मस्जिद होली है, मंदिर सैक्रेड है

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

राजीव मलहोत्रा ने शिवाजी पार्क के वीर सावरकर सभागृह में जो व्याख्यान दिया वह पूरे का पूरा देखने/ सुनने के लिए आप यूट्यूब सर्च कर सकते हैं. मलहोत्रा ने आंखें खोलेनवाली एक जबरदस्त बात अयोध्या के राम मंदिर के बारे में की कम से कम मेरे लिए तो ये बात बिलकुल नई थी. सभा में उपस्थित कई श्रोताओं के लिए भी यह बात नई होगी. राजीव मलहोत्रा ने कहा:`इस्लाम में होली (एच ओ एल वाई) स्थान (साइट्स) हैं, लेकिन सेक्रेड (एस.ए.सी.आर.ई.डी.) साइ्टस नहीं हैं. सेक्रेड स्थान किसे कहेंगे? यह एक पत्थर है जो दैवी है, डिवाइन है ऐसी हमारी श्रद्धा होती है तो वह जगह सेक्रेड हो जाती है. उस दिव्य पत्थर या मूर्ति के साथ मैं मन ही मन संवाद कर सकता हूँ, प्रार्थना कर सकता हूं, अपनी व्यथा व्यक्त कर सकता हूँ, कृतज्ञता प्रकट कर सकता हूं, कुछ मांग सकता हूं, क्योंकि मेरी यह श्रद्धा होती है कि मेरी बात इस पत्थर की मूर्ति तक पहुंच रही है, लेकिन इस्लाम में यदि कोई कहता है कि मस्जिद में अल्लाह है तो वह धर्म के विरुद्ध बात होगी. अल्लाह का निवास मस्जिद में नहीं होता बल्कि मस्जिद सिर्फ एक कम्युनिटी सेंटर है, वह इस्लाम के अनुयायियों के लिए जुटकर अल्लाह की बंदगी करने का स्थान है. यह स्थान कैसा होना चाहिए, इस बारे में कोई बंधन नहीं है. आप अपने घर में रहकर अल्लाह की बंदगी कर सकते हैं. आप रास्ते पर अल्लाह की बंदगी कर सकते हैं. आप किसी भी जगह पर अल्लाह की बंदगी कर सकते हैं, एयरपोर्ट पर अल्लाह की इबादत कर सकते हैं. आपको ऐसी किसी भी जगह पर जाने की जरूरत नहीं है जहां पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की विधि हुई हो. इसीलिए मस्जिद कोई सेक्रेड जगह नहीं है, होली प्लेस है. आप यदि किसी इस्लाम के अनुयायी को कहेंगे कि मस्जिद सेक्रेड जगह है तो उसकी धार्मिक भावना आहत हो जाएगी, क्योंकि सेक्रेड स्थानों पर मूर्तिपूजा होती है और इस्लाम में मूर्तिपूजा पर पाबंदी है. उसी प्रकार कुदरत का कोई भी स्वरूप इस्लाम के लिए सेक्रेड नहीं है – नदी, वृक्ष, मकान, पर्वत जैसी किसी भी चीज को इस्लाम सेक्रेड नहीं मानेगा, क्योंकि इन सभी का आकार है, जब कि उनके अनुसार अल्लाह निराकार है. हम ईश्वर को साकार रूप में भजते हैं.

मेरे पास ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिसमें सऊदी अरब जैसे देशों ने मस्जिदों को गिरा कर यहां से वहां हटा दिया, और नए सिरे से निर्माण किया. अयोध्या के बारे में हमें प्रमाण देने की जरूरत नहीं है कि इस जगह पर राम का जन्म हुआ था. हमारे लिए इतना ही प्रमाण काफी है कि हम उस जगह पर प्राण प्रतिष्ठा करके भगवान राम की मूर्ति की पूजा करते आए हैं या नहीं, ऐसे प्रश्न या विवाद के लिए कोई स्थान ही नहीं है. वैसे मैं (राजीव मलहोत्रा) पर्सनली मानता हुं कि हां जन्म हुआ था.

अत: इस विवाद में अन्य किसी बडे बडे प्रमाणों की जरूरत नहीं है. सुब्रमण्यम स्वामी का तो एक ही तर्क है कि `मुझे उस जगह पूजा, प्रार्थना करने का अधिकार है.’ बस इतनी ही दलील काफी है. अन्य किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है. भगवान राम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा उस जगह पर हो चुकी है और हिंदू के रूप में मुझे उनकी पूजा करने का अधिकार है. बस इतनी सी बात है. फिर अधिक प्रमाणों के बारे में चर्चा करके चिकनी चुपडी बातें करने का कोई अर्थ नहीं है. प्राण-प्रतिष्ठा की विधि निर्णायक है. मस्जिद में वह होती ही नहीं इसीलिए मस्जिद को जब मस्जिद को हटाया जाता है तब किसी भी प्रकार के धार्मिक पहलू की उपेक्षा नहीं होती, लेकिन जब मूर्ति का खंडन होता है तब धार्मिक मामले में हस्तक्षेप होता है. मैने जिन स्वदेशी मुस्लिमों के साथ चर्चा शुरू की है वे लोग मानते हैं कि हमें राम मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं की सहायता करने की जरूरत है. ऐसा ही धारा ३७० को रद्द करने और युनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में है. स्वदेशी मुसलमान इन मुद्दों पर हमारे साथ ही हैं. हमें ये करना चाहिए कि इन सभी मुद्दों पर सुशिक्षित प्रोफेशनल युवा मुस्लिम महिलाओं से शुरुआत करनी चाहिए. वे इमामों और पुरुषों की तानाशाही से बाज आ चुकी हैं. हमें उनकी सहायता करनी चाहिए. मैं इस्लाम के विरुद्ध हूं और इस्लाम को इस देश से निकाल देना चाहिए ऐसा बोलने की जरूरत नहीं है और मानने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि ऐसा कहने से लोग आपसे दूर हो जाएंगे, आपके पास नहीं आएंगे. आप इस्लाम से कन्वर्ट होकर हिंदू बन जाइए ऐसा कहने की भी जरूरत नहीं है. इसके बजाय हमें उनसे कहना चाहिए कि मुझे आपका मुसलमान के रूप में आदर करना है और मैं चाहता हुं कि आप हिंदू के नाते मेरा आदर कीजिए. मैं इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों का आदर करता हूं. भारत के मुसलमानों को इस्लाम की अरबी परंपरा से बाहर निकल कर भारतीय संस्कृति के मुख्य प्रवाह में जुडना चाहिए. और मैने (राजीव मलहोत्रा ने) देखा है कि स्वदेशी मुसलमानों की भी ऐसी ही इच्छा है- संकुचित अरबी रुढियों से बाहर निकल कर भारतीय संस्कृति में घुलमिल कर आधुनिक जमाने के साथ वे चलना चाहते हैं. एक दूसरे के धर्म के प्रति आदर का भाव रखेंगे तब भारतीय जनता में इस संबंध में स्थायी संतुलन पनपेगा.

कल सुब्रमण्यम स्वामी के व्याख्या के बारे में बात.

आज का विचार

बंद कपाट में पुस्तक ने आत्महत्या की. चिट्ठी में लिखा था: `मोबाइल से त्रस्त होकर.’

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट

शादी में दूल्हन का एक्स बॉयफ्रेंड भी आया था.

दूल्हन के पिता ने पूछा: तू यहां क्यों आया है?

एक्स बॉयफ्रेंड: जी, मैं सेमीफाइनल हार गया था. फाइनल देखने आया हूं!

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here