अपने घर में ही ऐसे लोग होंगे जो आपके हिंदुत्व की हंसी उडाते होंगे, आपको धर्मांध, परंपरावादी और मोदी भक्त मानते होंगे और कुद केजरीवाल, राहुल-सोनिया-प्रियंका, लालू-दिग्विजय को, राजदीप-बरखा- रवीश को इस देश का भविष्य मानते होंगे. ऐसे लोगों को हमें ज्ञान देने की कोई जरूरत नहीं है. जिन्हें नरेंद्र मोदी में युग पुरुष-अवतार पुरुष नहीं दिखाई देते और जो राहुल के डायपर बदलने में ही परम धन्यता का अनुभव करते हैं, ऐसे लोगों को हम कह भी क्या सकते हैं: उनका भाग्य.
पर संभव है कि साकेत सूर्येश की बात पढकर उनमें से कईयों को ध्यान में आ जाएगा कि अभी तक वे जिस विचारधारा में विचार रहे थे उसमें तो वे खुद को ही छलने का काम कर रहे थे. ऐसी अनुभूति के बाद यदि वे ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ के मंजीरे बजाना छोडकर `जय श्रीराम’ का नारा बोलना चाहते हों तो उनका स्वागत है. देर आए दुरुस्त आए. इस कुबूलनामे को आपके सामने यहां साझा करने का यही कारण है. आप इस बात को उन लोगों तक पहुंचाइए जो अभी भी हिंदुत्व को सांप्रदायिकता के साथ और भाजपा – आरएसएस की गतिविधियों की तुलना कट्टरवाद से करते हैं.
जो ट्विटर पर हैं वे जरूरत @Saket71 के इस अंग्रेजी थ्रेड का आनंद ले सकते हैं. जिन्हें ट्विटर पर मजा नहीं आता और हिंदी में पढने का शौक हो तो वे सभी कल फिर से इसी जगह पर मुझसे मिलें. लेकिन जाने से पहले आरएसएस का उल्लेख हुआ है तो पांच अगस्त के शिलान्यास, भूमिपूजन, कार्यारंभ के कार्यक्रम के संदर्भ में दो बातें कर लें.
गांधी हत्या से पहले ही कांग्रेस ने आर.एस.एस की गतिविधयों को बदनाम करना शुरू कर दिया था. १९२५ में जिसकी स्थापना हुई थी और जो राष्ट्र की सबसे बडी राष्ट्रवादी संस्था है, उस पर आजादी से पहले कांग्रेस ने खूब हमले किए. ब्रिटिश शासक और कांग्रेस इस मामले में एकमत थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियां देश के लिए घातक हैं. सच्चाई तो ये थी कि आर.एस.एस. की गतिविधियां इन दोनों के लिए घातक थीं. संघ को छूट देंगे तो भारत को गुलामी से मुक्त करना पडेगा ऐसा अंग्रेजों का भय था और कांग्रेसी नेता मानते थे कि आर.एस.एस. को मान्यता देंगे तो आजादी की जंग जीतने का श्रेय संघ के माथे चला जाएगा और कांग्रेस हाशिए पर धकेल दी जाएगी.
आजादी से पहले संघ ने जहरीले प्रचार का सामना किया और खूब सहन किया. गांधीजी की हत्या के बाद नेहरू को मौका मिल गया- संघ को बिलकुल गलत तरीके से इस षड्यंत्र में फंसाने का. उन्होंने एक कंकड से दो पक्षी मारे. सरदार पटेल की लोकप्रियता को कम करने के आशय से सरदार को ही कहा कि गृहमंत्री के नाते संघ पर प्रतिबंध लगाइए.
उसके बाद के वर्षों में कांग्रेसी शासन के तहत जो साम्यवादी और मुस्लिम परस्ती का वातावरण बना उसमें संघ की इज्जत पर कई सारे कलंक लगाने की कोशिश की गई लेकिन हर बार संघ अधिक से अधिक सशक्त होता गया, दृढतर बनता गया. अभी कल तक कांग्रेसी संघ के बारे में, संघ के कामों के बारे में, संघ के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बारे में ऊलजुलूल बोलते रहे थे. सेकुलर मीडिया इस आग में घी डालकर अपनी रोटियां सेंकता रहा. राहुल गांधी पर संघ की बदनामी करने के लिए किया गया क्रिमिनल केस कोर्ट में है.
वाजपेयी-अडवाणी से लेकर मोदी और अमित शाह सहित अनेक राजनेता संघ की भूमि पर तैयार हुए हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे प्रेरणा लेकर शुरू हुए विश्व हिंदू परिषद जैसे अनेक छोटे-बडे संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं के खून-पसीने के प्रताप से हम पांच अगस्त का कार्यक्रम देख सके. प्रधान मंत्री मोदी का विवेक देखिए, ऋण स्वीकार करने की उनकी स्टाइल देखिए. उन्होंने उन्होंने सरसंघचालक मोहनराव भागवत को इस कार्यक्रम में निरंतर अपने साथ रखा और इतना ही नहीं अपने बाद दूसरा स्थान उन्हें दिया. देश के प्रधान मंत्री के रूप में उनका स्थान पहला होना स्वाभाविक है. लेकिन पूजन के समय मंच पर पांच लोग थे जिसमें से एक वे खुद, दूसरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक, फिर तीसरे – चौथे-पांचवें यूपी की गर्वनर आनंदीबेन, मुख्यमंत्री योगी तथा न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास.
कांग्रेस, साम्यवादी और सेकुलरों की ईको सिस्टम को मुंहतोड जवाब मोदी ने इस एकमात्र जेश्चर से दिया. इस देश के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक और धार्मिक उत्थान में आर.एस.एस. का योगदान कितना विशाल है, इस बात को मोदी ने समस्त राष्ट्र को समझा दिया. सारी दुनिया को समझा दिया.
जो अभी भी आर.एस.एस. की आलोचना करने में धन्यता का अनुभव करते हैं, जो एक जमाने में आर.एस.एस. के गणवेश की टीका करते रहे, उनमें से कई लोग पांच अगस्त के बाद ये तर्क देने लगेंगे: मैंने तो संघ की अच्छी गतिविधियों की सराहना भी की है- ये देखिए. ऐसा कहकर वे वर्षों पहले लिखे गए कुछ फेसबुकिया लेखन को आपके सामने रख देंगे. ऐसे दोमुंहे लोगों की शीर्षासन दृष्टि को मोदी ने एक पल सीधा कर दिया- मोहनजी को अपने साथ रखकर. दोनों महानुभावों को पहली बार सार्वजनिक रूप से साथ देखने का आनंद लेते समय विचार आया कि दोनों में से उम्र में बड़ा कौन है?
दोनों का जन्म १०५० में हुआ है. दोनों का जन्म सितंबर में हुआ है. मोहनजी का ११ को, मोदीजी का १७ को.
कैसा योगानुयोग है.
साकेत किस तरह से सेकुलरवादी से हिंदूवादी बने? कल देखेंगे.
आज का विचार
जिंदगी नए सिरे से शुरू नहीं की जा सकती. लेकिन जिंदगी की दिशा जरूरत बदली जा सकती है. टेढ मेढे मोडों के साथ जिंदगी का स्वागत है.
– अज्ञात